नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में 7 साल तक सेवा देने के बाद जस्टिस चेलमेश्वर 22 जून को रिटायर हो गए. कई मौके पर जस्टिस चेलमेश्वर का कार्यकाल विवादित रहा. और जाते-जाते भी वो चर्चा के केंद्र में रहे. इनके फैसलों ने आम आदमी को राहत दी तो वहीं सत्ता के हिटलरों को करारी मात भी दी. इनके पूरे कार्यकाल को देखें तो इस दौरान उन्होंने भाजपा को कई झटके दिए.
अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने चीफ जस्टिस की दो बार खिलाफत की. इन तमाम फैसलों के कारण जस्टिस चेलमेश्वर का कार्यकाल विवादों से भरा रहा लेकिन इससे आम लोगों को बड़ी राहत मिली. आइए जानते हैं इनके विवादित कोर्ट लाइफ के बारे में, जो कि बीजेपी के लिए खासे मुसीबत साबित हुए.
पहला मामला जज मामले से जुड़ा है
जज लोया की कथित हत्या के मामले में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का नाम खूब चर्चा में रहा. इसको लेकर जजों का तबादला भी हुआ लेकिन जस्टिस चेलमेश्वर खामोश होकर तमाशा देखने वालों में से नहीं थे. इन्होंने एमबी लोकुर और कुरियन जोसफ के साथ अदालत में केसों की चयन प्रक्रिया और 1 दिसंबर 2014 को सीबीआई के विशेष जज बी.एच. लोया की मौत के संवेदनशील मामलों को उठा गया. इसके बाद बीजेपी के पसीने छुटने लगे थे.
इसी से जुड़ा एक और मुद्दा चर्चा में रहा. यह दूसरी बार था, जब जस्टिस चेलमेश्वर सरकार के लिए सरदर्द बने.
बीजेपी व दीपक मिश्रा को लेकर कई तरह के कयास लग रहे थे कि तभी जस्टिस चेलमेश्वर ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ जंग छेड़ दी. चेलमेश्वर ने अन्य तीन सुप्रीम कोर्ट जजों के साथ सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ 12 जनवरी को अभूतपूर्व प्रेस कान्फ्रेंस की. इससे जमकर बवाल मचा. उनके विरोध को देखते हुए मौजूदा मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कोलेजियम के फैसलों को सार्वजनिक करना शुरू कर दिया. यह सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में एक बड़ी घटना रही.
तीसरा मामला आधार से जुड़ा है
आधार को बीजेपी सरकार हर जगह जोड़ रही थी. आम जनता इसे निजता का उल्लंघन कह रही थी. तब जस्टिस चेलमेश्वर और नौ जजों वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताया. इस फैसले में जस्टिस चेलमेश्वर का बहुत बड़ा योगदान रहा. यह भाजपा के लिए करारी हार जैसा रहा.
आज हम किसी भी नेता के ऊपर सोशल मीडिया पर तीखी से तीखी टिप्पणी कर पाते हैं तो इसमें भी इनका योगदान है. सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक टिप्पणी का हवाला देकर होने वाली गिरफ्तारी को रोकने के लिए भी जस्टिस चेलमेश्वर ने अहम फैसला लिया. उन्होंने आईटी एक्ट की धारा 66 ए को असंवैधानिक घोषित कर सोशल मीडिया को असीम आजादी दे दी. ये चौथा बड़ा फैसला था, जिसने भाजपा को बड़ा झटका दिया था.
नौकरी से जाते-जाते भी उन्होंने कुछ ऐसे फैसले लिए जिसके लिए उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा. जस्टिस चेलमेश्वर शायद सुप्रीम कोर्ट के इकलौते जज होंगे जो अपनी ही विदाई की पार्टी में नहीं पहुंचे थे. बार काउंसिल ने इनकी विदाई को लेकर पार्टी दी थी और उनसे आने का आग्रह किया था, जिसे उन्होंनें ठुकरा दिया था. वह उस दिन कोर्ट भी नहीं पहुंचे. तो अपने रिटायरमेंट से पहले ही उन्होंने यह साफ कर दिया था कि वो रिटायरमेंट के बाद कोई सरकारी नियुक्ति स्वीकार नहीं करेंगे. आने वाले दिन जस्टिस चेलमेश्वर पूर्व जस्टिस हो जाएंगे लेकिन उनके दिए फैसले हर किसी को याद रह जाएंगे.
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