Monday, March 10, 2025
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आजाद समाज पार्टी बनाम बहुजन समाज पार्टी

नई पार्टी की घोषणा के बाद पार्टी का झंडा दिखाते चंद्रशेखर आजाद। फोटोः ANI photo
  • नंदलाल वर्मा
    15 मार्च, 2020
    अर्थात् बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम जी के जन्मदिन पर भीम आर्मी चीफ चन्द्रशेखर आजाद द्वारा एक अलग राजनैतिक दल “आजाद समाज पार्टी” का गठन कर मीडिया के माध्यम से बाबा साहब डॉ अंबेडकर जी और कांशी राम जी के अधूरे मिशन या सपनो को साकार करने का संकल्प लेते हुए बहुजन समाज को संबोधित किया। बहुजन समाज विरोधी वर्तमान राजनैतिक मौसम में इस नवगठित दल की सामाजिक व राजनैतिक स्थिति और उस पर पड़ने वाले भावी परिणामों पर देश के बहुजन समाज (एससी-एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक, जिसकी सैद्धांतिक परिकल्पना डॉ आंबेडकर जी ने की थी और जिसका सक्रिय राजनीति में समावेश कांशी राम जी ने किया था) के सुशिक्षित और जागरूक समाज का अत्यंत गंभीरतापूर्वक चिंतन और विमर्श करने का उत्तरदायित्व एक बार फिर उत्पन्न हो गया है।

उसे इस नवगठित राजनैतिक दल के निहितार्थ को राजनैतिक परिदृश्य में ढूंढना और समझना होगा।   आधुनिक पूंजीवादी राजनीति और व्यावसायिक रूप में बदल चुकी वर्तमान राजनीति से बहुजन समाज की राजनैतिक रूप से अति महत्वाकांक्षी युवा पीढ़ी का एक बड़े वर्ग के अंदर अल्प समय में सरल मार्ग से राजनीति के शिखर पर पहुंचने की अतिवेग की लहरें हिलोरें मारने लगी हैं, जो इन दोनों महापुरूषों के सामाजिक एवं राजनैतिक दर्शन/विचारधारा के झूठे सहारे के बल पर भोले-भाले बहुजन समाज को राजनैतिक रूप से दिग्भ्रमित करने में लगा हुआ है। यह माध्यम अंबेडकर जी और कांशी राम जी की राजनैतिक विचारधारा के बिल्कुल अनुकूल नही हैं। बहुजन समाज का जो युवा वर्ग इस साजिश का शिकार होते दिखता हैं, उससे हमारा विनम्र निवेदन है, कि वह एक बार डॉ आंबेडकर जी और कांशी राम जी की शिक्षा और उनके सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक त्याग, तपस्या और समर्पण के भाव का एकाग्रचित्त होकर स्वस्थ चिंतन के साथ अहसास अवश्य करें, क्योंकि इन महापुरुषों/युगपुरूषों के व्यक्तित्वों और कृतत्वों का इतनी जल्दी मूल्यांकन किया जाना आसान कार्य नहीं है। सामाजिक छुआछूत और अपमान की जो पीड़ा अंबेडकर जी ने प्रत्यक्ष रूप से केवल देखी ही नहीं थी, बल्कि बहुजन समाज के खातिर ही उसका सामाजिक व राजनीतिक स्तर पर लंबे समय तक सीधा दंश भी झेलते रहे।

सामाजिक और राजनैतिक विषम और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद वह अपने मिशन को साकार करने में तत्कालीन मनुवादी शक्तियों से उनके बीच रहकर अत्यंत धैर्य और संयम से कई स्तर पर लंबे समय तक लड़ते और जूझते रहे। डॉ. आंबेडकर जी अच्छी तरह जानते थे कि विश्व में ज्ञान अर्थात् विद्वता का मान सम्मान हमेशा रहा और इसी मंतव्य के साथ उन्होंने शिक्षा को सर्वोपरि रखकर विदेशों से भी शिक्षा ग्रहण करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने संबंधित विषयों की मात्र डिग्रियां ही हासिल नहीं की, बल्कि विषय के मर्म को समझकर उसके व्यावहारिक पहलुओं पर महारथ हासिल की थी, जिनकी प्रासंगिकता संबंधित क्षेत्रों में आज भी भारत के आधुनिक विद्वानों द्वारा मानी जा रही है। तत्कालीन मनुवादी व्यवस्था में उनको संविधान सभा से लेकर मंत्रिमंडल में सम्मानपूर्वक स्थान मिलने की मज़बूरी केवल उनकी विषयगत योग्यता के कारण बनती रही।

भारत स्वतंत्र होने के बाद तत्कालीन उत्पन्न संवैधानिक व राजनैतिक परिस्थितियों का सामना करने के लिए डॉ आंबेडकर जी का कोई विकल्प नहीं दिख रहा था, इसीलिए डॉ आंबेडकर को संविधान प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया था। उस समय संविधान प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनने लायक,संविधान सभा के तमाम सदस्यों में से अम्बेडकर के बराबर या उनसे अधिक उपयुक्त,योग्य और सक्षम कोई अन्य का नहीं मिल पाना,डॉ आंबेडकर की योग्यता और क्षमता का इससे बड़ा प्रमाणपत्र और क्या हो सकता है? यदि ऐसा रहा होता तो तत्कालीन संविधान सभा की संरचना डॉ आंबेडकर को देश का संविधान बनाने का अधिकार नहीं देती। यदि डॉ आंबेडकर जी व्यक्तिगत या पारिवारिक जीवन पर केन्द्रित होते तो वह विदेशों से उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद वह उस भारत में दुबारा वापस आने की सोचते भी नहीं, जहां पर उन्होंने सामाजिक ऊंच-नीच और जातीय छुआछूत का प्रत्यक्षतः अनुभव किया था और विदेशों में जहां सामाजिक जाति की ऊंच-नीच और छुआछूत लेशमात्र भी नहीं था,किसी देश में बसकर सामाजिक और आर्थिक रूप से संपन्न, सम्मान और गौरव का जीवन जी लेते।अंबेडकर जी देश व विदेश में जब उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तो वह केवल अपने लिए नहीं पढ़-लिख रहे थे, बल्कि हजारों साल से इस देश के दलित,वंचित और शोषित समाज के करोड़ों बच्चों के सपनों को साकार करने का लक्ष्य उनको रात-दिन मेहनत करने के लिए लगातार परेशान और प्रेरित कर रहा था।विदेश में पढ़ने वाला यह दलित छात्र मात्र भीम राव अंबेडकर नहीं था, बल्कि वह स्वयं को देश के बहुजन समाज का एक भावी सामाजिक एवं राजनैतिक महानायक के रूप में तैयार कर रहा था।इसी सोच ने डॉ आंबेडकर को अछूतों के लिए नारकीय बने भारत देश में पुनः आने पर मज़बूर कर दिया था।

आंबेडकर जी अपनी इसी शिक्षा और विशेषज्ञता के बल पर स्वतंत्रता से पूर्व और बाद भी बहुजन समाज की सामाजिक,आर्थिक,धार्मिक और राजनीतिक स्वतंत्रता और समानता के लिए अकेले लंबे समय तक लगातार लड़ते रहे और उन्होंने अपने खराब स्वास्थ्य को दृष्टिगत दृष्टिगत रखते हुए बहुजन समाज के लिए संवैधानिक व्यवस्था इस क़दर और उम्मीद में रखी थी,कि भविष्य में फिर कभी यदि कोई बहुजन नायक पैदा होता तो उसे इस व्यवस्था का लाभ बहुजन हित में उठाने का रास्ता सुगम और सहज हो सकता है।उसी उम्मीद का परिणाम है,कांशी राम जी और बहन मायावती जी की सामाजिक व राजनीतिक इंजीनियरिंग और कैमिस्ट्री पर आधारित बहुजन समाज पार्टी की सफल व सार्थक प्रयोगवादी राजनैतिक यात्रा।

सामाजिक और राजनैतिक गलियारों में निर्विवाद रूप से डॉ आंबेडकर जी की सामाजिक व संवैधानिक  व्यवस्था/विरासत के असली पोषक/उत्तराधिकारी और  बहुजन समाज की राजनीति के सफल प्रयोगकर्ता कांशी राम जी को ही माना जाता है। कांशी राम ने दलित महानायक के सम्मान की खातिर एक अच्छी सरकारी नौकरी छोड़कर बामसेफ और डी एस4 के मंचों से पैदल,साईकिल और बसों ट्रेनों से हजारों सभाएं और किलोमीटर की यात्राओं के माध्यम से सामाजिक जनजागृति करते हुए बीएसपी गठित कर अपनी राजनीतिक सूझबूझ और बहन मायावती के तेजतर्रार और प्रखर नेतृत्व में बहुजन समाज की राजनीति को एक सफल मुकाम तक पहुंचाने में राजनीतिक गलियारों में दलित राजनीति को एक नई बहस का मुद्दा बना दिया था।कांशी राम जी ने अपनी जीवित अवस्था में ही बहन मायावती जी को अपना राजनैतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था।यदि कांशी राम जी अपनी जीवित अवस्था में ऐसा न भी कर पाए होते, तो भी उनकी राजनीति की विरासत की असली हकदार बहन जी के अलावा कोई हो ही नहीं सकता था,क्योंकि बहन जी ने तत्कालीन सामाजिक विषमताओं और परिवार की कपोलकल्पित मर्यादाओं की परवाह किए बगैर सरकारी नौकरी छोड़कर बहुजन समाज की सामाजिक व राजनीतिक आंदोलन की लंबी यात्रा में कांशी राम जी के साथ कंधा से कंधा मिलाकर अंतिम समय तक उनका एक बेटी के रूप में साथ दिया है।बहन जी को एक लड़की होने के नाते तत्कालीन सामाजिक एवं राजनैतिक स्तर पर आपत्ति और अपमानजनक अनगिनत टिप्पणियों का सामना करना पड़ा होगा?

ऐसे में बहुजन समाज को चाहिए कि वह राजनैतिक रूप से धैर्य और संयम रखते हुए डॉ. भीम राव आंबेडकर, कांशी राम और बहन मायावती जी के जीवन संघर्ष को सदैव अपने और समाज के सामने रखकर बहुजन समाज के राजनैतिक चिंतन व विमर्श को जीवित रखने के प्रयासों में कोई कोर-कसर बाकी न रखें,तभी डॉ आंबेडकर और कांशी राम जी का मिशन बहन मायावती जी के नेतृत्व में आगे बढ़ सकता है। वर्तमान बहुजन समाज पार्टी या उसके नेतृत्व के कुछ सन्दर्भो या प्रसंगों और श्रृंखलाबद्ध राजनैतिक नेतृत्व के किसी स्तर पर संवादहीनता के कारण उत्पन्न अदृश्य व काल्पनिक अपारदर्शिता पर बहुजन समाज के कुछ अतिमहत्वाकांक्षी लोगों की अदूरदर्शी सोच की वजह से असहमति जैसी स्थिति हो सकती है,किन्तु उसे पारस्परिक विचार-विमर्श के माध्यम से दूर करने के प्रयास कर किसी ठोस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता हैं।नेतृत्व के प्रति असहमति या नेतृत्व श्रृंखला की कुछ कमियों का अर्थ यह कदापि नहीं निकलता है,कि उसकी आधारपरक राजनैतिक विचारधारा का विभाजन कर उस दल के समानांतर एक और राजनैतिक दल खड़ा कर देना,जिनका अंतिम लक्ष्य एक ही हो,का कोई सार्थक औचित्य प्रतीत नहीं होता है।

यह बहुजन समाज की स्थापित राजनैतिक शक्ति में फूट या बिखराव डालने के अलावा कुछ नहीं हो सकता।दूसरे दलों जैसे कांग्रेस और बीजेपी में दलित नेताओं को कांशी राम जी “गुलाम चमचों” की संज्ञा दिया करते थे।यदि कांशी राम जी आज जीवित होते तो बीएसपी को कमज़ोर करने के उद्देश्य से उसके समानांतर खड़े किए जा रहे दलों के नेताओं को “स्वतंत्र चमचों” की संज्ञा देने के अलावा कुछ नहीं कहते।

भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद को राजनैतिक दल गठित करने से पहले एक बार डॉ आंबेडकर,कांशी राम और बहन मायावती जी के सामाजिक व राजनैतिक जीवन संघर्ष का गहनता व गंभीतापूर्वक अवलोकन और मूल्यांकन करना चाहिए था।इन तीनों महान सख्शियतों ने अपने निजी और पारिवारिक जीवन की तिलांजलि देकर देश के दलितों,वंचितों और शोषितों के लिए सामाजिक जनजागृति की लंबी संघर्ष युक्त आंदोलनात्मक यात्रा की भट्टी में स्वयं को झोंककर बहुजन समाज का विश्वास जीतने में सफलता प्राप्ति के बाद बीएसपी की राजनीतिक यात्रा को इस मुकाम पर पहुंचा पाया है।यदि इस यात्रा में वह दो कदम चल नहीं सकते हैं,तो इस यात्रा के रास्ते पर चलने वाले बहुजन समाज को दिग्भ्रमित करने के उद्देश्य से दूसरा रास्ता बनाने का काम तो नहीं करना चाहिए था।

अब बहुजन समाज सामाजिक व राजनैतिक दृष्टि से काफी जागरूक और सजग हो चुका है। यदि चन्द्रशेखर आजाद अपने को बहुजन समाज का सच्चा हितैषी मानते हैं तो अपने नदी रूपी नवगठित राजनीतिक दल  का रुख बीएसपी जैसे राजनैतिक समुद्र की ओर अग्रसर करने में ही बहुजन समाज का व्यापक हित या उद्देश्य पूरा होने की संभावनाएं बनती हैं।  बहुजन समाज की छिन्न-भिन्न शक्ति से डॉ आंबेडकर जी और कांशी राम जी के अधूरे सपने या मिशन को गंतव्य/लक्ष्य तक पहुंचाना असम्भव सा लगता है।

लेखक वाई डी पीजी कॉलेज, लखीमपुर खीरी में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। संपर्क- 9415461224

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