अमेरिका के सिएटल शहर में अब जाति को लेकर भेदभाव करने वालों की खैर नहीं होगी। सिएटल में जाति आधारित भेदभाव को प्रतिबंधित कर दिया गया है। मंगलवार को एक बड़े फैसले में सिएटल सिटी काउंसिल ने शहर के भेदभाव विरोधी कानून में जाति को भी शामिल कर लिया। यानी अब इस शहर में अगर कोई किसी से जाति के आधार पर भेदभाव करता है, तो उस पर कार्रवाई होगी। पहले भेदभाव विरोधी कानून में रंग और नस्ल आधारित भेदभाव ही शामिल था। सिएटल सिटी काउंसिल ने इस अध्यादेश को 6-1 से पारित कर दिया।
सिटी काउंसिल में इस प्रस्ताव को सिटी काउंसिल मेंबर क्षमा सावंत लेकर आई थीं। क्षमा सावंत खुद ऊंची जाति की भारतीय हिन्दू हैं, लेकिन सामाजिक न्याय की पक्षधर हैं। क्षमा सावंत का कहना है कि “हमें यह समझने की जरूरत है कि भले ही अमेरिका में दलितों के खिलाफ भेदभाव उस तरह नहीं दिखता जैसा कि दक्षिण एशिया में हर जगह दिखता है, लेकिन यहां भी भेदभाव एक सच्चाई है।”
अमेरिका की नगर परिषद में पेश हुआ ये अपनी तरह का पहला प्रस्ताव है। इसको लेकर लंबे समय से मांग की जा रही थी। इसके समर्थक इसे सामाजिक और समानता के लिए अहम कदम मान रहे हैं। हालांकि दक्षिण एशिया और खासकर भारत के लोग इसका विरोध कर रहे हैं। उनका आरोप है कि इस प्रस्ताव का मकसद दक्षिण एशिया के लोगों खासकर भारतीय अमेरिकियों को निशाना बनाना है। बता दें कि अमेरिका में भारतीय मूल के अप्रवासियों की संख्या दूसरे नंबर पर है। अमेरिकन कम्यूनिटी सर्वे के 2018 के आंकड़े के मुताबिक अमेरिका में भारतीय मूल के 42 लाख लोग रहते हैं। भारत में जाति आधारित भेदभाव पर 1948 से ही प्रतिबंध है।
इस कानून को बनाने के लिए अमेरिका में एक लंबी मुहिम चली थी। इसमें वशिंगटन युनिवर्सिटी के 8000 से ज्यादा लोगों एकेडमिक वर्कर्स ने अपना समर्थन दिया था। इस बिल को काउंसिल में रखने वाली काउंसिल मेंबर क्षमा सावंत को 50 विभिन्न संगठनों ने समर्थन दिया था, जिसमें अमेरिकी संगठन भी शामिल थे। इस बिल को 21 फरवरी को मंजूरी मिल गई। यह इस मायने में काफी अहम है कि अमेरिका में पहली बार किसी शहर में कास्ट डिस्क्रीमिनेशन को बैन किया गया है।
हालांकि बाद के दिनों में जब भारत से तमाम जातियों के लोग अमेरिका पहुंचे तो वहां वह अपने साथ जाति लेकर गए। जिससे जातिवाद की घटनाएं सामने आने लगी। पिछले दिनों अमेरिका में ही सिसको कंपनी में एक दलित के साथ भेदभाव का मामला सुर्खियों में रहा था, जिसके बाद से ही अमेरिका में भेदभाव विरोधी कानून में जाति को भी शामिल करने की मांग हो रही थी। सिएटल में जातिवाद को अपराध मानने का प्रस्ताव पेश होने के बाद अब अमेरिका के दूसरे शहरों में भी ऐसा होने की संभावना बढ़ गई है।
डॉ. पूजा राय पेशे से शिक्षिका हैं। स्त्री मुद्दों पर लगातार लेखन के जरिय सक्रिय हैं। उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘आधी आबादी का दर्द’ खासी लोकप्रिय हुई थी।