भारत के मेडिकल कॉलेजों में एक अलग तरह का अघोषित आरक्षण लागू कर दिया गया है। इस मनुवादी व्यवस्था ने बहुत शातिराना तरीके से पिछले दरवाजे से एक नए किस्म का आरक्षण शुरू कर दिया है। यह नया आरक्षण असल में धन्ना सेठों के बच्चों को मिलेगा। और वह भी एक-दो सीटों पर नहीं, बल्कि 28% के आसपास मिलेगा। असल में भारत में विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में 28% सीटें ऐसी होती हैं जिन पर आने वाला सालाना खर्च दस लाख रुपए से भी अधिक है। स्वाभाविक है कि इतना पैसा गरीब आदमी तो दे नहीं पाएगा। इसी सीट को धन्नासेठों के बच्चों नाम करने की कवायद शुरू हो गई है। यह 28% आरक्षण अनुसूचित जाति के 15%, अनुसूचित जनजाति के 7.5% और ओबीसी को मिलने वाले 27% आरक्षण से भी अधिक है।
यहाँ पर मजे की बात है कि इस ऊपर के 28% में जाति आधार पर कोई आरक्षण मौजूद नहीं है। इसका मतलब यह हुआ कि जो लोग दस लाख रुपए सालाना खर्च कर सकते हैं उनके लिए 28% आरक्षण मिलेग। अब यह मामला इतना पेचीदा है कि अधिकांश सामाजिक संगठनों और बहुजन समाज के कार्यकर्ताओं की नजर में नहीं आ रहा है।
ये आंकड़े देशभर में 530 एमबीबीएस कॉलेजों के पाठ्यक्रमों की सालाना फीस के गहरे विश्लेषण पर आधारित हैं। इनमें से आधी सीटें प्राइवेट कॉलेजों में हैं, इनमें मैनेजमेंट कोटा और NRI कोटा इत्यादि चलता है। जिसकी फीस 25 लाख रुपए सालाना से भी अधिक होती है। मैनेजमेंट कोटा से मिलने वाली सीटों का सालाना खर्च 11 लाख रुपये से अधिक होता है। यह विश्लेषण बहुत लंबा चौड़ा है, संक्षेप में कहा जाए तो बात यह है कि भारत के 85% से अधिक जनसंख्या वाले बहुजन समाज के लिए मेडिकल कॉलेज की पढ़ाई धीरे-धीरे नामुमकिन बनाई जा रही है। मेडिकल कॉलेज में फीस बढ़ाकर ऐसा इंतजाम किया जा रहा है कि भविष्य में सिर्फ ऊंची जाति के करोड़पति लोगों के बच्चे ही डॉक्टर बन सकें।
वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने इस मुद्दे पर ट्विट कर सवाल उठाया है।
सरकार में हिम्मत है तो सिर्फ ये बता दें कि भारत में बनने वाले इन 28% डॉक्टरों की कटेगरी क्या है और इन्हें NEET एंट्रेंस में नंबर कितने आए थे। सवर्ण मेरिट एक बकवास है। ये वो डॉक्टर हैं जो किडनी चुराएँगे और ऑपरेशन के बाद कैंची अंदर छोड़ेंगे। pic.twitter.com/MlZMGd2FgF
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) March 7, 2021
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