सिमडेगा। झारखंड के सिमडेगा के पतिअंबा गांव की संतोषी अपने परिवार के साथ कारीमाटी मे रहती थी. करीब 100 घरों वाले इस गांव में कई जातियों के लोग रहते हैं. संतोषी पिछड़े समुदाय की थी. गांव के डीलर ने पिछले आठ महीने से संतोषी के परिवार को राशन देना बंद कर दिया था, क्योंकि, उनका राशन कार्ड आधार से लिंक्ड नहीं था. इस दौरान जैसे-तैसे काम चलता रहा, लेकिन पिछले एक हफ्ते से परिवार भोजन का कोई इंतजाम नहीं कर पा रहा था. संतोषी ने चार दिन से कुछ भी नहीं खाया था. घर में मिट्टी का चूल्हा था और जंगल से चुन कर लाई गई लकड़ियां भी थी. नहीं था तो सिर्फ ‘राशन’. आखिरकार चार दिनों तक भूख से लड़ने के बाद संतोषी हार गई औऱ उसका परिवार मुंह ताकता रह गया. संतोषी की मौत हो गई. वह दस साल की थी.
संतोषी के पिताजी बीमार रहते हैं. कोई काम नही करते. ऐसे में घर चलाने की जिम्मेवारी उसकी मां कोयली देवी और बड़ी बहन पर थी.वे कभी दातून बेचतीं, तो कभी किसी के घर में काम कर लेतीं. लेकिन, पिछड़े समुदाय से होने के कारण उन्हें आसानी से काम भी नहीं मिल पाता था. ऐसे में घर के लोगों ने कई रातें भूखे पेट गुजार दीं.
संतोषी की मां ने बताया कि “28 सितंबर की दोपहर संतोषी ने पेट दर्द होने की शिकायत की. गांव के वैद्य ने कहा कि इसको भूख लगी है. खाना खिला दो, ठीक हो जाएगी. मेरे घर में चावल का एक दाना नहीं था. इधर संतोषी भी भात-भात कहकर रोने लगी थी. उसका हाथ-पैर अकड़ने लगा. शाम हुई तो मैंने घर में रखी चायपत्ती और नमक मिलाकर चाय बनायी. संतोषी को पिलाने की कोशिश की. लेकिन, वह भूख से छटपटा रही थी. देखते ही देखते उसने दम तोड़ दिया. तब रात के दस बज रहे थे.”
हालांकि सिमडेगा के उपायुक्त मंजूनाथ भजंत्रि संतोषी की मौत की जांच के लिए गठित तीन सदस्यीय कमिटी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए संतोषी की मौत की वजह मलेरिया बताते हैं. इसके लिए वह उस डाक्टर का हवाला देते हैं, जिसने संतोषी को देखा था.
दूसरी ओर जलडेगा के हीं सोशल एक्टिविस्ट तारामणि साहू जिला कलेक्टर पर तथ्यों को छिपाने का आरोप लगा रहे हैं. उनका कहना है कि एएनएम माला देवी ने 27 सितंबर को संतोषी को देखा, तब उसे बुखार नहीं था. ऐसे में मलेरिया कैसे हो गया और जिस डाक्टर ने जिला कलेक्टर को यह बात बतायी, उसकी योग्यता क्या है.
सरकार को चाहिए कि वह या तो विश्व स्वास्थ्य संगठन की परिभाषा को मान ले या फिर भूख से मौत को खुद परिभाषित कर दे. क्योंकि, हर मौत को यह कहकर टाल देना कि यह भूख से नही हुई है, दरअसल अपनी जिम्मेवारियों से भागना है. जाहिर है, भूख से हुई एक दस साल की बच्ची की मौत पूरे समाज के लिए शर्मिंदगी की बात है.
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