Friday, January 3, 2025
Homeओपीनियनबहुजन नायकों की जंयती के बहाने अन्य जाति-धर्मों और शास्त्रों को कोसना...

बहुजन नायकों की जंयती के बहाने अन्य जाति-धर्मों और शास्त्रों को कोसना कितना सही?

 इन दिनों बहुजन नायकों की जयंती पर किसी अन्य जाति, धर्म और धर्म शास्त्रों को कोसने का जैसे चलन सा चल पड़ा है। पहले तो साल में बाबासाहब के नाम पर दो दिन ही होते थे। अब तो हमने कई बहुजन महापुरुषों को ढूंढ निकाला है, जिनके नाम पर दूसरे जाति धर्म को कोसने, चिढ़ाने व गालियां देने के मानो भरपूर अवसर मिल रहा है।
विगत 3 जनवरी को माता सावित्रीबाई फुले की जयंती थी। सोशल मीडिया तो भर ही गया था। छोटी छोटी जगहों पर भी लोगों ने इकट्ठा होकर कोसने के एक सूत्रीय मिशन को सफल बनाने के भाषण दिए। सभा में एक युवक ने ज्योतिबा व सावित्रीबाई के जीवन से प्रेरणा लेकर अपने मौहल्ले में बच्चों को दो घंटे पढ़ाने की योजना बताई तो सभी ने झिड़क कर बैठा दिया।
विगत 25 दिसंबर को बहुजनों ने मनुस्मृति दहन दिवस खूब धूमधाम से मनाया। पानी पी पी कर दूसरे जाति धर्म को गालियां दी। मनुस्मृति से छांटे हुए श्लोकों का बार-बार पठन किया। सभा में जब बाबासाहब के एक उत्साही अनुयायी ने सुझाव दिया कि हमें मनुस्मृति को बार बार याद कर फिर से जिंदा करने की बजाय मानव कल्याण के लिए बाबासाहब की महान रचना ‘बुद्ध और उनका धम्म’ व ‘संविधान’ को घर घर पहुंचाने पर जोर देना चाहिए, तो सभी ने उसे डांटते हुए कहा- ‘यह काम हमारा नहीं है’।
होली व रावण दहन का हम विरोध करते हैं लेकिन हर साल मनुस्मृति की होली जलाने का जश्न मनाते हैं। मजेदार बात तो यह है कि जिन्होंने मनुस्मृति लिखी उनकी संतानें मनुस्मृति को पढ़ना तो दूर देखते तक नहीं है, लेकिन कथित अंबेडकरवादी लोग इसको रस ले लेकर पढ़ते हैं ताकि एक जाति के खिलाफ बोलने का मसाला मिल जाए। आज डॉ. अंबेडकर होते तो अपने ही लोगों से लड़ना पड़ता।
ज्योतिबा फुले जयंती के दिन हम जोशीले भाषण में युवाओं को यह चीख चीख कर बताते हैं कि ज्योतिबा को किन जाति के लोगों ने परेशान किया लेकिन इस बात पर चुप रहते है कि ऐसी मुश्किल हालात में भी वह अंग्रेजी में भी पारंगत हुए, सावित्री बाई को पढ़ाया, साहित्य का सृजन किया, गरीबों के लिए स्कूल खोले। इसलिए हमें भी अपनी आय का कुछ अंश देकर मौहल्लों में स्कूल खोलने चाहिए, कुछ घंटे गरीब बच्चों को पढ़ाना चाहिए।
कबीर जयंती हो या सतगुरु रविदास का स्मृति दिवस, सामाजिक क्रांति के इन महान संतों द्वारा रचित अथाह ग्रंथों में से हम उन्ही चंद दोहों की रट लगाते हैं जो उन्होंने किसी जाति धर्म के पाखंड के खिलाफ कहे थे। लेकिन मन की शुद्धि, ज्ञान, ध्यान, दान, मानव सेवा के विचारों को जीवन में उतारने की उनकी वाणी के पन्नों को पलटते ही नहीं है, छुपा देते हैं।
कोरेगांव जैसे शौर्य दिवसों पर हमारे बहादुर वीरों की गौरव गाथा का बखान करना जरूरी है लेकिन इसके साथ ही भारत के दूसरे राज्यों में छोटे छोटे गांवों में इस दिन आसपास की दूसरी जातियों को कोस कर, माहौल बिगाड़ कर स्थानीय गरीब बहुजनों के लिए परेशानियां पैदा करना कहां की समझदारी है?
बुद्ध पूर्णिमा का दिन आता है। बात प्रेम, करुणा, मैत्री, शील, समाधि व प्रज्ञा की करनी होती है, लेकिन जब तक हम दूसरे धर्म, उनके शास्त्रों रीति रिवाजों को गालियां नहीं दे देते तब तक बुद्ध पूर्णिमा का समारोह सफल नहीं माना जाता. इस दिन बुद्ध की शिक्षाओं के बजाए दूसरे धर्म की विकृतियों को ज्यादा याद करते हैं और इसके बाद अलग अलग बौद्ध संस्थाओं के लोग आपस में भिड़ते नजर आते हैं।
हमने बहुजन महापुरुषों के दिनों को उनकी शिक्षा, साहित्य व जीवन से प्रेरणा लेकर मौजूदा संकट के दौर में शांति से उनकी विचारधारा फैलाने की बजाए उनके नाम पर दूसरों को कोसने के बहाने ढूंढ लिए हैं। सारी ऊर्जा सृजन की बजाए नकारात्मक दिशा में बर्बाद हो रही है। उनको पढ़ने, समझने व जीवन में अपनाने के बजाय उनकी मूर्तियों को मालाओं से ढकने में ज्यादा रुचि ले रहे हैं।
छाती पर बाबासाहेब के चित्र वाली बनियान पहनकर उछलना, दूसरों को चिढ़ाने के लिए नारे लगाते हुए गांवों में रैली निकालना उस महापुरुष का मिशन तो नहीं हो सकता। जिस मार्ग पर नहीं जाना उसका नाम क्यों लेना? लेकिन बहुजन समाज के लोग उसी मार्ग का रात दिन रोना रोते हैं, बार बार याद करते हैं जिसके लिए महापुरुषों ने मना किया था। इसके लिए बाकायदा मोटा चंदा इकट्ठा कर बड़े समारोह आयोजित किए जाते हैं, जिन्हें देखकर ऐसा लगता है कि ये सामाजिक, वैचारिक, सांस्कृतिक और आर्थिक खुशहाली लाने की बजाय दूसरों को कोसने व आपस में भिड़ने के समारोह है।
आखिर कहां आ गए हैं हम? चले थे मानव समाज में इनकी प्रेम, करुणा व मैत्री की विचारधारा फैलाने के लिए, लेकिन हमने अपने ही व्यवहार से महान संतों, महापुरुषों को आज दूसरे समुदायों की नजर में खलनायक बना दिया है।

लोकप्रिय

संबंधित खबरें

- Advertisement -spot_img

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Skip to content