बेंगलुरु। कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु निवासी दलित महिला चेतना कुमारी पी पिछले 22 दिनों से उत्पीड़न और दुर्व्यहार के खिलाफ कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) कार्यालय के सामने विरोध प्रदर्शन कर रही हैं। चेतना का दावा है कि उसे और उसके बच्चों को सवर्ण गौड़ा समुदाय के लोगों द्वारा डराया-धमकाया जा रहा है।
दलित दस्तक को चेतना ने बताया कि उनकी शहर के देवसंद्रा इलाके में रम्मया हॉस्पिटल के पास पुश्तैनी जमीन है। मेरे पिता ने इस जमीन को 60 साल पहले खरीदा था। अब यह पॉश कॉमर्शियल इलाका है और मेरी जमीन की कीमत करीब 20 करोड़ है। इस जमीन को गौड़ा समाज के कुछ लोग जबरन कब्जा करना चाहते है। इसको लेकर आरोपी उसके परिवार को लगातार परेशान कर रहे हैं।
चेतना का आरोप, उप मुख्यमंत्री के करीबी है आरोपी
चेतना का कहना है कि पुलिस, नौकरशाहों और राजनेताओं से मदद के लिए कई अपीलों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। आरोपियों की सिस्टम में गहरी पैठ के कारण उसकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। आरोपी आए दिन उसके साथ गुंडागर्दी करते है और धमकाते है। पुलिस भी उनसे मिली हुई है।
चेतना ने आरोप लगाया कि कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी. के. शिवकुमार उत्पीड़न में शामिल अपने समुदाय के सदस्यों को बचा रहे है। आरोपियों का बैंगलोर के कुख्यात डॉन कोथवाल रामचंद्र के साथ पुराना संबंध है। शिवकुमार भी उसी आपराधिक नेटवर्क से जुड़े थे। चेतना ने कहा- ” जमीन छोड़ने के लिए लगातार धमकियां दी जा रही हैं। अगर मुझे या मेरे बच्चों को कुछ भी होता है, तो डी. के. शिवकुमार 100 प्रतिशत जिम्मेदार होंगे।”
पीछे नहीं हटूंगी, लडूंगी
चेतना ने पीछे हटने से इनकार किया हैं। धमकी के बावजूद अपनी जमीन नहीं छोड़ने की कसम खाई हैं। उन्होंने कहा- “मैं दलित हो सकती हूँ, लेकिन मैं मूर्ख नहीं हूँ। मुझे अपने अधिकार पता हैं और मैं चुप नहीं रहूँगी।”
केपीसीसी कार्यालय के बाहर बनाती है प्रेरक वीडियो
हर दिन, केपीसीसी कार्यालय के बाहर बैठकर चेतना कुमारी वीडियो रिकॉर्ड करती हैं, जिसमें वे सरकार से न्याय करने का आग्रह करती हैं। अपने समुदाय से सच्चाई की लड़ाई में उनका साथ देने की अपील करती हैं।
चेतना ने यह भी कहा कि शिक्षित लोग उत्पीड़न के खिलाफ चुप क्यों रहते हैं? हमें पीटा जा सकता है। यहाँ तक मार भी जा सकता है, लेकिन हमें आवाज उठानी चाहिए।
दलित ही अंग्रेजों के खिलाफ खड़े हुए
चेतना ने दलित समुदाय से एकजुट होने, लड़ने और अपने अधिकारों का दावा करने की अपील की है।उन्होंने कहा- “वह दलित ही थे जो अंग्रेजों के खिलाफ खड़े हुए। अब समय आ गया है कि हम जातीय उत्पीड़न के खिलाफ भी ऐसा ही करें। 5,000 साल पुरानी जातीय मानसिकता पर काबू पाना आसान नहीं होगा। हमारा दुश्मन जिद्दी है और उससे लड़ने के लिए हमें दोगुना जिद्दी होना होगा।”
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।