20 जनवरी 2021, को कमला हैरिस ने अमेरिका की पहली महिला उप राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेकर एक प्रकार का इतिहास रचा। वो पहली अश्वेत, दक्षिण एशिया की महिला हैं जिन्हे यह सम्मान मिला है। यह अमेरिकियों के लिए एक ऐतिहासिक क्षण हो सकता है। परन्तु अगर इस इतिहास का बारीकी से परीक्षण किया जाय तो यह अमेरिका के लोकतंत्र में इतना भी ऐतिहासिक क्षण नहीं है जितना अमेरिकी जश्न मना रहा है।संयुक्त राज्य अमेरिकादुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र है। अगर हम यहाँ लोकतंत्र की शुरुआत 1788 से ही माने, जब अमेरिकी संविधान को राज्यों द्वारा अनुमोदित किया गया था तो हम पाएंगे की लोकतंत्र के 333 साल पुराने इतिहास में अमेरिका ने अभी तक एक भी महिला को राष्ट्र के सर्वोच्च पद के लिए नहीं चुना।
अमेरिका की इस सफलता को हम ज़्यादा बड़ा करके इसलिए भी नहीं आंक सकते क्योंकि दक्षिण एशिया की तुलना में अमेरिका की यह सफलता लगभग 60 साल बाद आई है। यहाँ यह याद रहे की दक्षिण एशिया के एक छोटे से उभरते हुए लोकतंत्र श्रीलंका (जिसे उस समय सिलौन कहा जाता था) में 1960 में एक महिला को राज्य के प्रमुख के रूप में शपथ दिलाई गई थी।
अमेरिका की तुलना में भारत को ही ले लें तो यहाँ भी 1966 अर्थात लगभग अर्ध-शताब्दी पहले एक महिला को राष्ट्र की चुनी हुई सरकार का लीडर बना दिया गया था। इतना ही नहीं दक्षिण एशिया के ही पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी अमेरिका की तुलना में लगभग तीस वर्ष पहले 1988 और 1991 में किसी महिला को देश के प्रमुखों के रूप में शपथ दिलाई गई थी। परन्तु आज भी अमेरिका के लोकतंत्र में देश के प्रमुख राष्ट्रपति के रूप में किसी महिला को शपथ नहीं दिलाई गयी है। इस आधार पर हम आसानी से कह सकते हैं कि विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र दक्षिण एशिया के लोकतांत्रिक देशों से कम से कम आधी शताब्दी पीछे है।
तथ्यात्मक दृष्टि एवं सटीक जानकारी के लिए दक्षिण एशिया में21 जुलाई 1960 को, सिरिमाओ भंडारनायके, दुनिया की पहली महिला राष्ट्र प्रमुख बनीं। उन्होंने अपने देश पर तीन अलग-अलग अवसरों पर 17 साल तक शासन किया और इतिहास रचा। श्रीलंका के बाद भारत की इंदिरा गांधी जनवरी 1966 में सरकार की महिला प्रमुख बनी। उन्होंने भी 31 अक्टूबर 1984 को अपनी हत्या होने से पहले, विभिन्न अवसरों पर, लगभग 15 वर्षों तक देश पर शासन किया। इंदिरा गाँधी को अपने समय में अपने राजनैतिक दल पर पूरा अंकुश ही नहीं देश की राजनीति पर भी पूरा एकछत्र आधिपत्य था। क्या हम कमला हैरिस के बारे में ऐसा सोच सकते हैं।
दक्षिण एशिया में, पाकिस्तान में भी बेनजीर भुट्टो 2 दिसंबर 1988 को राज्य की प्रमुख बनीं। वास्तव में वे दुनिया के मुस्लिम बाहुल्य राष्ट्रों में किसी भी राज्य की पहली महिला प्रमुख बनी जिन्होंने ऐसा कारनामा किया। वह 1993-1996 के दौरान दूसरी बार भी पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनी। दूसरी ओर, मुस्लिम वर्ल्ड में ही खालिदा जिया ने 20 मार्च 1991 को बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली और 23 जून, 1996 को एक अन्य महिला, शेख हसीना बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने वाली दूसरी महिला बनीं। शेख हसीना वर्तमान समय में सबसे लम्बे समय तक शासन करने वाली बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हैं।
दक्षिण एशिया में राज्य की महिला प्रमुखों की विरासत को सिरिमाओ भंडारनायके की बेटी, चंद्रिका कुमारतुंगा ने आगे बढ़ाया, वो नवंबर 1995 में श्रीलंका की पहली महिला राष्ट्रपति बनीं, लेकिन 1999 में उनकी हत्या के प्रयास के बाद उन्होंने राजनीति छोड़ दी।यहां, भारत और नेपाल जैसे दक्षिण एशियाई देशों के प्रत्यक्ष/ अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित औपचारिक प्रमुखों के नामों का उल्लेख किया जाना भी समीचीन होगा।उदाहरण के लिए, प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ने जुलाई 2007 में भारत की पहली महिला राष्ट्रपति के रूप में जबकि विद्या देवी भंडारी ने अक्टूबर 2015 में नेपाल की पहली महिला राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। क्या अमेरिका में अभी तक ऐसा संभव हुआ है? क्या अमेरिका में अश्वेत, लेटिनो, रेड इंडियन, मुस्लिम और दक्षिण एशिया में दलित-आदिवासी, पासमंदा महिलाएँ सर्वोच्च पदों पर पहुँच सकती हैं?
अमेरिका और दक्षिण एशिया में महिलाओं का देश के सर्वोच्च पद पर चुने जाने के मध्य कुछ चुनौतियों को भी यहाँ रेकखांकित किया जाना सामाजिक आंदोलन एवं सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से आवश्यक है।एक ओर यदि अमेरिका को अपनी पहली महिला को राष्ट्र के सर्वोच्च पद के लिए निर्वाचित करने में सफल होना है, तो वहीं दूसरी ओर दक्षिण एशिया में एक आत्मनिर्भर महिला को देश के सर्वोच्च पद पर चुनाव में सफल होना बाकी है। यहां आत्मनिर्भर का तात्पर्य है बिना किसी भी राजनीतिक संरक्षण एवम् राजनैतिक परिवार की पृष्ठभूमि के।
हम जानते हैं कि दक्षिण एशिया में राष्ट्र की प्रमुख महिला के रूप मे चयनित महिलाओं ने अपने पिता या पति की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया है। उदाहरण के तौर पर,1959 में सिरिमाओ भंडारनायके अपने पति स्व. आर. आर भंडारनायके की हत्या की सहानुभूति की लहर की सवारी करते हुए आईं। उसी कड़ी में 1981 में अपने पति की हत्या के बाद खालिदा जिया ने बांग्लादेश नेशनल पार्टी को आगे बढ़ाया। इसी तरह, इंदिरा गांधी, बेनजीर भुट्टो, शेख हसीना, सभी ने अपने पिता क्रमशः जवाहरलाल नेहरू, जुल्फिकार अली भुट्टो और शेख मुजीबुर रहमान, की विरासत को हीआगे बढ़ाया है। श्रीलंका में चंद्रिका कुमारतुंगा को तो माता और पिता दोनों की ही विरासत मिली।
समकालीन राजनीति, सामाजिक परिवर्तन, एवं सामाजिक आंदोलन के दृष्टिकोण से अगर हम अमेरिका और दक्षिण एशिया में महिलाओं के सर्वोच्च पद पर चयन का आंकलन करें तो हमे कुछ और विचारणीय बिंदु भी मिल जाएंगे। अमेरिका के सन्दर्भ में अभी पूर्ण रूप से अश्वेत एवंअश्वेत आंदोलन से- जैसे ब्लैक पैंथर्स से निकली हुई अश्वेत महिला का अमरीका की राजनीति में स्थापित होना बाकी है। कमला हैरिस उस अस्मिता का प्रतिनिधित्व नहीं करती।
यह सर्वविदित है कि पूरे अमेरिका के राष्ट्रपति में चुनावों में कमला हैरिस की माँ की दक्षिण एशियाई (भारतीय) और उनके पिता की जमैकन या आश्वेत छवि/ अस्मिता को ही उभार कर भारतीयों और एफ़्रो-अमेरिकन्स को डेमोक्रैटिक पार्टी की ओर आकर्षित करने का प्रयास किया गया। परंतु अमेरिका में रह रहे भारतीयों ने कमला हैरिस की माँ की तमिल ब्राह्मण अस्मिता से जोड़ कर अपने आप को नहीं देखा होगा ऐसा मानना अस्मिताओं के समाजशास्त्र के आधार पर सही नहीं होगा।अतः कही ना कहीं कमला हैरिस यद्यपि अमरीकी राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व करते हुए तो दिखती हैं, परंतु वास्तविकता में वो बहिष्कृत, अश्वेत, ग़रीब आदि समजों का प्रतिनिधित्व नहीं करती।
उसी प्रकार, श्रीलंका, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल आदि देशों में जो भी महिला राजनैतिक पैदा हुई है वो भी उच्च वार्णीय/ वर्गीय समाज से ही संबंध रखती हैं। वो भी दलित, आदिवासी, पासमंदा समाज से नहीं आती। दक्षिण एशिया में, हमें यह विश्लेषण करना होगा कि क्या ये महिला नेता ने खुद दूसरी महिलाओं को अपने राजनीतिक दलों के प्रमुख रहते हुए प्रतिनिधित्व दिया था या दे रही हैं- जैसे- इंदिरा गाँधी, सिरिमाओ भंडारनायके, बेनज़ीर भुट्टो, शेख हसीना, चंद्रिका कुमारतुंगा आदि। अगर नहीं तो हम इनका जश्न कैसे मना सकते हैं?
क्या विश्व का सबसे पुराना और विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र अपने-अपने देश की राजनीति के सार्वोच्च पदों पर बहिष्हकृत समाजों की महिलाओं को चयनित कर विश्व के अनेक देशों के लिए, विशेषकर दक्षिण एशिया के देशों के लिए, उदाहरण प्रस्तुत कर लोकतंत्र को और मजबूत करेगा? इंतजार रहेगा 21वीं शताब्दी के दूसरे दशक में।
तस्वीर साभार- पहली तस्वीर, गूगल, दूसरी तस्वीर- Photo Illustration by Minhaj Ahmed Rafi, वेबसाइट- Newsweek Pakistan, तीसरी तस्वीर- http://www.anindianmuslim.com
प्रो. (डॉ.) विवेक कुमार प्रख्यात समाजशास्त्री हैं। वर्तमान में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ सोशल साइंस (CSSS) विभाग के चेयरमैन हैं। विश्वविख्यात कोलंबिया युनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर रहे हैं। ‘दलित दस्तक’ के फाउंडर मेंबर हैं।