बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर ने बहुत ही मुश्किल से उच्च शिक्षा हासिल की थी। वो शिक्षा के महत्व को जानते थे। इसलिए वो चाहते थे कि वंचित समाज में ज्यादा से ज्यादा लोग शिक्षित हों। वह जानते थे कि वंचित समाज की मुक्ति शिक्षा से ही संभव है। डॉ. आंबेडकर ने वंचित समाज को जो तीन आदेश या यूं कहें कि उपदेश दिया था, उसमें उन्होंने सबसे ज्यादा जोर शिक्षित बनने पर दिया। यही वजह रही कि डॉ. आंबेडकर ने अपने जीवनकाल में ही 8 जुलाई 1945 को पीपुल्स एजुकेशन सोसायटी की स्थापना की थी और कई कॉलेज शुरू किये।
लेकिन 1956 में बाबासाहेब के परिनिर्वाण के बाद यह कारवां धीमा हो गया। बाबासाहेब के जाने के बाद अंबेडकरवादी या तो उनकी मूर्तियां बनाने में जुट गए या फिर बौद्ध विहार। लेकिन इसी बीच में कुछ लोग ऐसे भी थे, जो बाबासाहेब के आदेश, या यूं कहें कि उपदेश की पहली लाइन “शिक्षित बनों” को भूले नहीं थे। उन्हें डॉ. आंबेडकर द्वारा दिया गया शिक्षा का मंत्र भी याद था और धम्म का रास्ता भी। हम आपको जो खबर दिखाने जा रहे हैं, या जो कहानी बताने जा रहे हैं, वह इसी तरह की है।
पंजाब के जिस जालंधर शहर की धरती पर डॉ. आंबेडकर ने 27 अक्टूबर 1951 को अपने कदम रखे थे, वहां के अंबेडकरवादियों ने शहर से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर फूलपुर-धनाल गाँव में बाबासाहेब आंबेडकर के नाम पर यह शानदार स्कूल बना डाला। 12वीं तक के इस स्कूल का नाम है- बोधिसत्व बाबासाहेब आंबेडकर पब्लिक सीनियर सेकेंडरी स्कूल। फिलहाल तकरीबन 500 बच्चों वाला यह स्कूल नर्सरी से लेकर 12वीं तक का है, जिसमें आस-पास के 20-25 गाँवों के बच्चे पढ़ने आते हैं। स्कूल का दरवाजा समाज के हर वर्ग के लिए खुला है। स्कूल की मान्यता पंजाब स्कूल एजुकेशन बोर्ड से है। दलित दस्तक के संपादक अशोक दास ने सितंबर के पहले हफ्ते में अपने पंजाब दौरे के दौरान इस स्कूल को करीब से देखा और यु-ट्यूब के लिए इसकी स्टोरी की। आप भी देखिए, इस अनोखे स्कूल की कहानी-
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।