23 जून को बिहार में विपक्षी दलों की बैठक के पहले बिहार की राजनीति गरमा गई है। और इस गरमाई राजनीति के केंद्र में पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी हैं, जो महागठबंधन से अलग हो गए हैं। आपसी खिंचतान में मांझी के बेटे संतोष सुमन ने भी सरकार से इस्तीफा दे दिया था। इस इस्तीफे के बाद मांझी ने नीतीश कुमार पर कई आरोप लगाए थे, जिसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जीतनराम मांझी को भाजपा से मिला हुआ बता दिया है।
मांझी का आरोप है कि नीतीश कुमार ने उन्हें बैठक में नहीं बुलाकर उनका अपमान किया। साथ ही आरोप लगाया कि नीतीश कुमार उनकी पार्टी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा को जदयू में मिलाना चाहते थे, जिस पर नीतीश कुमार ने उन्हें भाजपा का एजेंट बता दिया। नीतीश कुमार ने आरोप लगाया कि मांझी विपक्ष की बैठक में हुई चर्चा को भाजपा से बता देते, इसलिए उनसे विलय करने को कहा गया।
मांझी इस पूरे घटनाक्रम को दलित समाज के अपमान से जोड़कर इसका राजनीतिक लाभ लेने में जुट गए हैं। तो अंदरखाने खबर यह भी है कि महागठबंधन से निकलने के बाद जीतनराम मांझी एनडीए के खेमे में जाने को तैयार हैं। भाजपा को भी मांझी के रूप में एक मौका दिखने लगा है। तो इसके पीछे की वजह बिहार के 16 प्रतिशत दलित मतदाता हैं। बिहार के दलित मतदाताओं की बात करें तो प्रदेश के सबी 243 सीटों में 40-50 हजार दलित मतदाता हैं, जो किसी को भी हराने या जीताने में कामयाब हैं। इन वोटों पर भाजपा लेकर लेकर राजद, लोजपा और कांग्रेस सभी की नजरे हैं। हालांकि जीतनराम मांझी के जाने के बाद नीतीश कुमार ने उन्हीं के मुसहर समाज से रत्नेश सदा को मंत्री बनाकर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश कर दी है। तो जीतनराम मांझी नई राह ढूंढ़ने में लग गए हैं। खबर है कि पटना में 18 जून को हम पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद 19 जून को मांझी अपने बेटे के साथ दिल्ली जाएंगे, जहां वह गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात करेंगे।
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