नई दिल्ली। पिछले साल भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान एम.एस धोनी पर एक बायोपिक बनी थी. फिल्म ने खूब धूम मचाया. वो तमाम लोग जो भारतीय क्रिकेट टीम के कैप्टन कूल की एक सहज इंसान और रांची वाले लड़के की कहानी नहीं जानते थे, इस फिल्म ने उसमें सब दिखाया. हालांकि फिल्म और जिंदगी दो अलग-अलग चीजे हैं और किसी की जिंदगी पर फिल्म बनाते वक्त कुछ बातें छोड़ देने की मजबूरी होती है लेकिन फिर भी कुल मिलाकर धोनी की बायोपिक दर्शकों को धोनी के जीवन के तमाम रंगों से परिचित करा गई.
इसमें उनका फुटबॉलर से क्रिकेटर बनना, रांची के दोस्त, रेलवे की नौकरी, क्रिकेट का स्ट्रगल, लव स्टोरी आदि तमाम चीजें दिखाई गई थी. फिल्म में धोनी के धोनी बनने में जिस-जिस ने भूमिका निभाई है, उन सभी किरदारों को समेटा गया है. फिल्म थोड़ी लंबी थी, लेकिन वो फिल्म दर्शकों को संतुष्ट करती है. लेकिन हाल ही में संजय दत्त के जीवन पर बनी फिल्म संजू में संजय दत्त के जीवन के तमाम रंग और तमाम लोग नहीं दिखे.
इस फिल्म के रिलीज होने के पहले संजय दत्त के जीवन से जुड़ी तमाम खबरें मीडिया में खूब छाई रही. उन तमाम सच्ची खबरों की फोटो भी खूब वायरल हुई, लेकिन जब दर्शक फिल्म देखने पहुंचे तो फिल्म से संजय दत्त के जीवन की वो तमाम महत्वपूर्ण बातें गायब थी, जिसके बारे में दर्शक जानना चाहते थे. आइए डालते हैं ऐसी ही घटनाओं पर एक नजर जिसे फिल्म संजू में अनदेखा कर दिया गया.
नंबर-1 लव अफेयर्स
संजय दत्त एक अभिनेता हैं. उनकी पहचान या फिर लोगों की उनमें रुचि की एक यही वजह है. लेकिन फिल्म में उनके फिल्मी जीवन की कोई बात नहीं दिखाई गई है. न किसी फिल्मी कलाकार से दोस्ती न दुश्मनी और न ही प्यार. जबकि संजय दत्त अपनी जिंदगी में 350 लड़कियों से संबंध होने की बात करते हैं. लेकिन फिल्म में उनकी फिल्मी दुनिया की एक भी गर्लफ्रेंड को नहीं दिखाया गया है. जबकि माधुरी दीक्षित और रिया पिल्लई का संजय दत्त की जिंदगी में अहम रोल रहा है.
नंबर-2 निजी जिंदगी
संजय दत्त की निजी जिंदगी के कई महत्वपूर्ण किरदार फिल्म से गायब हैं. सबसे बड़ी मिसिंग संजय दत्त की पहली पत्नी ऋचा शर्मा और बेटी त्रिशाला हैं, जिनको फिल्म से साफ गायब कर दिया गया है. इसी तरह संजय दत्त के जिगरी दोस्त और बहनोई कुमार गौरव भी इस फिल्म से गायब हैं. यह बात खलती है.
नंबर-3 पोलिटिकल कनेक्शन
संजय दत्त जब मुंबई ब्लास्ट में फंसे तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और नरसिंहा राव प्रधानमंत्री थे. तो वहीं महाराष्ट्र में भी कांग्रेस सरकार थी. उस दौरान सुनील दत्त कांग्रेस के एमपी थे. लेकिन बलास्ट के बाद सुनील दत्त को न तो राज्य में और न ही केंद्र सरकार से कोई मदद मिली. तब निराश सुनील दत्त अपने बेटे संजय दत्त की खातिर अपने धुर विरोधी बाल ठाकरे के पास पहुंचे. ठाकरे ने उन्हें निराश नहीं किया.
इस मुलाकात के बाद संजय दत्त के पक्ष में सामना में लेख आए और माहौल बदलने लगा. जमानत मिलने के बाद संजय दत्त अपने पिता के साथ ठाकरे के घर मातोश्री पहुंचे थे, जिसकी तस्वीरें मौजूद हैं. लेकिन यह अहम घटना फिल्म से गायब रही.
नंबर-4 फिल्मी जीवन
संजय दत्त फिल्म स्टार सुनील दत्त और नर्गिस के बेटे हैं. उनका खुद का करियर भी फिल्मों का रहा है. खलनायक और वास्तव जैसी फिल्मों ने संजय दत्त की वापसी को बेहतर बनाया था. लेकिन संजय दत्त के फिल्मी जीवन और शूटिंग से जुड़ा कोई भी किस्सा इस फिल्म में नहीं दिखाया गया, और न ही किसी दूसरे एक्टर को दिखाया गया है. एक जगह महेश मांजरेकर दिखते तो हैं; लेकिन यह चीजों को स्थापित नहीं कर पाती.
नंबर-5 कमजोर कड़ी
ऐसा नहीं है कि फिल्म में और घटनाएं दिखाने की गुंजाईश नहीं थी. क्योंकि फिल्म का पहला भाग काफी आराम से चलता है. घटनाएं आकर ठहर जाती हैं, फिर आगे बढ़ती हैं. फिल्म के डायरेक्टर चाहते तो इस वक्त में कुछ और घटनाओं को भी शामिल किया जा सकता था. तो जेल के कुछ किस्से भी प्रभावी हो सकते थे. मुंबई ब्लास्ट के दौरान की राजनीति को भी और बेहतर तरीके से दिखाया जा सकता था, यह फिल्म के लिए बेहतर होता.
फिलहाल यह फिल्म बड़ी हिट हो चुकी है और रणवीर कपूर ने एक बार फिर अपनी अभिनय क्षमता का लोहा मनवाया है. इस फिल्म ने रणवीर कपूर और संजय दत्त को हिट कर दिया है लेकिन थ्री इडियट और मुन्ना भाई एमबीबीएस वाले राजू हिरानी को थोड़ा पीछे छोड़ दिया है.
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विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।