इन दिनों प्रकाश राज एक जाना-पहचाना नाम है। उनकी सोशल मीडिया टिप्पणियों पर होने वाले ट्रोल विद्वेष से भरे होते हैं। प्रदर्शनकारी यकायक सामने आकर यों ही उन्हें तंग करने लगते हैं। कन्नड़ अभिनेता से राजनीतिक आंदोलनकारी बने ये सत्तारूढ़ राजनीति के लोकाचार की अपनी तीखी आलोचनाओं के लिए हर दूसरे दिन सुर्खियों में रहते हैं। उनका कहना है कि अपनी युवावस्था के दिनों से ही वे प्रतिरोधी रंगमंच करते रहे हैं। अपनी स्मृतियों की गुदगुदाहट के बीच वे कहते हैं कि मैं और मेरे दोस्त एक जर्जर-सी छोटी बस से कर्नाटक के दौरा किया करते थे और राजनीतिक नाटक खेलते थे। उन नाटकों ने हमें खूब गाली-गलौज और धमकियाँ दिलवाईं।
अगले ही क्षण उनके स्वर में सख़्ती आ जाती है। वे कहते हैं कि ‘‘मुझे धमकाने का कोई फायदा नहीं है। यह मुझे और भी मजबूत बनायेगा और मेंरी आवाज़ को और भी तेज।’’ कुछ दिनों पहले लोगों के एक झुंड ने उनकी कार को उत्तरी कर्नाटक के गुलबर्ग में एक रेस्टराँ के बाहर रोककर नारेबाजी करना तथा धमकाने वाले इशारे करना शुरु कर दिया। उन्होंने उनसे पाकिस्तान चले जाने को कहा। प्रकाश राज उत्तेजित होकर कहते हैं कि ‘‘इन संघियों पर पाकिस्तान का भूत छाया हुआ है। ये मूर्ख मुझसे छुट्टियाँ बिताने और फिर कभी वापिस न लौटने के लिए किसी बेहतर सैरगाह या किसी खूबसूरत और खुशहाल देश के बारे में क्यों नहीं पूछते ॽ वे पाकिस्तान से इतर किसी दूसरे देश के बारे में क्यों नहीं सोच सकते ॽ’’
ऐसे समय जब सिर पर आ चुके विधानसभा चुनाव के कारण कर्नाटक का राजनीतिक पारा ऊपर चढ़ रहा था, तो राज राज्य में इधर से उधर घूमते हुए धुँआधार भाषण दे रहे थे। इस दौरान अक्सर उनके गुस्से के निशाने पर भाजपा रही और उन्होंने बिना किसी लाग-लपेट के इसे स्वीकार भी किया। वे मुझसे कहते हैं कि ‘‘लोगों के लिए मेरा संदेश साफ है। संघ परिवार सांप्रदायिकता नामक ज़हर से हमारे समाज को नष्ट कर देन की कोशिश कर रहा है। लेकिन इसके साथ-साथ यह भी स्पष्ट कर देता हूँ कि मैं किसी राजनीतिक दल के सदस्य के रूप में नहीं बल्कि इस देश के एक नागरिक के रूप में भाजपा का विरोध कर रहा हूँ।’’
उन्हें आग बबूला कर देने वाला सबसे हालिया मामला है – जम्मू के निकट कठुआ की उस छोटी सी बच्ची के साथ हुआ बलात्कार और उसकी हत्या। वे पूछते हैं कि ‘‘एक समुदाय को आतंकित करने के उद्देश्य से इस भयावह कृत्य को अंजाम दिया गया गया था। जब लोगों ने इसका विरोध किया तो सत्तारूढ़ दल और उसके कार्यकर्ता आरोपी के बचाव में विरोध प्रदर्शन आयोजित करते हैं। लोगों द्वारा आपको दी गई ताकत का इस्तेमाल करने का क्या यही रास्ता है ॽ’’
एक अभिनेता के रूप में राज वाणिज्यिक फिल्मों में निभाई गई अपनी नकारात्मक भूमिकाओं के लिए ज्यादा चर्चित रहे हैं – सलमान खान की ‘वांटेड’ में गनी भाई और अजय देवगन की ‘सिंघम’ में जयकांत शिकरे की भूमिकायें उन्होंने ही की थी। और वे तीन बार के राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता हैं। किंतु परदे से बाहर का उनका वर्तमान व्यक्तित्व एक संदेश प्रचारक का है।
बहुत से लोग राज के इस जोशीले और आवेश भरे पक्ष से अनजान थे। कम से कम एक साल पहले तक तो लोग इसके बारे में नहीं ही जानते थे। वे खुद स्वीकारते हैं कि वे सदैव बेचैन रहते थे किंतु वे किसी भी राजनीतिक दल को विशेषत: निशाना न बनाते हुए अपने राजनीतिक और सामाजिक विचारों पर मित्रों के साथ चर्चा करके या जस्ट आस्किंग के हैश टैग के साथ ट्वीट करके ही खुश थे।
गत वर्ष पत्रकार और कार्यकर्ता गौरी लंकेश की हुई हत्या ने इसे बदल दिया। राज और लंकेश बहुत ही पुराने मित्र थे। राज कहते हैं कि ‘‘एक समय आता है जब कुछ दरक जाता है। गौरी की हत्या ऐसे ही थे जैसे यह मेरे परिवार के किसी सदस्य के साथ और मेरी ही दहलीज पर घटी हो। सिर्फ बेचैन रहना और खुलकर न बोलना अब कोई विकल्प न था।’’
वे आगे कहते हैं ‘‘जब मैंने लोगों को उनकी हत्या का जश्न मनाते देखा और जब मैंने इस पर सवाल किया तो माफी की बात तो दूर रही, उन्होंने मुझे ट्रोल करना शुरु कर दिया। तभी मुझे अहसास हुआ कि इन लोगों में कुछ गंभीर किस्म की समस्या है और उन्हें ठीक से जबाव देना पड़ेगा। मैंने अपने आप से कहा कि मैं अपनी गौरी को वापिस नहीं पा सकता किंतु मैं और गौरियों के साथ ऐसा होने से रोकने की कोशिश कर सकता हूँ और रोक भी सकता हूँ।
वे जहाँ भी जाते हैं, वहाँ लोगों को बताते हैं कि लोगों के मन में डर बैठाने और एक विशेष वृत्तांत थोपने के लिए गौरी को मारा गया था। एक हिंदू पिता और धर्म परायण कैथोलिक ईसाई माँ के यहाँ जन्मे राज कहते हैं कि ‘‘हिंदुत्व का यह वृत्तांत इस देश और इसकी संस्कृति के आधारभूत लोकाचार के खिलाफ है। हम सहिष्णु लोग हैं और वे हमें नफरत से भर देना चाहते हैं। किंतु हम ऐसा नहीं होने दे सकते। मेरे लिए भ्रष्टाचार की अपेक्षा सांप्रदायिकता ज्यादा बड़ा खतरा है।’’
विभिन्न कस्बों और शहरों में उनके भाषणों ने भाजपा को इतना ज्यादा उत्तेजित कर दिया कि इस दल ने राज के खिलाफ राज्यभर में विरोध प्रदर्शन आयोजित किये। आपने खिलाफ होने वाले ट्रोल और विरोध प्रदर्शन के बाद भी राज कहते हैं कि इन चीजों के सकारात्मक पक्ष भी नगण्य नहीं हैं। ‘‘कभी-कभी लोग ट्वीटर पर बहुत ही अपमानजनक हो जाते हैं। कभी-कभी आपको गाली-गलौज भी सुनने को मिल सकता है और आपको यह प्रतिक्रियावादी बना सकता है। लेकिन याद रखिए कि गाली-गलौज वाले हर ट्रोल के साथ ही आप सैकड़ो समर्थक भी पा लेते हैं। इन विरोध प्रदर्शनों के मामले में भी यही चीज है। मुखर होकर बोलने के लिए हजारों ने मुझे धन्यवाद दिया और इस यात्रा में बहुत से लोग मेरे साथ आ रहे हैं। जो चीज गलत है, उस पर सवाल पूछने के लिए और हर सही चीज के साथ खड़े होने के लिए अगर मैं लोगों को प्रेरित करता हूँ तो इससे ज्यादा और क्या मैं संभवत: अनुरोध कर सकता हूँ ॽ’’
वे ऐसा कह सकते हैं किंतु उनके खिलाफ होने वाले विरोध प्रदर्शन उनके परिवार को चिंता में डाल देते हैं। ‘‘मेरी माँ दिन में दो बार प्रार्थना करती है और यहाँ तक कि मेरी पत्नी और तीनों बेटियाँ भी मुझे लेकर चिंतित हैं। पर मैं उन्हें आश्वस्त करता हूँ कि जो भी मैं कर रहा हूँ, वह देश के लिए कर रहा हूँ। मैं उन्हें यह भी बोलता हूँ कि मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूँगा कि जिसके लिए उन्हें शर्मिंदा होना पड़े।
उनके वार्तालाप जिन्हें उन्होंने ‘# जस्ट टाकिंग’ नाम दिया है, वे पूरे कर्नाटक में विभिन्न कस्बों और शहरों में सभी आयु वर्ग के सैकड़ों लोगों को आकर्षित कर रहे हैं। राज दावा करते हैं कि लोग सांप्रदायिक राजनीति से पक चुके हैं – ‘‘मानव जाति के इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं जब लोग ठगे गये हैं। 2014 में विकास के वायदे किये गये थे और जो हमें मिला, वह है – सांप्रदायिक राजनीति। लोगों को हमेंशा मूर्ख नहीं बनाया जा सकता। मैं जो धरातल पर देख रहा हूँ, वह अगर मतों में रूपांतरित हो जाये तो भाजपा को कर्नाटक में ऐसा पाठ सीखने को मिलेगा कि जिसे वह कभी नहीं भूल पायेगी।’’
क्या वे राजनीति में आने वाले हैं या किसी राजनीतिक दल के समर्थन में सामने आने वाले हैं ॽ हाल ही में वे जनता दल (सेकुलर) के एच.डी. कुमारस्वामी के साथ देखे गये थे, तो इसके क्या मायने हैं ॽ किंतु राज अपने इनकार पर कायम हैं – ‘‘पिछले तीस सालों से राजनीति पर बारीक निगाह रखने के बाद मैं किसी पर भी भरोसा करने की स्थिति में नहीं हूँ। लोग मुझ पर और मेरे इरादों पर संदेह कर सकते हैं और उनके पास ऐसा करने का हर एक कारण भी है। और हर बार यह सवाल उठाये जाने पर मैं भी यही जबाव देने को तैयार हूँ। नहीं, मैं किसी भी राजनीतिक दल के साथ जुड़ने का इच्छुक नहीं हूँ।’’
क्या वे इससे नहीं डरते कि उनकी राजनीतिक सक्रियता फिल्मों में उनके काम पर प्रभाव डाल सकती है ॽ वे कहते हैं कि ‘‘वास्तव में नहीं। दक्षिण में सृजनात्मक लोग हमेंशा आम जन को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर खड़े होते रहे हैं और तब भी खड़े होते रहे हैं जब वे राजनीतिक माहौल को दमघोंटू पाते हैं। हमारे पास इसका सुदीर्घ इतिहास है।’’
वे उल्लेख करते हैं कि नरेंद्र मोदी के चेन्नई आगमन के खिलाफ हाल में कैसे तमिल सिनेमा उद्योग तमिल लोगों के साथ खड़ा हो गया था। राज कहते हैं कि ‘‘उनका स्वर एक था। और मोदी को संदेश भी मिल गया। मुझे तमिल सिनेमा उद्योग पर गर्व है।’’
और बॉलीवुड के बारे में वे क्या कहेंगे ॽ उनका स्वर सहानुभूति का है – ‘‘शाहरुख खान जैसे कुछ लोगों ने कुछ मुद्दों पर अपनी आवाज़ उठाई है। लेकिन हिंदी सिनेमा उद्योग में बहुत कुछ दाव पर लगा हुआ है और यही कारण है कि वह ज्यादा रक्षात्मक है। मैं उन्हें बहुत ज्यादा दोष नहीं देना चाहता।’’ लेकिन वे यह भी मानते हैं कि भाजपा के खिलाफ पक्ष लेना आरंभ करने के बाद बॉलीवुड की तरफ से उनके लिए काम की पेशकश खत्म हो गई है।
राज जिनका वास्तविक नाम प्रकाश राय हैं, वे अब भी कर्नाटक में अपने मूल नाम से जाने जाते हैं। वास्तव में ये तमिल निर्देशक बालचंदर थे, जिन्होंने उनका नाम राय से राज किया था। यह नब्बे का बिल्कुल शुरुआती वक्त था। तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच जब कावेरी जल विवाद जोर पकड़ रहा था तभी फिल्म ‘डुएट’ प्रदर्शित हुई थी। और बालचंदर नहीं चाहते थे कि कोई फिल्म पर इस बहाने निशाना न साधे कि उन्होंने फिल्म में एक कन्नड़ अभिनेता रखा था।
फिल्मों में सितारा बनने के लिए अपना उपनाम छोड़ देने वाले इस मुद्दे को लेकर भी कुछ भाजपाई नेताओं ने उन पर ताने कसे हैं। उन्हें आप यह बतायेंगे तो राज दिलीप कुमार, रजनीकांत, राजकुमार और मामूट्टी के नाम गिनाना शुरु कर देंगे। वे कहते हैं कि लोग इन्हें उनके परदे के नामों से ही जानते हैं, न कि वास्तविक नामों से। वे (भाजपाई) बेवजह विवाद पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं।
रंगमंच में रुचि रखने वाले महाविद्यालयी छात्र के रूप राज पत्रकार और लेखक पी. लंकेश के लेखन के प्रति आकर्षित थे जो में गौरी लंकेश के पिता थे – ‘‘मैं उनके कार्यालय जाता और सूरज की धूप में उनसे हर चीज पर चर्चा करता और ये विचार-विमर्श बहुत ही प्रेरणादायक थे। वहाँ ऐसे बहुत से लेखक, रंगमंच से जुड़े आंदोलकारी और दूसरे लोग होते थे जो इन जमावड़ों का हिस्सा होते थे। वे मेरी पीढ़ी के प्रेरणास्रोत थे। वे मुझ जैसे युवकों से कहा करते थे कि ‘सिर्फ अपने सपनों के पीछे चलो। अपनी स्वयं की एक पहचान बनाओ।’ ’’
उनका कहा अनसुना नहीं गया। एक दिन राज ने महाविद्यालय न जाने और उसकी जगह रंगमंच पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला कर लिया। उन्होंने लंबे समय तक इसे अपने परिवार से छिपाये रखा – ‘‘नौकरियाँ तो थी नहीं और वाणिज्य पढ़कर मैं एक लिपिक नहीं बनना चाहता था। रंगमंच मुझे एक पहचान दे रहा था। यह वह माध्यम था जिसे मैं समझता था। अन्य किसी चीज की मुझे जरूरत न थी।’’
उनका कहना है कि वे आज भी प्रेरणा की तलाश में रहते हैं, और पुरानी पीढ़ी की बजाय जिग्नेश मेवानी, कन्हैया कुमार और उमर खालिद जैसे लोग उन्हें प्रेरित करते हैं – ‘‘ वे इस देश के लिए उतना कर रहे हैं, जितने कि मैं कल्पना भी नहीं कर सकता। अपने पेशे के कारण मैं सुरक्षित क्षेत्र में हूँ। आर्थिक रूप से मैं सुरक्षित और स्वतंत्र हूँ। मेरा अपना नाम है। लेकिन इन युवाओं को देखो। वे इस देश और इसके भविष्य के लिए लड़ रहे हैं। हो सकता है कि मुझे प्रबोधन देर से मिला हो किंतु अब मैं भी यहाँ हूँ। और जब तक संभव हो पायेगा तब तक मैं लड़ूंगा।’’
*13 मई 2018 के दि टेलेग्राफ में छपा कन्नड़ अभिनेता प्रकाश राज का साक्षात्कार
(अनुवादक: डॉ. प्रमोद मीणा, सहआचार्य, हिंदी विभाग, मानविकी और भाषा संकाय, महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, जिला स्कूल परिसर, मोतिहारी, जिला–पूर्वी चंपारण, बिहार-845401, ईमेल – pramod.pu.raj@gmail.com, pramodmeena@mgcub.ac.in; दूरभाष – 7320920958 )
Read also-एक्टर इंदर कुमार का रूला देने वाला सुसाइड वीडियो कितना सच?
- दलित-बहुजन मीडिया को मजबूत करने के लिए और हमें आर्थिक सहयोग करने के लिये दिए गए लिंक पर क्लिक करें https://yt.orcsnet.com/#dalit-dastak
दलित दस्तक (Dalit Dastak) एक मासिक पत्रिका, YouTube चैनल, वेबसाइट, न्यूज ऐप और प्रकाशन संस्थान (Das Publication) है। दलित दस्तक साल 2012 से लगातार संचार के तमाम माध्यमों के जरिए हाशिये पर खड़े लोगों की आवाज उठा रहा है। इसके संपादक और प्रकाशक अशोक दास (Editor & Publisher Ashok Das) हैं, जो अमरीका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में वक्ता के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दलित दस्तक पत्रिका इस लिंक से सब्सक्राइब कर सकते हैं। Bahujanbooks.com नाम की इस संस्था की अपनी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुकिंग कर घर मंगवाया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को ट्विटर पर फॉलो करिए फेसबुक पेज को लाइक करिए। आपके पास भी समाज की कोई खबर है तो हमें ईमेल (dalitdastak@gmail.com) करिए।