पुलिस की हिरासत में मेरठ के मेडिकल कॉलेज में इलाज करवा रहे भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद रावण ने एक बड़ा बयान दिया है. रावण ने चमार रेजीमेंट को फिर से सक्रिय करने के लिए देशभऱ में आंदोलन चलाने की बात कही है. उन्होंने कहा है कि देश भर के युवाओं को इस आंदोलन से जोड़ा जाएगा. उन्होंने मांग किया कि सरकार को इस रेजीमेंट की फिर से सेना में बहाली करनी होगी. चंद्रशेखर आजाद के इस बयान के बाद राजनीति गरमा गई है.
दरअसल सेना में चमार रेजीमेंट थी, जो सिर्फ 3 साल ही अस्तित्व में रही. सेना में इस रेजीमेंट की बहाली के लिए कानूनी लड़ाई भी लड़ी गई, लेकिन अभी तक मामला कागजों और मंत्रालयों में उलझा हुआ है. इसकी मांग को लेकर होने वाले कुछ प्रदर्शनों की खबरों पर राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने संज्ञान लिया था. फरवरी 2017 में आयोग ने रक्षा मंत्रालय के सचिव को नोटिस जारी कर इस रेजीमेंट के बंद होने को लेकर सवाल भी पूछा था. असल में आजादी के बाद से ही तमाम राज्यों और मंचों से चमार रेजीमेंट को बहाल किए जाने की मांग कई बार उठाई गई, लेकिन आवाज दबकर रह गई.
चमार रेजीमेंट को 1943 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने बनाया था. यह थलसेना थी. कोहिमा में चमार रेजीमेंट ने जपानियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. यह लड़ाई इतिहास की सबसे खूंखार लड़ाइयों में से एक थी. इस युद्ध में चमार रेजीमेंट की बहादुरी को देखते हुए इसे “बैटल ऑनर ऑफ कोहिमा” से नवाजा गया. इस रेजीमेंट ने देशभक्ति की मिसाल भी पेश की. इस रेजीमेंट की बहादुरी को देखते हुए अंग्रेजों ने इसे आजाद हिंद फौज से लड़ने सिंगापुर भेजा. लेकिन चमार रेजीमेंट के जवानो ने देश की आजादी के लिए संघर्ष करने वाली आजाद हिंद फौज से लड़ने से इंकार कर दिया और सुभाष चंद्र बोस से प्रभावित होकर आईएनए में शामिल हो गए. इससे भड़के अंग्रेजों ने रेजीमेंट के कैप्टन मोहनलाल कुरील को युद्धबंदी बना लिया. इस तरह इसके गठन के तीन साल बाद ही 1946 में इस रेजीमेंट पर प्रतिबंध लगा दिया.
चमार रेजीमेंट पर किताब लिखने वाले सतनाम सिंह के मुताबिक इस रेजीमेंट के तीन सैनिक अभी जिंदा हैं. इसके सैनिक चुन्नीलाल हरियाणा के महेन्द्रगढ़ में हैं, जबकि जोगीराम भिवानी और धर्म सिंह सोनीपत के रहने वाले हैं.
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अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।
yahi sach hai jai bhim bhai
Comment:jay bhim
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