हाथ में तथागत बुद्ध, सम्राट अशोक और बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर की तस्वीर लिये… बुद्धम शरणं गच्छामि के उदघोष के साथ बौद्ध भिक्खुओं का यह दल सारनाथ से निकला है। उद्देश्य है विश्व का कल्याण। 15 नवंबर को तथागत बुद्ध की प्रथम उपदेश स्थली सारनाथ से यह धम्म यात्रा निकली है, जिसमें देश-विदेश के 101 बौद्ध भिक्खु शामिल हैं। 350 किलोमीटर की पदयात्रा कर बौद्ध भिक्खु 30 नवंबर को श्रावस्ती पहुचेंगे, जहां इस यात्रा का समापन होगा। इसे विश्व शांति पदयात्रा का नाम दिया गया है।
सारनाथ से श्रावस्ती तक इस 15 दिवसीय पदयात्रा की शुरुआत सारनाथ स्थित धम्मा लर्निंग सेंटर से हुई। सेंटर के संस्थापक एवं अध्यक्ष भिक्खु चन्दिमा हैं, जिन्होंने तथागत बुद्ध के दौर के भिक्षाटन की परंपरा को दोहराने का प्रण लिया है। अपनी इस यात्रा के दौरान भंते चन्दिमा और भिक्खु संघ विश्व कल्याण के साथ बौद्ध धम्म और तथागत बुद्ध की बातों का प्रचार प्रसार कर रहे हैं।
इस यात्रा को लेकर बौद्ध समाज के लोगों में भी खासा उत्साह है। बौद्ध भिक्खु जिस रास्ते से गुजर रहे हैं, बौद्ध उपासक उनके स्वागत के लिए उमड़ रहे हैं। इस दौरान यात्रा के पड़ाव पर भंते चंदिमा और बौद्ध भिक्खु आमजन को धम्म की शिक्षा दे रहे हैं। साथ ही तथागत बुद्ध द्वारा दिये गए उपदेश को बता रहे हैं।
15 नवंबर को सारनाथ से शुरू हुई यह धम्म यात्रा 19 नवंबर को आजमगढ़, 23 नवंबर को अंबेडकर नगर, 25 नवंबर को बस्ती, 27 नवंबर को सिद्धार्थ नगर और 30 नवंबर को श्रावस्ती पहुंचेगी, जहां इसका समापन होगा। इस दौरान बौद्ध भिक्खु रोज 20 किलोमीटर की यात्रा करेंगे।
यात्रा के शुरूआती स्थल सारनाथ के साथ श्रावस्ती भी बौद्ध धम्म का प्रमुख केंद्र है। सारनाथ में बुद्ध ने जहां पांच शिष्यों को अपना पहला उपदेश दिया था, तो वहीं श्रावस्ती स्थित जैतवन में तथागत बुद्ध ने अपना वर्षावास बिताया था। भंते चन्दिमा के नेतृत्व में निकली बौद्ध भिक्खुओं की यह पदयात्रा उस दौर की याद दिला रही है, जब तथागत बुद्ध बौद्ध भिक्खुओं के साथ हाथ में भिक्षापात्र लिये नगर-नगर भ्रमण करते हुए धम्म का प्रचार करते थे। भंते चन्दिमा और भिक्खु संघ ने उस दौर को एक बार फिर से जीवंत कर दिया है।

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