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लखनऊ। बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर केन्द्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ के इतिहास विभाग की एम फिल प्रवेश परीक्षा में 100 में 94 अंक लाने वाले बसंत कनौजिया की सफलता विश्वविद्यालय के दलित विरोधी कुछ लोगों को पच नही रही है. इसलिए बसंत सहित अन्य मेधावी छात्रों का दाखिला रोकने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन नए पैतरे चल रहा है. विवि की अनुशासन समिति ने आनन-फानन में प्रोक्टोरियल बोर्ड की मीटिंग करवाकर एक नोटिस जारी किया है कि इन लोगों के ऊपर विवि प्रशासन द्वारा FIR दर्ज है, उन लोगों का एडमिशन नही होगा.
पीड़ित छात्रों का आरोप है कि ऐसा कर विवि द्वारा जारी तुगलकी फरमान व्यक्ति के शिक्षा के मौलिक अधिकार, जो भारतीय संविधान के आर्टिकल 21 (A) का खुला उल्लंघन है. विवि के ये होनहार छात्र विवि में हो रही अनियमिताओं और भ्रष्टाचार के खिलाफ लगातार आवाज उठा रहे थे, जिसकी वजह से इन पर मामला दर्ज करवाया गया था.
छात्रों का आरोप है कि इस विवि में अनुसूचित जाति के छात्रों का शोषण चरम पर है. इस वजह छात्रों के ऊपर हो रहे शोषण के कारण छात्र संवैधानिक दायरों में रहकर अपनी मांगे पूरी करने के लिए विवि प्रशासन के खिलाफ लगातार धरना प्रदर्शन करके अपना विरोध जताते हैं. लेकिन विवि प्रशासन की अनुशासन समिति किसी भी छात्र को नियम के अनुसार कोई कारण बताओ नोटिस जारी नही करती है, न ही कोई जांच समिति बनाती है और न ही कोई चेतावनी वाला नोटिस जारी करती है. विवि प्रशासन उनकी मांगें न मानकर सीधे पुलिस प्रशासन की मदद से उक्त छात्रों के खिलाफ FIR करवा देती है.
छात्रों का कहना है कि हाल में ही विवि स्थित अम्बेडकर भवन के गेट का कांच अपने आप गिरकर टूट गया. कांच के अपने आप टूटने की वीडियो रिकॉर्डिंग उक्त छात्रों के पास मौजूद है तथा प्रदेश पुलिस के लॉकल इंटेलिजेंस यूनिट (LIU) अधिकारी के सामने की बात जिसके वो गवाह भी हैं लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों ने छात्रों के खिलाफ झूठी FIR करवा दी. इस वजह से विवि में पढ़ने वाले अधिकतर अनुसूचित जाति और जनजाति के छात्र डरे सहमे रहते हैं और उनका भविष्य अंधकारमय बनाने के लिए FIR करके षड्यंत्र करते हैं.
ज्ञात हो विगत जून 2017 में भ्रष्टाचार के आरोप में विवि के एक प्रोफेसर को सीबीआई ने रिश्वत लेते रंगे हांथों पकड़ लिया था. छात्रों का कहना है कि जो प्रशासनिक अधिकारी छात्रों के ऊपर उपद्रवी और गुंडे होने के आरोप लगा रहे हैं, उन प्रशासनिक अधिकारियों में ऊपर यौन शोषण, अपनी शोध छात्राओं के साथ छेड़खानी, बदतमीजी, पीएचडी स्कॉलरर्स को परेशान करने तथा उनको पीएचडी छोड़कर जाने के लिए मजबूर किये जाने और छात्रों को गाली गलौच करने का आरोप हैं, लेकिन विवि प्रशासन ऐसे शिक्षकों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करता बल्कि उनको उल्टे उच्च पद दिया जाता जिससे उनकी मनमानी पढती जाती है.
छात्रों का आरोप है कि जिस तरह से विवि प्रशासन छात्रों को झूठे मामले में फंसाकर अपनी मनमानी कर रहा है, उससे विवि की गरिमा को बहुत ठेस पहुंच रही है तथा छात्रों के भविष्य पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं, क्योकि पिछले साल भी विवि प्रशासन ने इतिहास विभाग पीएचडी की प्रवेश परीक्षा में टॉप करने वाले छात्र श्रेयात बौद्ध और संदीप शास्त्री का एडमिशन नही लिया था, जिससे दोनों छात्रों का एक साल बर्बाद हुआ है. जिन छात्रों के दाखिले को रोकने की बात हो रही है वो न्याय के लिए हाईकोर्ट, अनुसूचित आयोग, यूजीसी और मानव संसाधन विकास मंत्रालय का दरवाजा खटखटाने जा रहे है.
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