Saturday, March 15, 2025
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आधे से ज्यादा आबादी वाला समाज क्यों है दलित और पिछड़ा?

इस देश के सभी नागरिक स्वतंत्र हैं? क्या यह प्रश्न कुछ अटपटा लगा. यदि हां, तो आप में चिंतन की थोड़ी संभावना अवशेष है. यदि नहीं तो इसका अनुमान आप स्वयं लगाये. इस देश मे समस्या इसी बात की है कि आप अपने दायित्वों और कर्तव्यों को दूसरे के हाथों मे सौंपकर कौए की भांति सौ साल जीने की परिकल्पना में मस्त हैं. जब आपने अपने जीवन की डोर दूसरे के हाथों में दे दी है तो बेसब्री से उसके अंगुलियों की हरकतों का इंतजार करना आपकी लाचारी है.

सदाचारी बनने के लिए सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता हासिल करनी होती है, यह कार्य दुरूह नहीं है. जहां एक प्रख्यात विधिवेत्ता और लोकतंत्र के जनक डा. अम्बेडकर ने भारत में लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली स्थापित करके राजतंत्र और अधिनायकवाद के कैफिन में 26 जनवरी 1950 को अंतिम कील ठोक दी थी. जब उन्होंने भारतीय संविधान को समस्त देशवासियों से अंगीकृत और आत्मार्पित करने की वचनबद्धता ग्रहण करा दी. आधुनिक भारत के शिल्पी डा. अम्बेडकर ने उस समय एससी, एसटी, ओबीसी और विशेष तौर से महिलाओ को आगाह किया था कि “जब तक आप सभी सामाजिक स्वतंत्रता हासिल नहीं कर लेते, कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वह आपके किसी काम की नहीं है.

कानून ने आपको किसी भी परीक्षा मे उत्तीर्ण होने की स्वतंत्रता दी थी, परंतु सामाजिक स्वतंत्रता के अभाव मे आपने IAS में उत्तीर्ण होने के बावजूद सेवा और अपने समाज का प्रतिनिधित्व करने का अवसर खो दिया. क्योंकि आपने सामाजिक स्वतंत्रता हासिल करने के अपने दायित्व को फरेबी हांथो मे सौंप दिया, ज़िन्होंने अपनी फितरत से 314 पिछड़ी जाति के चयनित IAS उम्मीदवारों को को सड़क पर ला पटका, बेरोजगार कर लाचार कर दिया. कम से कम अब तो सामाजिक स्वतंत्रता हासिल करने की प्रतिबद्धता दिखाईये, नहीं तो पक्षपाती निष्ठुर हाथों में अपना गला घुटता देखते रहिये और कानून की दुहाई देते रहिये, जो पक्षपात और अर्थशास्त्र के भारतनाट्यम में व्यस्त है.

इतिहास बताता है कि जहां नैतिकता और अर्थशास्त्र के बीच संघर्ष होता है वहां जीत हमेशा अर्थशास्त्र की होती है. निहित स्वार्थो को तब तक स्वेच्छा से नहीं छोड़ा गया है जब तक मजबूर करने के लिए पर्याप्त बल न लगाया गया हो. पिछड़ी जाति के चयनित 314 IAS उम्मीदवारों ने नैतिकता और अर्थशास्त्र के बीच जबरदस्त संघर्ष खड़ा कर दिया था, जहां नैतिकता दिखाने का तात्पर्य था कि पिछड़ी जातियो को अर्थशास्त्र के लिहाज से मजबूत करनात. ज़िन्होंने पिछड़ी जातियो को मजबूर रखने की कसमें खा रखी हैं वो कैसे नैतिक हो सकते थे. लिहाजा उन्होंने नैतिकता को लात मारकर अर्थशास्त्र पर विजय प्राप्त करना श्रेयस्कर समझा. उन्हें यह ज्ञात है कि पिछड़ी जातियां संख्या बल में विशालकाय होने के बावजूद राजनीतिक तौर पर फिसड्डी है, इसलिये ये पर्याप्त बल प्रयोग नहीं कर सकते. क्योंकि इनके धर्म की संप्रभुता पिछड़ी जातियो को इनके अधीन रखने मे पूर्णतया सक्षम है.

यदि हम एक संयुक्त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते हैं तो सभी धर्मो के शास्त्रों की संप्रभुता का अंत होना चाहिये. सभी स्वावलंबी देशवासियों का आह्वान है कि एकीकृत भारत और मजबूत राष्ट्रनिर्माण के लिए सभी धर्मावलंबियों को शास्त्रों की संप्रभुता के अंत के लिए तत्पर होकर मजबूत और अखण्ड राष्ट्रनिर्माण की नैतिकता प्रदर्शित करनी चाहिये. जो इसमें बाधक बने उसे राष्ट्रद्रोही घोषित करके सरकार को पक्षपात से ऊपर उठकर राज्य धर्म का पालन करते हुए, ऐसे देशद्रोहियो को कठोरतम सजा देनी चाहिये. “भारत छोड़ो” आन्दोलन के 75वें वर्षगांठ पर आईये शपथ ले कि जिस तरह हमने अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर किया उसी तरह “फरेबियों और पक्षपातियों” को भारत से बेदखल करके छोडेंगे.

देश की आधे से ज्यादा आबादी वाले समाज को पिछड़ा क्यों कहा गया, क्या इससे हीन भावना नहीं आती जो व्यक्ति की गरिमा को चिथड़े करती हो? जिस देश मे लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली हो, व्यस्क मताधिकार का अधिकार हो, इन खूबियों के बावजूद 52 प्रतिशत आबादी वाला समाज अधिकारों से प्रवंचित हो, कुछ वजहें तो होगी ही, इनकी असफलता की? यह गंभीर और चिन्तनीय प्रकरण है. इस देश में दो तरह की विचारधाराए सक्रिय है…
1. अगड़ा वर्ग जो पिछड़ी जातियों को अपने पीछे रखने और अपना चरण स्पर्श कराते रहने की साजिशों मे लगी रहती हैं.
2. अनुसूचित वर्ग जो इन्हे बड़े भाई का सम्मान देकर परस्पर कदम ताल से चलने व गले मिलने को आतुर है, जिन्हें यह हेय दृष्टी से देखते हैं.

अगड़ो की इस कुटिल साजिश को यह समझ ही नहीं पाते और कवच बन अगड़ों की सेवा में तल्लीन रहना अपनी नीयति मान बैठना इनके पिछड़े होने की सबसे बड़ी वजह है. पिछड़ी जातियों की पिछड़ा वर्ग बनाने की निष्क्रियता और अकर्मण्यता ही अधिकारों से वंचित होने की मुख्य वजह है. पिछड़ी जातियां पिछड़ा वर्ग न बने इसकी हर कवायद में पुरोहितवाद सक्रिय रहता है. यह उद्धरण कितना सटीक है कि “जब तक इस धरती पर बेवकूफ लोग ज़िन्दा रहेंगे ज़रा सा भी चालाक आदमी खाने के लिये नहीं मरेगा”. कल्पना करिए शातिर क्या करेगा?

इनके अधिकारों पर इतिहास में पहली बार इतना बड़ा हमला किया गया है, इस समाज के संघ लोक सेवा आयोग से चयनित 314 IAS उम्मीदवारों को साजिश के तहत एक झटके मे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. यानि कि पिछड़ी जाति के 314 ज़िलाधिकारियों को बेरोजगार करके सड़क पर पटक दिया गया फिर भी फ्रिज में जमे इनके खून में कोई ऊबाल नहीं आया. यूपी में 80 ज़िले हैं यानि कि हिन्दी भाषी क्षेत्र से पिछड़ो के प्रतिनिधि सभी ज़िलाधिकारियों को हटा दिया गया, बल्कि उनकी नौकरियां छीन ली गयी. यदि ऐसी घटना अगड़े समाज के साथ होती तो कोहराम मच जाता, उनका खून जो खौलता है. यदि आपके धमनियों रुधिर है तो सजा दो ऐसी सरकार को जिसने आपके रक्त को गंदी नाली का पानी समझने की गुस्ताखी की है?

यह लेख गौत्तम राने सागर ने लिखा है.

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