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- सिद्धार्थ रामू
प्रधानमंत्री जी कल (25 मार्च) एनडीटीवी के प्राइम टाइम में दुनिया के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री-आम आदमी के आर्थशास्त्री- ज्यां द्रेज ने कोरोना वायरस के खिलाफ संघर्ष के लिए चार-पांच सुझाव दिए हैं।
प्रधामंत्री जी आप तो जानते हैं कि कोरोना वायरस के खिलाफ संघर्ष के दो मोर्चे हैं। पहला स्वास्थ्य सेवाओं से जुडा है। जिसमें कोरोना की टेस्टिंग सुविधा से लेकर, स्वास्थ्य उपकरणों-विशेषकर वेंटिलेटर- का इंतजाम, स्वास्थ्य कर्मियों के लिए सुरक्षा कीट्स की व्यवस्था आदि शामिल हैं। लेकिन जैसा कि आप ने कहा इसे रोकने का एकमात्र उपाय सोशल डिस्टेंसिंग (यानि सामाजिक अलगाव) बताया है,जिसके लिए आपने पूरे देश में लॉक डाउन की घोषणा की है।
लेकिन लॉक डाउन के बाद असंगठित क्षेत्र के अधिकांश लोगों के रोजी-रोटी के साधन छीन गए हैं। इसमें करीब तीन तरह लोग हैं। एक वे जो हर-दिन कमाते हैं और खातें हैं और जिनके पास अगले दिन के लिए कोई बचत नहीं होती, दूसरे वे ज्यादा से ज्यादा एक सप्ताह या पंद्रह दिन बिना काम के भी भोजन का इंतजाम कर सकते हैं। तीसरे वे जिनके पास महीने भर या इसके कुछ अधिक का इंतजाम हैं। यानि इस देश की करीब 60 प्रतिशत यानि 78 करोड़ के आस-पास की आबादी ऐसी है, जो औसत तौर पर एक महीने से अधिक बिना काम या सरकारी मदद के रोजी-रोटी का इंतजाम नहीं कर सकती है।
इन सभी लोगों के हितों के लिए ज्यां द्रेज ने कुछ जरूरी सुझाव दिएं हैं। जो निम्न हैं-
1- राशन कार्ड से मिलने वाले राशन को दो गुना कर दीजिए और तीन महीने महीने तक मुफ्त में राशन उपलब्ध कराइए। इसमें बीपीएल और एपीएल का बंटबारा भी भी मत कीजिए। बीपीएल और एपीएल सभी कार्ड धारकों को राशन दीजिए। इसमें मेरा सुझाव यह भी है कि इन राशन की दुकानों से राशन कार्ड पर तेल-चीनी एवं साबुन भी उपलब्ध कराइए।
प्रधानमंत्री जी आपको मालूम होगा कि भारतीय खाद्यान्न निगम के पास जरूरत से ज्याद स्टॉक है। इस समय निगम के 74.2 मिलियन टन का भंडार है, जबकि आवश्यक भंडार की अधिकतम सीमा सिर्फ 41.12 मिलियन टन है। यानि निगम के पास 33.08 मिलियन टन अधिक का भंडार है। यह कई महीनों तक राशन मुहैया कराने के लिए पर्याप्त है। और जो आवश्यक भंडार है, वह भी संकट के समय के लिए ही किया जाता है। इससे बड़ा संकट समय कौन सा आयेगा प्रधानमंत्री जी।
प्रधानमंत्री निगम के पास जो भंडार है, वह कहीं विदेश से नहीं आया है, न आसमान से टपका है। यह पूरा भंडार देश के किसानों-मजदूरों की गाढ़ी मेहनत से उपजा है और देश की जनता के टैक्स की कमाई से उसे खरीद कर ऱखा गया है और उसका रख-ऱखाव किया जा रहा है। आखिर किस दिन काम आयेगा।
ज्यां द्रेज का सुझाव मानिए। देश के राशनकार्ड धारियों को तीन महीने तक दो गुना और बिना दाम के राशन उपलब्ध कराने की घोषणा कीजिए और उसे लागू कराइए।
2- ज्यांद द्रेज ने दूसरा सुझाव दिया है कि बूढ़े, विधवा और विकलांग लोगों की पेंशन को दो गुना कर दीजिए। सारी पेंशन जल्द से जल्द जारी कर दीजिए। केरल की तरह कुछ महीनों की पेंशन एडवांस में दे दीजिए।
3- मजदूरों-गरीबों किसानों और ठेला-रेहड़ी लगाने वालों के खातों में सीधे पैसा ट्रांसफर कीजिए। ज्यां द्रेज इसका तात्कालिक तौर पर तरीका भी बताया है। सबसे पहले मनरेगा की मजदूरों के खातों में पैसा डालिए। इसके साथ मेरा सुझाव यह है कि जितने लोगों का जन-धन खाता आप ने खुलवाया था। उसमें भी सीधा पैसा ट्रांसफर कीजिए।
4-ज्यां द्रेज ने शहरों में फंसे प्रवासी मजदूरों के लिए रिलिफ कैंप खोलने का सुझाव दिया है। पूरे देश में ऐसे मजदूरों की संख्या करोड़ों में है। इन रिलिफ कैंपों में सोशल डिस्टेंसिंग के साथ रहने- खाने का इंतजाम कीजिए।
ज्यां द्रेज ने यह भी बताया कि इसके लिए करीब 3 से 4 लाख करोड़ खर्च होगा। प्रधामंत्री जी यह देश के 78 करोड़ लोगों को बचाने के लिए कुछ ज्याद पैसा नहीं है। आपने ने अपने कार्पोरेट मित्रों को पलक झपते ही 1 लाख 50 हजार करोड़ की छूट बजट के पहले ही दे दिया था। इसके साथ ही आरबीआई से सरप्लस और लाभांश के रूप में आपने 1 लाख 76 हजार करोड़ रूपया ले लिया और अपने कार्पोरेट मित्रों को विभिन्न रूपों में सौंप दिया। कार्पोरेट टैक्स में छूट और उनके द्वारा लिए कर्जों को एनपीए (माफ) करके।
आप अपने चंद कार्पोरेट मित्रों को पलक झपते 1 लाख 50 हजार करोड़ की सौगात दे सकते हैं। तो क्या देश की 78 करोड़ जनता के लिए यह देश 3 से 4 लाख नहीं खर्च कर सकता है। माना ये लोग (आम जनता) आपके अडानी-अंबानी जैसे मित्र नहीं हैं, लेकिन हैं तो इस देश के ही लोग। इनका भी खयाल करिए।
इसके अतिरिक्त करीब 2 लाख करोड रूपए स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जरूरत पड़ेगी।
यानि कुल करीब 5 लाख करोड़ की जरूरत है। इस धन इंतजाम अधिकांश राज्य सरकारें नहीं कर सकती हैं। केंद्र सरकार ही कर सकती है। ज्यां द्रेजे ने यह भी कहा है कि जरूरत हो तो वित्तीय घाटा बढ़ने दीजिए।
प्रधानमंत्री इसे महाभारत का युद्ध मत बनाइए। जिसमें दोनों पक्षों के अधिकांश लोग मारे दिए गए था। एक उल्लेख के मुताबिक इस युद्ध में दोनों पक्षों से करीब 4 5 लाख लोग शामिल हुए थे, जिसमें सिर्फ 18 योद्धा बचे थे। बहुसंख्यक लोगों को बचाने के बारे में सोचिए। मरने के लिए मत छोडिए। ज्यां द्रेज का सुझाव मान लिजिए।
(एनडीटीवी के प्राइम टाइम शो की प्रस्तुति की स्मृति के आधार पर, कुछ चीजें मैंने जोड़ी हैं)
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