भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री माननीय रामदास अठावले का एक बयान आया है. अठावले के लिए लिखते समय उनका इतना विस्तृत परिचय देने की एक वजह है. शायद वह इन्हीं संबोधनों के भूखे हैं. क्योंकि मंत्रीपद मिलने के बाद उनके तेवर और सुर बदले हुए हैं. अपने ताजा बयान में उन्होंने सवर्णों को 25 फीसदी आरक्षण देने की वकालत की है. उन्होंने नौकरी और शिक्षा में अगड़ी जातियों के गरीबों के लिए 25 फीसदी आरक्षण की वकालत की है. मंत्री महोदय का कहना है कि सामाजिक न्याय का मतलब आर्थिक रूप से कमजोर को ऊपर उठाना है. उन्होंने यह भी कहा है कि आरक्षण देने से दलितों और अन्य जातियों को कोई परेशानी नहीं होगी.
अठावले जी के इस तर्क से मैं भी सहमत हूं कि सामाजिक न्याय का मतलब आर्थिक रूप से कमजोर को ऊपर उठाना है. लेकिन अठावले जी से मेरा सवाल यह है कि अगड़ों के लिए आरक्षण की बांग देने से पहले क्या उन्होंने यह सुनिश्चित कर लिया है कि सामाजिक न्याय के तहत दलितों को सारे संवैधानिक अधिकार मिल चुके हैं? क्या अठावले इस बात को लेकर आवश्वस्त हैं कि सारे विभागों में बैकलॉग भरा जा चुका है और दलितों के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षा में मिलने वाली आरक्षण की सुविधा के तहत उन्हें निर्धारित सीटें मिल रही हैं? क्या अठावले ने इस बात की तफ्तीश कर ली है कि मंत्रालयों में सचिव और मुख्य सचिव के पद पर वंचित तबके के अधिकारियों को उनका हक मिल रहा है? क्या अठावले दलित समाज के विद्यार्थियों को मिलने वाली सुविधाओं से संतुष्ट हैं? अगर अठावले को लगता है कि ये सारी बातें हो चुकी है या फिर इन बातों के लिए आवाज उठाने से ज्यादा जरूरी अगड़ों के लिए आरक्षण की मांग करना है तो फिर और बात है.
अठावले जब से भाजपा के रथी बने हैं, उनका अंदाज बदला सा है. याद रहे कि ये वही अठावले हैं जो गुजरात के उना में दलितों के मान मर्दन पर चुप्पी साध लेते हैं. ये वही अठावले हैं जो बिहार में दलित छात्रों पर लाठी भांजे जाने पर कुछ नहीं बोलते. ये वही अठावले हैं जिनकी आवाज संसद में दलित हितों के सवालों पर सुनाई नहीं देती. ये वही अठावले हैं जो तब भी खामोश रह जाते हैं जब महाराष्ट्र में मोबाइल में बाबासाहेब के गाने की रिंगटोन रखने पर एक युवक को मार दिया जाता है. ये वही अठावले हैं जो अपने ‘आका’ के इशारे पर बहुजन नेत्री और दलित हितों को लेकर संसद में गरजने वाली बसपा प्रमुख मायावती से यह पूछ बैठते हैं कि वो बौद्ध धम्म कब अपनाएंगी. और उसके ठीक कुछ ही दिनों बाद सूंड वाले भगवान गणेश के आगे नतमस्तक हुए उनकी फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो जाती है.
मैंने महाराष्ट्र की राजनीति को बतौर पत्रकार करीब से देखा है. मैंने अठावले को ‘किसी भी कीमत पर’ संसद में पहुंचने के लिए छटपटाते देखा है. जिस वक्त अठावले को राज्यसभा में लाने की बात चल रही थी, उस समय मैं एक अखबार से बतौर राजनीतिक संवाददाता जुड़ा था. भाजपा के दफ्तर में रविशंकर प्रसाद इस पर चर्चा कर रहे थे और हम जैसे तमाम पत्रकार बैठे थे. महाराष्ट्र के कुछ सीनियर पत्रकारों ने रविशंकर प्रसाद को चेताया था कि अठावले को राज्यसभा में लाकर वह गलत कर रहे हैं, क्योंकि अठावले को संभाल पाना मुश्किल होगा. तब रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि ऐसा कुछ नहीं होगा, हम संभाल लेंगे. लगता है भाजपा ने सचमुच में अठावले को संभाल लिया है. अठावले के पिछले कुछ बयानों और कुछ खामोशियों को देखें तो यह साफ हो गया है कि अठावले अपनी स्वतंत्रता नागपुर में गिरवी रख कर तब दिल्ली पहुंचे हैं.
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।