बस्तर। बस्तर के आदिवासी केंद्र और राज्य सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू कर सकते हैं. आदिवासियों का कहना है कि केंद्र और राज्य सरकार आदिवासियों से जुड़े संवैधानिक अधिकारों को लागू करने में असफल साबित हुई है. ‘सर्व आदिवासी समाज’ ने राज्य और केंद्र सरकार को अगले छह महीने में आदिवासियों से जुड़े संवैधानिक अधिकारों को लागू करने की समयसीमा दी है. आदिवासियों का कहना है कि अगर सरकारें इस निश्चित समय में आदिवासियों की मांगें नहीं मानती है तो अलग बस्तर राज्य के लिए आंदोलन शुरू होगा.
दरअसल, आदिवासियों पर सरकार और सुरक्षा बलों द्वारा हो रहे है अत्याचार और शोषण के खिलाफ ‘सर्व आदिवासी समाज’ के सदस्यों ने कमिश्नर दिलीप वासनीकर और आईजी विवेकानंद के साथ बैठक की. आदिवासी समाज ने सरकार और सुरक्षा बलों द्वारा हो रहे अत्याचारों की शिकायत की. कई घटनाओं को भी बताया.
- पालनार घटनाः 31 जुलाई 2017 को दंतेवाड़ा जिला के पालनार कन्या आश्रम में रक्षाबंधन कार्यक्रम आयोजित किया गया था. इस कार्यक्रम में कुछ आदिवासी छात्राओं के साथ सुरक्षा बल के कुछ जवानों पर छेड़छाड़ करने का आरोप है. मामले में दो आरोपी जेल में हैं. इस घटना को लेकर आदिवासियों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है.
- परलकोट घटनाः 9 अगस्त 2017 को विश्व आदिवासी दिवस के दिन आदिवासी समाज की रैली और सभा में एक समुदाय विशेष के लोगों ने खलल डाला था. जिसे लेकर आदिवासी समाज ने आज भी काफी आक्रोशित है.
- विनिवेशः नगरनार में निर्माणाधीन स्टील प्लांट के विनिवेश के केन्द्र सरकार के फैसले का आदिवासियों ने विरोध किया है. आदिवासियों का कहना है कि विनिवेश का फैसला बस्तर और यहां के आदिवासियों के साथ धोखा है.
- कानून लागू करनाः पांचवी अनुसूची और पेशा कानून का कड़ाई से पालन नहीं करने का अरोप भी आदिवासी समाज का मुख्य मुद्दा है. इसके अलावा कई और छोटी-बड़ी मांगे समाज ने शासन-प्रशासन के समक्ष रखी है.
कमिश्नर कार्यालय सभागार में प्रशासन और आदिवासी समाज के पदाधिकारियों के बीच चली बैठक के बाहर निकलकर मीडिया से चर्चा करते हुए पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम और पूर्व सांसद सोहन पोटाई ने आदिवासियों की बातों को रखा. अरविंद नेताम ने कहा कि पहली बार प्रशासन ने आदिवासी समाज के साथ संवाद स्थापित करने का प्रयास किया है जिसका वे लोग स्वागत करते हैं. अब बारी समाज के द्वारा सामने लाए गए विषयों पर कार्रवाई करने की है.
सोहन पोटाई ने कहा कि कांकेर जिले के परलकोट क्षेत्र बंगीय समुदाय के ऐसे लोग जिन्हें शरणार्थी के रूप में सरकार ने बसाया है उनसे उन लोगों को कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन बीते तीन-चार दशक में काफी संख्या में अवैध रूप से भी इस समुदाय के लोग घुसपैठ कर स्थापित हो चुके हैं. ऐसे सभी लोगों को चिन्हित कर परलकोट क्षेत्र से बाहर निकाला जाए.
पोटाई ने कहा कि पालनार, परलकोट जैसी घटनाओं ने समाज को आहत किया है. नगरनार स्टील प्लांट के विनिवेशीकरण का फैसला बस्तर के साथ धोखा है. उन्होंने कहा कि छह माह के भीतर समाज के द्वारा उठाए गए मुद्दों पर ठोस कार्रवाई नहीं होने पर अलग बस्तर राज्य की मांग ही ‘सर्व आदिवासी समाज’ के लिए अंतिम विकल्प होगा.
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