लखनऊ। समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ने के बाद बीएसपी प्रमुख मायावती ने भले ही एसपी से नाता तोड़ लिया हो, लेकिन अब उनकी नजर एसपी के ही कोर वोटरों पर है. लोकसभा में दानिश अली की जगह, जिस तरह से मायावती ने जौनपुर के श्याम सिंह यादव को नेता बनाया है, उससे उन्होंने यादव वोटरों में यह संदेश देने की कोशिश की है, बीएसपी का जुड़ाव यादव वोटरों के प्रति भी है.
मायावती ने लोकसभा चुनाव के बाद एसपी से नाता तोड़ते समय यह कहा भी था कि यादव वोटरों पर एसपी का होल्ड नहीं रह गया है. लिहाजा, अब वह इन वोटरों को साधने की जुगत में हैं.
लोकसभा में पास हुए अनुच्छेद 370 खत्म करने के बिल पर मायावती ने जिस तरह से भाजपा का समर्थन किया, उससे उनके बदले अंदाज का इशारा मिल ही गया था. बुधवार को जिस तरह से उन्होंने लीडरशिप में बदलाव किए हैं, उससे अब उनकी नीति साफ हो गई है. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि बीएसपी यह समझ रही है कि फिलहाल किसी भी राजनीतिक पार्टी के पास अपने कोर वोटबैंक इतने मजबूत नहीं रह गए हैं.
ऐसे में जो भी पार्टी आगे बढ़ना चाहती है, उसे सभी जातियों और वर्गों के वोटों की जरूरत होगी. ऐसे में मायावती की पहली नजर एसपी से छिटक रहे यादव वोटरों पर है. 2014 के बाद प्रदेश में हुए हर चुनाव में यादव अपना वोट एसपी के अलावा दूसरे दलों को ट्रांसफर करते रहे हैं. भाजपा इसमें फेवरेट रही, बावजूद एसपी के पास ही बड़ा शेयर रहा है. हालांकि 2019 के चुनाव में यादव वोटरों में भाजपा ने बड़े पैमाने पर सेंधमारी की.
वहीं, एसपी, जिसका यह कोर वोटबैंक था, वह 2019 के बाद भी ज्यादा सक्रिय नहीं दिख रही है. जमीन पर संघर्ष फिलहाल थम सा गया है. ऐसे में इस बात के कयास ज्यादा पुख्ता हैं कि यादव वोटरों में बिखराव अभी और होगा. लिहाजा मायावती ने चाल चल दी है. उन्होंने यादवों में संदेश साफ कर दिया है कि बीएसपी में भी उनकी सुनी जाएगी. अहम पद भी दिए जाएंगे.
जानकार मानते हैं कि अनुच्छेद 370 पर मायावती ने जिस तरह से भाजपा का साथ दिया, उससे कहीं न कहीं मायावती को डर सता रहा है कि कहीं मुसलमान उनसे न छिटके. लिहाजा जहां अनुच्छेद 370 समाप्त करने को जहां मायाने लद्दाख में बौद्ध अनुयायियों के हक की जीत बताया था, वहीं अब उन्होंने मुस्लिम प्रदेश अध्यक्ष देकर इस समीकरण को बैलेंस करने की कोशिश की है.
दानिश अली की जगह मुनकाद वेस्ट यूपी में ज्यादा प्रभावी नाम हैं. माना यह भी जा रहा है कि मायावती अपना दखल वेस्ट यूपी के मुसलमानों में ज्यादा मजबूत करना चाहती हैं. साथ ही पार्टी ने जिस तरह से लोकसभा में नेता पूर्वांचल से बनाया है, उससे यह भी मायने निकाले जा रहे हैं कि पश्चिम और पूरब के समीकरणों को भी काफी बेहतर सोच के साथ साधने की कोशिश की गई है.
मायावती यूपी की राजनीति में ब्राह्मणों को लुभाने में भी कसर नहीं रखना चाहती हैं. राज्यसभा में जहां ब्राह्मण चेहरे के तौर पर सतीश चंद्र मिश्र हैं, वहीं लोकसभा में रितेश पांडेय को डिप्टी लीडर बनाकर मायावती ने साफ कर दिया है कि उनके अजेंडे से ब्राह्मण बाहर नहीं हैं. वह अपनी सोशल इंजिनियरिंग में ब्राह्मणों को अहम मान रही हैं.
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