एक ब्राह्मण मित्र हैं वे एक बहुत बड़े बिजनेस स्कूल से बड़ी डिग्री लिए हुए हैं। पिछले कई सालों से बार-बार फोन करके दलितों एवं ट्राइबल समाज के लोगों की समस्याओं के बारे में चर्चा करते रहे हैं।
वे अक्सर यह जानना चाहते हैं कि दलितों ओबीसी और ट्राइबल की समस्याएं क्या है। अक्सर वे अपनी चर्चा के दौरान यह भी बताने की कोशिश करते हैं कि वह कितने संवेदनशील हैं और कितनी गहराई से इन ‘बेचारों’ की समस्याओं को जानने समझने की कोशिश करते रहे हैं।
अब वे मेरे अच्छे मित्र रहे हैं और कई सालों से गंभीरता से बातचीत करते रहे हैं, मैं भी उन्हें अपने मन की बात बताता आया हूं। लेकिन पिछले कुछ महीनों से उनकी चर्चाओं का स्वरूप बदल गया है, जैसे ही राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की चर्चा पूरे देश पर हावी हुई है, और जैसे ही NRC के विरोध मे शाहीन बाग और आजकल किसान आंदोलन जैसे उदाहरण पूरे देश में उठ खड़े हुए हैं उनके प्रश्नों का स्वरूप बदल गया है। उन्हे विशेष रूप से इस बात से दिक्कत है कि ओबीसी और दलित लोग मुसलमानों से भाईचारा क्यों दिखाने लगे हैं?
अब उनके प्रश्न शिकायत में बदल गए हैं अब वे मित्र यह पूछना चाहते हैं कि ये दलित ओबीसी और ट्राईबल लोग इन “मुसलमानों” से इतनी मोहब्बत क्यों कर रहे हैं? इन ओबीसी दलितों आदिवासियों को अपने देश की चिंता क्यों नहीं है? इन लोगों को मुसलमानों की इतनी चिंता क्यों होने लगी है?
यह सवाल सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ। पिछले कई सालों में उनसे हो रही चर्चाओं को मैंने फिर से याद किया।
मैंने समझने की कोशिश की कि क्या वास्तव में यह सज्जन ओबीसी दलित और ट्राइबल समाज की भलाई चाहते थे? या फिर यह सिर्फ दूसरे खेमे के राज जानना चाहते थे? मैं यह जान पाया कि वह एक राजनीतिक व्यक्ति हैं जो कि अपनी सुविधा के लिए किन्ही खास और जरूरी प्रश्नों का उत्तर ढूंढना चाहते हैं।
मैंने इस बात की राजनीति को समझ कर दूसरे ढंग से उनसे बात करना शुरू कर दिया।
पिछले महीने दो तीन बार उनका फोन आया मैंने उनके सवालों का जवाब देने की बजाय उनसे खुद से सवाल पूछने शुरू किया मैंने पूछा कि ब्राह्मणों के बीच में इतना जातिवाद क्यों है? एक सरयूपाणी ब्राह्मण एक पाठक या जोशी ब्राह्मण को अछूत क्यों समझता है? पंक्ति पोषक और पंक्ति दूषण ब्राह्मण क्या होते हैं? एक देशस्थ ब्राह्मण और कोकणस्थ ब्राह्मण के बीच में विवाह करने में क्या समस्या है? एक ठाकुर क्षत्रिय की बेटी किसी उपाध्याय ब्राह्मण से शादी क्यों नहीं कर सकती? आजादी के बाद भी अभी हाल ही तक ब्राह्मणों के परिवार में स्त्रियों को शिक्षा एवं रोजगार की आजादी क्यों नहीं थी?
यह सवाल सुनते ही वे भड़क गए। मैंने उनके क्रोध को भांपकर पूछा कि भाई यह सवाल तो आपके समाज पर भी उठते ही हैं, आपके समाज में भी वही समस्याएं हैं जो कि दूसरी जातियों और समाजों में है।
अगर आप वास्तव में इन समस्याओं का समाधान करना चाहते हैं तो आपको अपने घर से शुरू करना चाहिए, अगर आपको लगता है कि दलितों ओबीसी और ट्राइबल समाज में जातिवाद की समस्या ने उनका बड़ा नुकसान किया है तो आपको यह भी देखना चाहिए कि खुद ब्राह्मण बनिया एवं क्षत्रिय समाज में भी जातिवाद भयानक रूप से प्रचलित है। अगर वास्तव में आप इन समस्याओं के प्रति गंभीर हैं तो आपको वहां से शुरू करना चाहिए जहां आप खुद खड़े हैं।
मेरी यह बातें सुनकर उन्हें बड़ा आश्चर्य और दुख हुआ, उनकी महान बनने की सारी कोशिश बर्बाद हो गई। मेरे सवालों ने उन्हें उन्हीं की नजर में एक बेचारा साबित कर दिया। अभी तक वे दूसरों को बेचारा समझ कर उनका अध्ययन कर रहे थे लेकिन जब मैंने उनका अध्ययन करना शुरू किया तो वह खुद बेचारे बन गए। और इस बात से उन्हें बहुत तकलीफ हुई।
यह बड़ी मजेदार बात है, इस देश को जातिवाद और छुआछूत सिखाने वाले लोग हमेशा दूसरों का अध्ययन करते रहे हैं और खुद अपना अध्ययन कभी नहीं करते। दूसरों का अध्ययन करते हुए वह सिद्ध कर देते हैं कि वह खुद तो पहले से ही महान है बस दूसरों को थोड़ा और सुधारना है, फिर सब ठीक हो जाएगा। यह भारत की ऐतिहासिक समस्या है, भारत की सबसे बड़ी राजनीति का सबसे गंदा चेहरा यही है।
इसीलिए मैं अपने ब्राह्मण एवं सवर्ण मित्रों को बार-बार कहना चाहता हूं कि अगर आपको वास्तव में इस देश की कोई चिंता है और इस देश से जातिवाद छुआछूत और भेदभाव को खत्म करना चाहते हैं तो आपको अपने घर और अपने समाज से ही शुरू करना चाहिए। मैने उन मित्र से कहा कि आपको अगर पूरे समाज में रोशनी फैलानी है तो सबसे पहला दीपक आपको अपने घर में जलाना चाहिए तब आपको पता चलेगा कि जातिवाद छुआछूत और भेदभाव का असली जहर क्या है? और वह कैसे काम करता है?
तभी आप दूसरों की भी मदद कर पाएंगे अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो आप सिर्फ एक गंदी राजनीति खेल रहे हैं।आप का सबसे पहला कर्तव्य है कि आप इस बात को सामने लाएं की तथाकथित ऊंची जातियों में स्त्रियों का शोषण किस तरह होता है? तथाकथित ऊंची जातियों में आपस में जाति और वर्ण के क्या भेदभाव हैं? और किस तरह से इन तथाकथित ऊंची जातियों में धर्म और कर्मकांड के गंदे अंधविश्वास फैले हुए हैं?
मेरी यह बात सुनते हुए वे तथाकथित प्रगतिशील मित्र भड़क गए और फोन काट कर भाग गए और फेसबुक पर भी ब्लॉक कर दिया।

संजय श्रमण गंभीर लेखक, विचारक और स्कॉलर हैं। वह IDS, University of Sussex U.K. से डेवलपमेंट स्टडी में एम.ए कर चुके हैं। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (TISS) मुंबई से पीएच.डी हैं।
बहुत खूब संजय जी आपने तो अपने मित्र की आंखे खोल दी🤣😃