पूर्वांचल में सबसे अहम और रोचक मुकाबला आजमगढ़ में है. यह जिला मऊ, गोरखपुर, गाजीपुर, जौनपुर, सुल्तानपुर और आंबेडकर जिले की सीमा से लगा हुआ है.
भाजपा के टिकट पर दिनेश लाल यादव (निरहुआ) चुनावी मैदान में हैं, तो दूसरी तरफ सपा-बसपा गठबंधन के सूत्रधार अखिलेश यादव इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. इस क्षेत्र में 19 फीसदी यादव, 16 दलित और 14 फीसदी मुसलमान हैं.
आजमगढ़ की जनता लहर के विपरीत चलती है : इस सीट का इतिहास रहा है लहर के विपरीत चलने का. 2014 में मोदी लहर में भी यहां की जनता ने मुलायम सिंह यादव को चुना था. 1978 में कांग्रेस विरोधी लहर में यहां कांग्रेस की मोहसिना किदवई को जीत मिली थी. वीपी सिंह की लहर में यहां की जनता ने बसपा को जिताया था.
निरहुआ को प्रशंसकों के समर्थन का भरोसा
बातचीत में निरहुआ से कहते हैं, अखिलेश प्रचार करने नहीं आ रहे हैं. अगर वह जीत गये, तो क्षेत्र की जनता का कितना साथ दे पायेंगे? क्या आप फिल्में छोड़ पायेंगे, इस सवाल पर उन्होंने कहा, मैं यहीं फिल्में बनाऊंगा, मुंबई से चल कर मुझे आजमगढ़ आना पड़ता है. मेरी कई फिल्में यहीं बनी हैं. मैं यहीं रहूंगा.
वोटर समीकरण
कुल मतदाता 17.70 लाख
महिला 8.08 लाख
पुरुष 9.63 लाख
अन्य 74
एक वोटर मुकेश जी कहते हैं, यही आजगढ़ की जनता का दुर्भाग्य कि उसके पास स्थानीय कोई नेता नहीं है. जो भी हैं, बाहरी हैं. जनता अपनी समस्या लेकर किसके पास जायेगी? सपा और बसपा के गठबंधन से भाजपा कमजोर हुई है, लेकिन निरहुआ के प्रचार और जनसभा में की जा रही मेहनत की भी सराहना करते हैं.
इस क्षेत्र के चुनावी समीकरण को समझना हो, तो ऐसे समझिए, यादव, दलित, मुस्लिम में से किसी दो को जो अपने पक्ष में करने में कामयाब रहा, जीत उसकी. 1962 से लगातार इस सीट पर या तो यादव प्रत्याशी विजयी हुआ है या दूसरे नंबर पर रहा है. वैसे इस बार एक यादव की टक्कर दूसरे यादव से है. अब तक हुए 14 आम चुनाव और दो उपचुनावों में से बारह बार यादव जाति के उम्मीदवार लोकसभा पहुंचे. तीन बार मुस्लिम प्रत्याशियों ने कामयाबी हासिल की.
विधानसभा सीटें:-गोपालपुर, सगड़ी, मुबारकपुर, आजमगढ, मेंहनगर
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