नई दिल्ली । दो महीने पहले जब फूलपुर और गोरखपुर उपचुनाव में बीजेपी के हाथों से ये दोनों सीटें निकल गईं तब मोदी इसे एक अपवाद के रूप में देखने के लिए तैयार थे. माना जा रहा था कि यह एक तुक्का था जो विपक्ष के हाथों लग गया और राजनीति में ऐसा हो जाता है. लेकिन जब बीती 31 मई को कैराना लोकसभा सीट और नूरपुर विधानसभा सीट बीजेपी के हाथ से निकल गई तो ये स्वाभाविक था कि मोदी की अपराजेय छवि पर सवाल उठने लगे. और मोदी के साथ कुछ दिन पहले तक अतिआत्मविश्वास से लबरेज योगी लोकप्रियता के पैमाने पर कठघरे में खड़े दिखे.
इसकी वजह ये है कि कैराना और उसके आस पास के पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र को बीजेपी की हिंदुत्व वाली राजनीति की लैबोरेटरी समझा जाता है. ऐसे में कैराना जैसी अहम लोकसभा सीट पर हार का मुंह देखना बीजेपी के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति के लिए एक धक्का था. इस हार से भाजपा को इतना धक्का लगा कि नतीजे के ठीक बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दिल्ली तलब कर लिया, हालांकि ऐसा नहीं है कि योगी आदित्यनाथ ने सांप्रदायिक आधार पर जनता का ध्रुवीकरण करने में कोई कसर छोड़ी हुई है. लेकिन उनके काम में जो सबसे बड़ा रोड़ा बना है, वह सपा और बसपा का साथ आना है. यह एक ऐसा गठबंधन है, जिसके आगे भाजपा का हर दांव खाली जा रहा है. मायावती और अखिलेश के बीच का दोस्ताना हिंदुत्व के सामने मजबूती से खड़ा दिखाई दे रहा है.
तो वहीं भाजपा की सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने यह कह कर भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है कि बीजेपी ऊंची जातियों के समर्थन और ओबीसी-विरोधी बर्ताव कर रही है. हार के लिए सीएम योगी को जिम्मेदार ठहराते हुए राजभर ने कहा कि बीजेपी ने केशव प्रसाद मौर्य को मुख्यमंत्री न बनाकर पिछड़ों को धोखा दिया है. मौर्य मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे उचित ओबीसी उम्मीदवार होने चाहिए थे.
ओमप्रकाश के आरोप को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता है. दरअसल पहले ओबीसी को अपने पाले में लाने के लिए भाजपा ने केशव मौर्या को पार्टी का अध्यक्ष तो बनाया, और केशव मौर्या ने भी भाजपा को चुनाव में जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई… लेकिन 403 विधानसभा सीटों में से 325 सीटें मिलने के बाद भाजपा ने केशव मौर्या के मुख्यमंत्री पद के दावे को सिरे से खारिज कर दिया औऱ बीजेपी और संघ ने योगी की हिंदुत्व छवि को मौर्य की ओबीसी छवि से ज़्यादा अहमियत दी.
बीजेपी में ओबीसी तबके में ये चर्चा जारी है कि सपा और बसपा ने जिस असंभव काम को कर दिखाया है वो ये काम करने में सफल न होती अगर मुख्यमंत्री के रूप में एक ठाकुर समाज का मुख्यमंत्री न होकर ओबीसी मुख्यमंत्री होता.
फिलहाल मायावती और अखिलेश के साथ आने के बाद बीजेपी को जिस तरह हार के बाद हार मिल रही है वो मोदी के लिए चिंता का सबब बन चुका है. मोदी के प्रधानमंत्री बनने का रास्ता लखनऊ से होकर गुजरा था और एक बार फिर प्रधानमंत्री बनने के लिए उन्हें उत्तर प्रदेश से भारी समर्थन की जरूरत है. लेकिन उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए मुश्किल होते रास्ते ने मोदी और अमित शाह को चिंता में डाल दिया है. कैराना की हार ने भाजपा को बड़े खतरे का संदेश दे दिया है.
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