नई दिल्ली। पिछड़ा वर्ग यानि की ओबीसी समाज को अधिकार दिलाने की कवायद करने के उद्देश्य से गठित राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के लिए इससे संबंधित विधेयक राज्यसभा में पेश हो गया. इससे पहले यह बिल लोकसभा में पारित हो चुका है. 123वां संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा से पास होने के बाद आज राज्यसभा में पेश हुआ.
सरकार की तरफ से बिल में कुछ संशोधन किए गए हैं जिसमें आयोग में महिला सदस्य को भी शामिल किया गया है. साथ ही राज्यों के अधिकारों में हस्तक्षेप को लेकर विपक्ष की शंका को भी दूर करने का प्रयास किया गया है. कांग्रेस ने भी राज्यसभा में इस बिल का समर्थन करने की बात कही है.
इस विधेयक के पारित होने के बाद सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गो के लिए राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग बनेगा. इस आयोग में एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य होंगे . इस प्रकार नियुक्त अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों की सेवा शर्तें एवं पदावधि के नियम राष्ट्रपति के अधीन होंगी. आयोग को अपनी स्वयं की प्रक्रिया निर्धारित करने की शक्ति होगी.
गौरतलब है कि 1993 में गठित पिछड़ा वर्ग आयोग अभी तक सिर्फ सामाजिक और शैक्षणिक आधार पर पिछड़ी जातियों को पिछड़े वर्गों की सूची में शामिल करने या पहले से शामिल जातियों को सूची से बाहर करने का काम करता था. इस विधेयक के पारित होने के बाद संवैधानिक दर्जा मिलने की वजह से संविधान में अनुच्छेद 342 (क) जोड़कर प्रस्तावित आयोग को सिविल न्यायालय के समकक्ष अधिकार दिये जा सकेंगे. इससे आयोग को पिछड़े वर्गों की शिकायतों का निवारण करने का अधिकार मिल जायेगा.
बता दें कि इस विधेयक को लेकर सरकार की तब किरकिरी हो गई थी जब पिछले वर्ष राज्य सभा में इस बिल पर विपक्ष का संशोधन पास हो गया था. लिहाजा सरकार की तरफ से बिल में कुछ संशोधन कर दोबारा पेश करना पड़ा. कांग्रेस पार्टी ने इस बिल का समर्थन किया है. आगामी चुनाव को देखते हुए इसकी आशंका बहुत कम है कि कोई दल इस बिल का विरोध करेगा.
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