
नई दिल्ली। दिल्ली के प्रगति मैदान में किताबों की दुनिया सजी है. दिल्ली के प्रगति मैदान में विचारों की दुनिया सजी है. तरह-तरह के लोग, अलग-अलग विचारों के लोग यहां मौजूद हैं. पुस्तक मेले में बीते एक दशक में तेजी से फैले अम्बेडकरी आंदोलन का भी खासा जोर है. हॉल नंबर 12 में स्टॉल नंबर 97 पर भी खासी हलचल है. यहां हर साल की तरह दलित दस्तक भी अपनी मैगजीन और किताबों के साथ विश्व पुस्तक मेले में दस्तक दे रहा है. जहां देश के तमाम हिस्सों से लोग पहुंच रहे हैं.

अम्बेडकरी आंदोलन के प्रमुख प्रकाशन सम्यक प्रकाशन औऱ गौतम बुक सेंटर का स्टॉल भी हॉल नंबर 12 में ही सजा है, जहां अम्बेकरवादियों का तांता लगा हुआ है. तमाम स्टॉल पर पाठकों की भीड़ है. तो साहित्य के दिग्गज भी अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं. दलित दस्तक के स्टॉल पर लोग पत्रिका की वार्षिक सदस्यता भी ले रहे हैं, ताकि उन्हें दलित दस्तक पूरे साल घर बैठे मिल सके. दलित दस्तक के स्टॉल पर दलित साहित्य की चर्चा भी जोरो पर है.
दलित दस्तक के स्टॉल पर वरिष्ठ साहित्यकार मोहनदास नैमिशराय, अनिता भारती, एच.एल. दुसाध, कौशल पंवार, शांति स्वरूप बौद्ध, हीरालाल राजस्थानी, डॉ. पूरन सिंह, राकेश कबीर और चित्रकार लाल रत्नाकर जैसे साहित्यकार अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं. विश्व पुस्तक मेला लेखकों के लिए भी एक खास मौका होता है. इस दौरान तमाम नई किताबों का विमोचन होता हैं. उभरते कवि राकेश कबीर भी इनमें से एक हैं. दलित दस्तक के स्टॉल पर उनके पहले कविता संग्रह ‘नदियां बहती रहेंगी’ का विमोचन हुआ. युवा लेखिका कौशल पंवार की पुस्तक जोहड़ी का विमोचन भी इसी पुस्तक मेले में हुआ. खास यह है कि स्त्री विमर्श के इस कहानी संग्रह का प्रकाशन नेशनल बुक ट्रस्ट ने किया. इसका विमोचन अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले के उद्घाटन के दिन खुद एनबीटी ने ही किया.

हालांकि इस बीच अम्बेडकरी साहित्य छापने वालों पर एक खास वर्ग की नजर टेढ़ी है. अम्बेडकरी साहित्य के बढ़ते प्रभाव के कारण लोग आडंबर और अंधविश्वास से बाहर आ रहे हैं. हिन्दुवादी विचारधारा के वाहकों को यह खटकने लगा है. और उन्हें धमकियां मिलने लगी है. कुल मिलाकर विश्व पुस्तक मेले में वैचारिक बहस जारी है. और हॉल नंबर 12 में दलित दस्तक का स्टॉल नंबर 97 भी इस बहस के केंद्र का एक हिस्सा है, जहां पाठक पहुंच रहे हैं. पुस्तक मेला 6 जनवरी से शुरू है और 14 जनवरी तक चलेगा.

डॉ. पूजा राय पेशे से शिक्षिका हैं। स्त्री मुद्दों पर लगातार लेखन के जरिय सक्रिय हैं। उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘आधी आबादी का दर्द’ खासी लोकप्रिय हुई थी।