अनुप्रिया जिस दिन एनडीए सरकार में मंत्री बनी, उसी दिन से (पहले कभी नहीं) उनके विवादित ट्वीट वायरल हो गये. और देखते-देखते वे दंगाई हो गयी. उनके ट्वीट देश के जाने-माने पुरोधा लोगों ने रिट्वीट किया. अनुप्रिया उच्च वर्ग की ठसक और टेक्नीकल दिव्यांगता का शिकार हो गयी. अनुप्रिया का बैकग्राउंड देश के बाबू साहेब वालो के जैसा नहीं है. उनके पिता सोनेलाल पटेल ने कांशीराम के साथ बसपा में काम किया था, फिर उन्होंने अपना दल की स्थापना की. जिन लोगों ने भी सोनेलालजी का राजनैतिक जीवन देखा है वे बता सकते है कि वे ब्राह्मणवाद के घोर विरोधी और बौद्ध धर्म के नजदीक थे. 2009 में सोनेलाल पटेल के निधन होने के बाद उनकी पत्नी दल की अध्यक्ष बनी और अनुप्रिया पटेल राष्ट्रीय महासचिव बनी. अनुप्रिया पटेल को पहली राजनातिक सफलता 2012 में मिली; जब वे बनारस की रोहनिया विधानसभा से निर्वाचित हुई.
उत्तर प्रदेश में 2013 में त्रि-स्तरीय आरक्षण को लेकर एक बड़ा आन्दोलन हुआ और ये मुख्यत: दलित-पिछड़े वर्ग के युवाओं का आन्दोलन था. प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्र प्रारंभिक परीक्षा और मुख्य परीक्षा से लेकर साक्षात्कार तक में आरक्षण की मांग कर रहे थे. जहां तक मुझे याद है इस आन्दोलन का खुला समर्थन अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने किया था. आन्दोलन के समर्थन में कई रैलियों में अनुप्रिया पटेल ने संबोधित किया था और मंडल कमीशन की सभी सिफ़ारिशो को लागू करने की मांग का समर्थन किया था. उस आन्दोलन का जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और सांसद शरद यादव, उदितराज (तब इन्डियन जस्टिस पार्टी के अध्यक्ष थे), भाजपा के सांसद रमाकांत यादव ने समर्थन किया था. जबकि समाजवादी पार्टी की सरकार ने केवल आन्दोलन की मांग को ख़ारिज किया बल्कि आन्दोलन को पुलिस के बल से कुचल दिया. बसपा का भी रुख ज्यादा सहयोगात्मक नहीं रहा था.
जहां तक अनुप्रिया पटेल के राजनैतिक जीवन का सवाल है उस कभी भी साम्प्रदायिकता या हिंदुत्व की राजनीति करते नहीं देखा गया. 2014 में उनका भाजपा के साथ राजनैतिक तालमेल हुआ और उनकी पार्टी को दो लोकसभा सीटों पर जीत मिली. ये अपना दल की अभी तक की सबसे बड़ी राजनैतिक सफलता है. भाजपा ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव को देखते हुये नीतीश कुमार की उत्तर प्रदेश में बढती दखल को रोकने के लिये और कुर्मी वोट को साधने के लिये अनुप्रिया पटेल को केन्द्रीय मंत्री बना दिया. भाजपा में कद्दावर कुर्मी नेता और केन्द्रीय मंत्री संतोष गंगवार और ओमप्रकाश सिंह को दर-किनार करके अनुप्रिया पटेल पर दांव लगाया है. लेकिन अनुप्रिया का केन्द्रीय मंत्री बनना देश के भद्रलोक को रास नहीं आया और नकली ट्विटर हैंडल से किये गये ट्वीट को वायरल किया गया और अनुप्रिया पटेल को ट्रोल किया गया.
खबर है कि रवि शुक्ला अनुप्रिया पटेल के ऑफिस में आईटी सेल का काम देखता था लेकिन एक साल पहले उनको निकाल दिया गया था और ये सारे ट्वीट रवि शुक्ला ने अनुप्रिया पटेल के नाम से किये हैं. अभी तक भाजपा समर्थक जिन्हें भद्रलोक (तथाकथित लिबरल-सेकुलर-प्रगतिशील) ने भक्त की संज्ञा दी है उन पर ट्रोल करने के आरोप लगाये जाते थे और आरोप लगाने वाले भद्रलोक वर्ग वाले होते थे. इस बार अनुप्रिया को ट्रोल करने वाले यही भद्रलोक वाले थे. ये भी हो सकता है कि भद्रलोक को अनुप्रिया की पिछली राजनैतिक यात्रा के बारे में पता नहीं चल सका हो, और चूंकि उनके नकली ट्विटर हैंडल पर कई सारे केन्द्रीय मंत्रियों के बधाई वाले ट्वीट आएं इसलिए भी अनुप्रिया उनके निशाने पर आ गयी. हालांकि अनुप्रिया पटेल ने पुलिस में अपने नाम से नकली ट्विटर अकाउंट होने की शिकायत की है और मीडिया को ये बताया है कि उनका अभी तक ट्विटर में अकाउंट ही नहीं था. अब जांच होने के बाद ये पता चलेगा कि मामला क्या था लेकिन अनुप्रिया पटेल के ट्विटर प्रकरण से ये जाहिर हो गया कि ट्विटर में ट्रोल करने के दो गिरोह है और बिना जाने-समझे भद्रलोक वाले भी समय-समय पर ट्रोल गिरोह का रूप अख्तियार कर लेते है.
– अनूप पटेल, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज में शोधार्थी है.
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