आज अमिताभ बच्चन 75 साल के हो रहे हैं. इसे लेकर फिल्म फिल्म प्रेमियों में भारी हर्ष है. इस अवसर पर भारतीय फिल्म वर्ल्ड उन्हें बधाइयों के सैलाब में डुबो दिया है. इस अवसर पर मैं भी उन्हें जन्म दिन कि बधाई देते हुए, उनके शतायु होने कि कामना करता हूं. मित्रों मैंने भिन्न-भिन्न अवसरों पर अमिताभ बच्चन को लेकर दर्जन से अधिक छोटे बड़े लेख लिखे हैं. उनके प्रति मेरी राय से मेरे नियमित पाठक भलीभांति अवगत भी होंगे. बहरहाल जब भी उन पर कुछ लिखता हूं, तीन बातें मेरे जेहन में जरुर आती हैं.
सबसे पहले मेरे जेहन को जो स्ट्राइक करता है, वह है मारियो पूजो का अति जनप्रिय क्राइम नॉवेल ‘गॉड फादर’, जिस पर इसी नाम से मार्लोन ब्रांडो और अल पचीनो जैसे विश्व विख्यात एक्टरों को लेकर ‘हालीवुड‘ में एक सदाबहार फिल्म भी बनी, जिसका अनुकरण दुनिया के तमाम देशों के फिल्मकारों ने किया. आपमें से ढेरों लोग शायद वह उपन्यास नहीं भी पढ़े होंगे किन्तु वह कालजयी फिल्म जरुर देखे होंगे, ऐसी मेरी धारणा है.
इसी उपन्यास में एक चरित्र, एक फिल्म एक्टर का भी है, जो हॉलीवुड में स्ट्रगल कर रहा है पर, सफलता उससे कोसों दूर है. वह एक्टर गॉड फादर की एक पार्टी में शामिल होता है. जब गॉड फादर से मिलने का अवसर प्राप्त होता है, वह उसके चेहरे पर छाई उदासी का सबब पूछता है. वह अपनी विफलता से अवगत करते हुए फ्लोर पर जाने वाली एक फिल्म का जिक्र करते हुए बताता है कि अगर वह फिल्म मिल जाये तो करियर में उछाल आ जाय. गॉडफादर उसे फिल्म दिलाने का आश्वासन देता है. उसके लोग जब उस फिल्म के निर्माता से उसे लेने का अनुरोध करते हैं, वह विदक जाता है. कई बार समझाने पर भी तैयार नहीं होता, क्योंकि उस एक्टर ने कभी उसकी प्रेमिका को हम विस्तार बना लिया था.
बहरहाल गॉड फादर के लोगों द्वारा कई बार समझाने पर भी जब वह निर्माता उस एक्टर को लेने के लिए तैयार नहीं होता तब उसके लोग, उसके सबसे कीमती रेस के घोड़े का सर काटकर उसके बिस्तर पर रख देते हैं. सुबह जब वह सोकर उठता है, तब घोड़े का कटा सर अपने बगल में देखकर हतप्रभ रह जाता है. वह समझ जाता है कि यह सब गॉड फादर के लोगों कि करतूत है. वह घटना से बुरी तरह डरकर अपनी फिल्म में एक एक्टर को चांस दे देता है. फिल्म सुपर-डुपर हिट होती है. बात यहीं तक नहीं सिमित रहती है, गॉड फादर इस फिल्म के लिए उसे बेस्ट एक्टर का ऑस्कर पुरस्कार भी दिलवा देता है. फिर गॉड फादर का वह कृपा-पात्र एक्टर पीछे मुड़कर नहीं देखता.
अमिताभ बच्चन इस मामले में शायद फिल्म हिस्ट्री के सबसे खुशनसीब एक्टरों में से एक रहे, जिन्हें दुनिया के मारिओ पूजो के गॉड फादर से भी ज्यादा शक्तिशाली इंदिरा गांधी जैसी अतिशक्तिशाली शख्सियत का कृपा-पात्र बनने का अवसर मिला. अगर ऐसे शक्तिशाली राजनितिक परिवार का उन्हें कृपा-लाभ नहीं मिलता, क्या वह अपनी पहली ही फिल्म ‘सात हिन्दुस्तानी’ में एक्टिंग के लिए नेशनल अवार्ड जीत पाते? इस परिवार का कृपा-पात्र होने के कारण ही लगातार आधे दर्जन से अधिक विफल फिल्म देने के बावजूद, बॉलीवुड ने उन्हें किक आउट नहीं किया. परवर्तीकाल में जब इमरजेंसी के दौर में हिंसक दृश्यों पर बेरहमी से कैंची चलायी जाने लगी, अमिताभ बच्चन की फिल्मों को सूचना प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल की टीम ने इससे मुक्त रखा. इमरजेंसी के दौर में इंदिरा सरकार की उदारता के कारण ही एक्शन और हिंसा प्रधान फिल्मों पर उनकी मोनोपोली कायम हुई, जो कालांतर में एंग्री यंगमैन के रूप में उनकी छवि चिरस्थाई करने का सबब बनी.
दूसरी बात जो जेहन में कौंध जाती है, वह है महान एक्शन-एंग्री हीरो क्लिंट ईस्टवुड की फिल्म ‘डर्टी हैरी’. दिसंबर 1971 में रिलीज हुई इस फिल्म ने पूरी दुनिया में दिखाए जाने वाले पुलिस के चरित्र में क्रान्तिकारी बदलाव ला दिया. इस फिल्म में क्लिंट ईस्ट वुड ने ‘हैरी कालाहन’ नामक जिस गुस्सैल पुलिस ऑफिसर का चरित्र निर्वाह किया, उसने पूरी दुनिया में पुलिस नायक के चरित्र में आमूल बदलाव कर दिया. देखते ही देखते कुछ ही वर्षों में दुनिया के विभिन्न देशों की विभीन्न भाषाओँ में हैरी कालाहन भिन्न–भिन्न नामों से परदे पर आ गया. खुद हॉलीवुड में हैरी कालाहन सीरिज की और चार फ़िल्में थोड़े-थोड़े अन्तराल पर आयीं और सभी में हीरो रहे क्लिंट ईस्टवुड.
भारत में हैरी कालाहन का आगमन मई, 1973 में ‘जंजीर’ के जरिये हुआ. पहले इस चरित्र को निभाने के लिए प्रकाश मेहरा ने देवानंद और राजकुमार से संपर्क किया. किन्तु बच्चन के समकालीन शत्रुघ्न सिन्हा के शब्दों में, ‘प्रभु की असीम कृपा या लक फैक्टर‘ अमिताभ के साथ कुछ ज्यादा ही रहा, इसलिए हैरी कालाहन के इन्डियन संस्करण ’विजय’ को परदे पर उतारने का अवसर अमिताभ को मिला और लोगों को पता है, जंजीर ने एक्टर बच्चन के लिए क्या चमत्कार किया. जंजीर की सफलता के बाद अमिताभ बच्चन ने अपनी एक्टिंग में दिलीप कुमार की ‘एक्टिंग स्टाइल’ और लम्बे-पतले क्लिंट ईस्टवुड की ‘ही मैन‘ छवि का इतना शानदार कॉकटेल तैयार किया कि भारतीय फिल्म-प्रेमियों के दिलों पर उनका स्थाई राज हो गया.
तीसरी बात यह कि फिल्मों में खुद तथा अपने परिवार को पूरी तरह रमाने के बावजूद इनमें ‘पे बैक टू द सिनेमा की भावना पैदा न हो सकी, इसलिए वे एक मुकम्मल फ़िल्मकार बनकर फिल्म-वर्ल्ड को ऐसा कुछ न दे सके, जिससे उसकी समृद्धि में कुछ इजाफा होता. फिल्म-दुनिया का इतिहास गवाह है कि सुपर स्टार/एक्टर के रूप में बढ़िया से स्थापित होने के बाद अधिकांश ने ही ऐसी फिल्मों का निर्माण किया जिससे फिल्मोद्योग के मान-सम्मान में भारी इजाफा हुआ.
हिंदी फिल्मों की मशहूर त्रिमूर्ति, राज-दिलीप-देव के साथ गुरुदत्त ने कुछ-कुछ ऐसी चुनिन्दा फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया, जो माइल स्टोन बनीं. इस मामले में राज कपूर और गुरुदत्त तो बेमिसाल रहे. आज राज-दत्त की परम्परा को शानदार तरीके से आगे बढा रहे हैं आमिर खान. इस मामले अमिताभ भारत ही नहीं, दुनिया के दरिद्रतम एक्टरों में से एक हैं. इन्होंने एबीसीएल बैनर तले जिन फिल्मों का निर्माण किया, उनसे बॉलीवुड फिल्मों का सम्मान घटा ही, बढ़ा एक इंच भी नहीं. कमसे कम जिस क्लिंट ईस्ट वुड की ‘ही मैन’ छवि की इन्होने कॉपी कर बहुत कुछ हासिल किया, उनसे तो कुछ प्रेरणा लेनी ही चाहिए थी.
अपने जमाने में पॉपुलरिटी के शिखर को छूने वाले क्लिंट ईस्टवुड एक्टर के रूप में मजबूती से स्थापित होने के बाद फिल्म निर्माण और निर्देशन में कदम रखे और मिलियन डॉलर बेबी सहित कई ऑस्कर विनर फ़िल्में बना कर हालीवुड की इज्जत में इजाफा किया. उन्ही की तरह ‘मैड मैक्स’ सीरिज के एक्शन हीरो मेल गिब्सन ने पैट्रिऑट और पैशन ऑफ़ क्राइस्ट जैसी फिल्मों का निर्माण और निर्देशन कर हालीवुड की बुलंदी में भारी योगदान किया. राज कपूर, गुरुदत, आमिर खान, क्लिंट ईस्ट वुड, मेल गिब्सन जैसे सुपर स्टारों की लम्बी फेहरिस्त है जिन्होंने फिल्मों से नाम यश कमाया तो, कुछ बढ़िया- बढियां फ़िल्में बनाकर अपने-अपने फिल्म वर्ल्ड को धन्य भी किया, नहीं किया तो बच्चन ने. ऐसे में हम अभिताभ बच्चन के 75 साल होने पर दुआ करते हैं कि ‘मुक्कदर का यह सिकंदर’ भी कुछ खास फ़िल्में बनाकर बालीवुड को धन्य करें, ताकि वे सुकून के साथ अपने जीवन के शेष दिन एन्जॉय कर सकें. अगर ऐसा नहीं करते हैं तो शेष जीवन विवेक दंश की पीड़ा झेलते रहेंगे.
डायवर्सिटी मैन के नाम से विख्यात एच.एल. दुसाध जाने माने स्तंभकार और लेखक हैं। हर विषय पर देश के विभिन्न अखबारों में नियमित लेखन करते हैं। इन्होंने कई किताबें लिखी हैं और दुसाध प्रकाशन के नाम से इनका अपना प्रकाशन भी है।