पटना। सीट बंटवारे से पहले महागठबंधन के बड़े नेताओं के बीच बौद्धिक और राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई भी शुरू हो गई है. हैसियत बचाने-बढ़ाने के लिए राजद-कांग्रेस में जारी दांव-पेंच से अलग लालू प्रसाद यादव और शरद यादव भी अपनी-अपनी चालें चल रहे हैं.
मधेपुरा को लेकर ठन गया है मामला
बिहार की सियासत में तीन दशकों से दोस्ती-दुश्मनी का सिलसिला निभाते आ रहे दोनों दिग्गजों के बीच अबकी फिर मधेपुरा को लेकर ही ठन गई है. राजनीति में तेजी से उभर रहे तेजस्वी यादव की राह में शरद का सियासी कद रोड़े अटका सकता है. इसलिए लालू की कोशिश है कि जदयू से अलग होने के बाद शरद की मद्धिम होती सियासी शक्ति को दोबारा नहीं पनपने दिया जाए, जिनसे वह खुद एक बार पराजित हो चुके हैं.
शरद के सामने अस्तित्व बचाने का संकट
बेबाक और समाजवादी चरित्र के शरद यादव की अतीत की गतिविधियों की गणना करते हुए लालू प्रसाद यादव की नजर भविष्य पर है. अपने सियासी उत्तराधिकारी की हिफाजत के लिए उन्होंने शरद के सामने स्पष्ट कर दिया है कि उन्हें मधेपुरा के मैदान में राजद के सिंबल पर ही उतरना होगा. लालू की चाल से जहां कांग्रेस की कृपा के आकांक्षी पप्पू यादव के लिए दिल्ली दूर नजर आने लगी है, वहीं शरद के सामने भी अस्तित्व बचाने का संकट खड़ा हो गया है.
पप्पू यादव ने भी खोल रखे हैं सारे घोड़े
रांची के रिम्स में भर्ती लालू से तीन-तीन बार मिलने के बाद भी अगली पारी को लेकर वह आश्वस्त नहीं हैं. कांग्रेस पप्पू यादव के लिए राजद से मधेपुरा मांग रही है. सिटिंग के नाम पर पप्पू यादव ने भी सारे घोड़े खोल रखे हैं. जाप के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव एजाज अहमद के मुताबिक मधेपुरा से कोई समझौता नहीं होगा. एक सीट के लिए शरद को संघर्ष करते हुए देखकर पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने लालटेन थामने में देर नहीं की. चौधरी जमुई से टिकट के दावेदार हैं.
शरद यादव ने ही की थी शुरुआत
अबकी दांव-पेच की शुरुआत शरद ने ही की थी. पाला बदलकर राजग से आए रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा को साथ लेकर महागठबंधन में वह खुद को मजबूत करने की कोशिश में थे. इसके लिए रालोसपा में अपनी नई पार्टी के विलय की तैयारी में थे. वहीं हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) प्रमुख जीतनराम मांझी पर भी डोरे डाले जा रहे थे.
मुकेश सहनी को ज्वाइन कराकर संतुलन बनाने की कोशिश
इसकी भनक मिलते ही लालू ने आनन-फानन में तेजस्वी ने मुकेश सहनी को ज्वाइन कराकर संतुलन बनाने की कोशिश की. सहनी को साथ लाने के पहले तेजस्वी ने अन्य सहयोगी दलों से सहमति नहीं ली थी. लालू के दबाव पर शरद को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके रालोसपा में अपने दल के विलय की बात का खंडन करना पड़ा.
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