102 नॉट आउट देखने का मूड है तो यह रिव्यू पढ़कर जाएं

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भारतीय सिनेमा एक बेहतरीन दौर से गुजर रहा है। आज के वक्त में ऐसी फिल्में बन रही है, जैसा एक दशक पहले किसी ने सोचा भी नहीं था. परंपरागत फिल्मों से दूर अक्टूबर और हिचकी जैसी फिल्में झंडा गाड़ रही है तो न्यूटन को ऑस्कर तक में नामांकन मिल चुका है.

निर्देशक उमेश शुक्ला की ‘102 नॉट आउट’ उसी तरह की फिल्म है. सौम्य जोशी के लिखे गुजराती लोकप्रिय नाटक पर आधारित यह फिल्म बुजुर्गों के एकाकीपन की त्रासदी को दर्शाती है. फिल्म में ऋषि कपूर ने 75 साल के बाबूलाल वखारिया का किरदार निभाया है. यह किरदार घड़ी की सुइयों के हिसाब से चलने वाला सनकी बूढ़ा है. उसकी नीरस जिंदगी में डॉक्टर से मिलने के अलावा अगर कोई खुशी और उत्तेजना का कारण है तो वह है उसका एनआरआई बेटा और उसका परिवार. हालांकि, अपने बेटे और उसके परिवार से वह पिछले 17 वर्षों से नहीं मिला है. बेटा हर साल मिलने का वादा करके ऐन वक्त में उसे गच्चा दे जाता है. वहीं, दूसरी ओर बाबूलाल का 102 वर्षीय पिता दत्तात्रेय वखारिया (अमिताभ बच्चन) उसके विपरीत जिंदगी से भरपूर ऐसा वृद्ध है जिसे आप 102 साल का जवान भी कह सकते हैं.

एक दिन अचानक दत्तात्रेय अपने झक्की बेटे बाबूलाल के सामने शर्तों का पिटारा रखते हुए कहता है कि अगर उसने ये शर्तें पूरी नहीं कीं तो वह उसे वृद्धाश्रम भेज देगा. असल में दत्तात्रेय, धमकी देकर और शर्तों को पूरा करवाकर बाबूलाल की जीवनशैली और सोच को बदलना चाहता है. अब 102 साल की उम्र में वह अपने 75 वर्षीय बेटे को क्यों बदलना चाहता है, इसके पीछे एक बहुत बड़ा राज है. इस राज का पता लगाने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.

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