एससी-एसटी एक्ट को लेकर दलित समाज के रोष और एकजुटता के आगे केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने घुटने टेक दिए हैं. सरकार ने एक्ट को पुराने और मूल स्वरूप में लाने का फैसला किया है. इस बारे में बुधवार 01 अगस्त को कैबिनेट की बैठक हुई. इसमें SC/ST एक्ट संशोधन विधेयक के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई है.
सरकार का यह फैसला तब आया है जब 9 अगस्त को कुछ खास संगठनों और राजनैतिक दलों की ओर से भारत बंद प्रस्तावित था. लेकिन इस बंद को लेकर दलित समाज ने वह उत्साह नहीं दिखाया, जैसा 2 अप्रैल के बंद को लेकर दिखाया गया था. सोशल मीडिया पर बंद के विरोध का माहौल बन गया. तो क्या यह माना जा सकता है कि 9 अगस्त के बंद के पहले ही संशोधन विधेयक इसलिए लाया गया है क्योंकि 9 अगस्त का बंद विफल होने जा रहा था?
विरोध की वजह बंद में रामविलास पासवान की पार्टी की भूमिका का होना रहा. असल में 9 अगस्त के बंद को लेकर जिस तरह रामविलास पासवान और केंद्र सरकार में शामिल कुछ और राजनीतिक दल सक्रिय हो गए थे, दलित समुदाय में उससे नाराजगी थी. लोगों का तर्क था कि 2019 के आम चुनाव के दौरान राजनीतिक लाभ लेने के लिए भाजपा दलित पहचान वाले अपने सहयोगी दलों और कुछ संगठनों को आगे कर यह आंदोलन करवा रही है, ताकि उसके बाद संशोधन विधेयक लाकर केंद्र सरकार इसका क्रेडिट ले लेगी और सरकार में शामिल दलित पहचान वाले लोजपा और आरपीआई जैसे सहयोगी दल भी चुनावी लाभ ले सकेंगे. लेकिन सरकार की यह मंशा सफल नहीं हो सकी.
दरअसल दलित समाज की नाराजगी की वजह यह भी थी कि 2 अप्रैल को बंद के दौरान देश के कई हिस्सों खासकर उत्तर प्रदेश में कई युवाओं को जेल में बंद कर दिया गया था. इसको खिलाफ सरकार में शामिल दलित पहचान वाली किसी पार्टी ने कोई मजबूत आवाज नहीं उठाई थी. एक्ट के पारित होने के बाद भी संसद के भीतर दलित और आदिवासी समाज के सांसदों की ओर से कोई बड़ा विरोध देखने को नहीं मिला था.
ऐसे में संभव है कि 9 अगस्त का आंदोलन फेल होता देख केंद्र ने पहले ही डैमेज कंट्रोल करते हुए यह फैसला ले लिया. हालांकि एक्ट में बदलाव तब तक प्रभावी नहीं होगा, जब तक संशोधन विधेयक संसद में पारित नहीं हो जाता. अब देखना यह होगा कि सरकार इसको संसद के पटल पर कब रखती है.
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अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।
दलितदस्तक का नाम से sc st की जो कांस्टिसनल भाषा उसके नाम से होना ये तो ब्राह्मणों की कांग्रेस कि चाल है और बाबू जगजीवन राम को अपने साथ रखकर डॉ भीमराव अंबेडकर जी के विरोध में इस्तेमाल करना था और इनके कहने पर पटना में Dr अम्बेडकर जी केऊपर पत्थर भोलआ पासवान केदुवारा पत्थर फिकवाने का काम किया ।