ओबीसी आरक्षण से जुड़े एक मामले की सुनवाई से सवर्ण समाज के और ओबीसी समाज के जज को नहीं रखने संबंधित याचिका दायर करने वाले लोकेन्द्र गुर्जर पर अदालत ने 10 लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया है। दरअसल मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में ओबीसी आरक्षण से संबंधित एक मामला चल रहा है। यह मामला लोकेश गुर्जर Vs मध्यप्रदेश सरकार के बीच चल रहा है। इसी मामले में लोकेश गुर्जर ने इस मामले की सुनवाई से सवर्ण समाज के और ओबीसी समाज के जजों को अलग रखने की मांग थी। यानी लोकेश की मांग थी कि मामले की सुनवाई एससी-एसटी समाज के जजों से कराई जाए। लोकेश की यही मांग माननीय जजों को नागवार गुजरी।
न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने 17 जुलाई को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश से सामने आई इस अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह अदालत को डराने का प्रयास था। साथ ही याचिका कर्ता लोकेन्द्र गुर्जर पर दस लाख रुपये का जुर्माना भी लगाने का आदेश सुना दिया।
शीर्ष न्यायालय के जजों के जुर्माने वाले फैसले को लेकर मामता तूल पकड़ गया है। कई लोग इसे न्यायपालिका का मनमानापन बता रहे हैं और जुर्माने की आलोचना कर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने इस मुद्दे को ट्विटर पर उठाया है और इसके खिलाफ मुहिम शुरू कर दी है। दिलीप मंडल का तर्क है कि-
Breaking News: सुप्रीम कोर्ट के जजों का दिमाग़ ख़राब हो गया है। संविधान के मौलिक अधिकारों के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में एक अपील आती है कि ओबीसी आरक्षण से जुड़े केस में, चूँकि ओबीसी और सवर्ण पार्टी यानी पक्ष हैं, इसलिए मामले की सुनवाई निष्पक्ष बेंच करे, जिसमें अनुसूचित… pic.twitter.com/k1AIZFjzFO
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) July 19, 2023
संविधान के मौलिक अधिकारों के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में एक अपील आती है कि ओबीसी आरक्षण से जुड़े केस में, चूँकि ओबीसी और सवर्ण पार्टी यानी पक्ष हैं, इसलिए मामले की सुनवाई निष्पक्ष बेंच करे, जिसमें अनुसूचित जाति और जनजाति के जज हों। गौर करें कि याचिकाकर्ता लोकेंद्र सिंह गुर्जर ओबीसी हैं, पर ओबीसी जज नहीं माँग रहे हैं। निष्पक्ष बेंच की माँग कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के अधिकार में ये तो था कि इस याचिका को ख़ारिज कर देता, लेकिन कोर्ट ने याचिकाकर्ता लोकेंद्र गुर्जर पर ₹10 लाख का जुर्माना लगाया है ताकि लोग आगे से कभी न्यायपालिका के जातिवाद पर बात न करें। कोर्ट भय को हथियार बना रहा है।
दिलीप मंडल ने प्रशांत भूषण द्वारा अदालत की अवमानना की याद दिलाते हुए कहा कि इसी कोर्ट ने प्रशांत भूषण पर सिर्फ़ ₹1 का जुर्माना लगाया था, जबकि प्रशांत बाहर बयानबाज़ी कर रहे थे। लोकेन्द्र पर जुर्माना ग़लत बात है और हम इस मामले में चीफ़ जस्टिस और सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की माँग करते हैं। ये जुर्माना हटाया जाए।
वरिष्ठ पत्रकार का यह भी कहना है कि ये मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। उनकी मांग है कि इस आदेश को देने वाले सुप्रीम कोर्ट के दोनों जजों को हटाने की कार्यवाही शुरू की जाए।
घुटनों के बल जीने के बजाय में खड़ा होकर मरना पसंद करूंगा @Profdilipmandal @nitinmeshram_ @arvind_kumar__ @rajkumarbhatisp @narendramodi @RahulGandhi @digvijaya_28 pic.twitter.com/dtCJSw0CBG
— Lokendra Gurjar लोकेन्द्र गुर्जर (@lokendragurjar) July 19, 2023
इस मामले के सामने आने के बाद इसके पक्ष और विरोध में सोशल मीडिया पर जंग तेज हो गई है। तमाम लोग, जिसमें ज्यादातर सवर्ण समाज के लोग हैं, उनका कहना है कि अदालत के मामलों में जातिवाद की बात नहीं करनी चाहिए। उन्होंने इस मामले में याचिकाकर्ता लोकेन्द्र गुर्जर पर हुई कार्रवाई को सही बताया है। जबकि तमाम लोग लोकेन्द्र की मांग का समर्थन कर रहे हैं। उनका कहना है कि जब न्यायालय में एक ही जाति के लोगों का जमावड़ा लगा है, और मामला जाति से ही जुड़ा हो, ऐसे में लोकेन्द्र की मांग गलत नहीं है। तमाम लोगों ने कोलेजियम सिस्टम को लेकर भी अदालत पर सवाल उठाया है।
कई जाने-माने एक्टिविस्ट भी लोकेश के पक्ष में सामने आए हैं। लंदन युनिवर्सिटी से पोलिटिकल साइंस में पीएचडी कर रहे अरविंद कुमार का कहना है कि यह जुर्माना दस लाख लोगों से एक-एक रुपये लेकर भरा जाना चाहिए।
मेरा मानना है कि OBC समाज के लोगों को यह जुर्माना ज़रूर भरना चाहिए, लेकिन 10 लाख रूपये 10 लाख व्यक्तियों से इकट्ठा करके भरना चाहिए।
एक OBC व्यक्ति सिर्फ़ 1 रूपये चन्दा दे। https://t.co/wnGi1XXbBR
— Arvind Kumar (@arvind_kumar__) July 19, 2023
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के वकील नीतिश मेश्राम ने ट्विट करते हुए कहा है कि वो उन तमाम मामलों की लिस्ट दे सकते हैं, जिसमें जातिवाद होता है।
I can provide a list of cases where judges have committed caste discrimination against SC/ST/OBCs in reservation and allied cases. It is essential that reservation cases are exclusively heard by SC/ST/OBC judges. pic.twitter.com/7JYt0BQ8VQ
— Nitin Meshram (@nitinmeshram_) July 19, 2023
मैं आपको एक घटना की याद दिलाता हूं। साल 2022 का मामला है। रिपोर्ट बीबीसी में प्रकाशित हुई थी। हुआ यह था कि केरल में कोझीकोड के सेशन कोर्ट के जज एस कृष्ण कुमार की अदालत में एक मामला आया था। जिसमें सीवी कुट्टन नाम के व्यक्ति पर 42 साल की दलित महिला के यौन उत्पीड़न का आरोप था। इस पर सुनवाई करते हुए जज एस कृष्ण कुमार ने आरोपी को जमानत दे दी थी। अपने फै़सले में जज ने कहा था, ”यह मानना विश्वास से बिल्कुल परे है कि अभियुक्त ने यह अच्छी तरह से जानते हुए भी कि पीड़िता दलित है, उन्हें छुआ होगा।”
राजस्थान की भंवरी देवी का मामला याद है न। भंवरी देवी का गैंग रेप हुआ था। लंबे समय तक मामला चला। राजस्थान हाईकोर्ट ने दोषियों को सजा सुना दी। लेकिन मामले में लगातार जज बदलने लगे। फिर सुनवाई हुई और नवंबर, 1995 में अभियुक्तों को बलात्कार के आरोपों से बरी कर दिया गया। उन्हें मामूली अपराधों में दोषी करार दिया गया और वे महज नौ महीने की सजा पाकर जेल से छूट गए थे। जजों ने कहा था कि अगड़ी जाति का कोई पुरुष किसी पिछड़ी जाति की महिला का रेप नहीं कर सकता क्योंकि वह ‘अशुद्ध’ होती है।
सोचिए जरा, जिस न्यायपालिका में इस सोच के जज भी बैठते हों, वहां जाति से जुड़े मसले पर पूर्वाग्रह से बचने की मांग करने के लिए मामले से जुड़े जाति पक्ष के जजों को अलग रखना क्या सचमुच में कोई इतना बड़ा गुनाह है कि उसके लिए 10 लाख का जुर्माना लगा दिया जाए?
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।