भगवान बुद्ध ने घर क्यों छोड़ा, जानिये सही जवाब

23 मई को बुद्ध पूर्णिमा यानी तथागत बुद्ध की जयंती है। इस अवसर पर आइए हम जानें और समझें कि सिद्धार्थ गौतम (बुद्ध) ने अपना गृह त्याग क्यों किया था। सिद्धार्थ गौतम कपिलवस्तु और शाक्य गणराज्य को अपनी 29 वर्ष की आयु में त्याग कर प्रव्रजित हो गये थे। 534 ईसा पूर्व में सिद्धार्थ द्वारा इस गृह त्याग की घटना को ‘महाभिनिष्क्रमण’ कहा गया है।

उनके द्वारा गृह- त्याग के क्या कारण थे इस बारे में कई बातें प्रचलित हैं। ब्राह्मणवादी लेखकों और साहित्यकारों ने कहा है कि सिद्धार्थ गौतम आधी रात को अपनी खूबसूरत पत्नी यशोधरा और अपने सुन्दर बालक राहुल को छोड़कर चुपचाप घर से बाहर निकल गए थे। इस सम्बन्ध में बौद्ध धर्म-ग्रंथों में भी कई तरह की भिन्न- भिन्न बातें वर्णित हैं। बौद्ध ग्रंथ दीघनिकाय, निदान कथा, ललित विस्तर और बुद्ध चरित में गृह त्याग के प्रसंग में काफी सरस एवं विस्तार से चर्चा की गई है। बाबा साहेब डॉ आंबेडकर ने अपनी पुस्तक भगवान बुद्ध और उनका धर्म (दि बुद्ध एण्ड हिज धम्म) में भी अभिनिष्क्रमण पर विस्तार से गंभीर चर्चा की है।

राजकुमार सिद्धार्थ गौतम के गृह त्याग सम्बन्ध में बौद्ध ग्रंथों में आए विवरणों से तीन कारणों का पता चलता है-
1. सिद्धार्थ ने अपने महल से उद्यान और खेतों की ओर जाने के समय बारी- बारी से बुढ़े व्यक्ति, रोग ग्रस्त व्यक्ति और शव-यात्रा में मृत व्यक्ति को देखा तो उनके मन में अपने गृहस्थ जीवन एवं मानव जीवन में आने वाले दुखों के प्रति घोर निराशा एवं उपेक्षा की भावना पैदा हो गई। सुत्तनिपात के पब्बज्या सुत्त में कहा गया है कि उसके बाद सिद्धार्थ को गृहस्थाश्रम अड़चनों एवं कूड़े- कचरे की जगह प्रतीत होने लगी और तब उन्होंने परिव्राजक होने का निर्णय लिया था।

2.जातक अट्टकथाओं में वर्णित है कि अपने राजमहल से उद्यान भूमि की ओर जाते समय सिद्धार्थ गौतम ने एक परिव्राजक (श्रमण संत) को देखा। तब उन्होंने अपने सारथी से पूछा कि यह कौन है। तो सारथी ने परिव्राजक के गृह-त्याग करने और उसके गुणों की चर्चा की। ऐसा सुनकर सिद्धार्थ पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और परिव्राजक बनने का भाव उनमें पैदा हुआ।

3. जातक अट्टकथा में ऐसा विवरण है कि सिद्धार्थ गौतम के सगे-संबंधियों अर्थात शाक्यों और कोलियों में रोहिणी नदी के जल बंटवारे को लेकर एक- दूसरे से लड़ने तथा युद्ध के लिए शस्त्र धारण किए जाने एवं खून-खराबे होने की संभावना से वे चिंतित एवं भयभीत हुए। इस कारण से वे शाक्य संघ की बैठक में कोलियों के विरुद्ध युद्ध करने के निर्णय के खिलाफ में खड़े हो गए और अंततः उन्हें राज्य छोड़ने का निर्णय लेना पड़ा और गृह त्याग करना पड़ा।

इन उपर्युक्त कारणों पर गंभीरता से विचार करते हुए बाबा साहेब डॉ आंबेडकर ने कहा है कि परम्परागत उत्तर है कि सिद्धार्थ गौतम ने प्रव्रज्या इसलिए ग्रहण की थी क्योंकि उन्होंने एक वृद्ध पुरुष, एक रोगी व्यक्ति तथा एक मुर्दे की लाश को देखा था। यह उत्तर गले के नीचे उतरने वाला नहीं है। प्रव्रज्या लेकर गृह-त्याग करने के समय उनकी आयु 29 वर्ष की थी। क्या इसके पहले उन्होंने कभी भी किसी बुढ़े, किसी रोगी और किसी मृत व्यक्ति को नहीं देखा था जबकि जीवन की ऐसी घटनाएं प्रति दिन सैकड़ों-हजारों में घटती रहती हैं। इसलिए यह कारण तर्क की कसौटी पर सत्य प्रतीत नहीं होती है।

दूसरा, परम्परागत उत्तर है कि 29 वर्ष की आयु में ही पहली बार सिद्धार्थ गौतम ने रास्ते में आते हुए परिव्राजक यानी गृहत्यागी मुनि को देखकर और उनके गुणों को अपने सारथी से जानकर गृह त्याग करने का निर्णय लिया था। यह कारण भी तर्क और तथ्य के आधार पर सही प्रतीत नहीं होती है, क्योंकि सिद्धार्थ बचपन से ही प्रायः अपने पिता के साथ खेतों और उद्यान भूमि की ओर जाया करते थे। इसके अलावा वे आठ वर्ष की आयु से ही कपिलवस्तु में स्थित परिव्राजक भारद्वाज के आश्रम में जाकर विचारों की एकाग्रता, योग और समाधि की शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। ऐसा संभव ही नहीं है कि उन्हें 29 वर्ष की आयु में पहली बार परिव्राजक का दर्शन हुए थे और उनके गुणों की जानकारी उन्हें मिली थी।

बाबा साहेब डॉ आंबेडकर ने गृह त्याग के तीसरे कारण को सत्य मानते हुए उसकी विस्तार से चर्चा की है। सिद्धार्थ गौतम ने 20 वर्ष की आयु में 543 ईसा पूर्व में शाक्य गणराज्य के संघ में दीक्षा ली थी, क्योंकि वहां बीस वर्ष की आयु में प्रत्येक शाक्य युवा को संघ की सदस्यता की दीक्षा लेना एक अनिवार्य नियम था। आठवें साल तक उन्होंने एक ईमानदार और वफादार सदस्य के रूप में संघ की बैठकों और कार्यवाहियों में हिस्सा लिया। किन्तु सदस्यता के आठवें वर्ष में शाक्य और पड़ोसी कोलिय गणराज्य के बीच में विवाद खड़ा हो गया।

रोहिणी नदी दोनों राज्यों के बीच विभाजक- रेखा थी। दोनों ही राज्य उसके पानी से अपने- अपने खेत की सिंचाई करते थे। हर साल फसलों के समय में जल के बंटवारे और उपयोग को लेकर दोनों के बीच विवाद, झगड़े और लड़ाईयां हो जाते थे। 534ई पूर्व में भी दोनों राज्यों के नौकरों के बीच मार- पीट हो गई और दोनों पक्षों के लोगों को चोटें लगीं। इस पर शाक्यों को गहरा आक्रोश हुआ और वे युद्ध करने के लिए तैयार हो गए। गणराज्य के संघ की बैठक बुलाई गई जिसमें सेनापति ने कोलियों के विरुद्ध युद्ध करने का प्रस्ताव सामने रखते हुए सदस्यों से समर्थन करने की मांग की। संघ के सभी सदस्य चुपचाप बैठे रहे, किन्तु सिद्धार्थ गौतम ने अपनी असहमति जताते हुए कहा कि- “मैं इस प्रस्ताव का विरोध करता हूं। युद्ध से कभी किसी समस्या का समाधान नहीं होता है। युद्ध छेड़ देने से हमारे लक्ष्य की पूर्ति नहीं होगी। इससे एक दूसरे युद्ध का बीजारोपण हो जायेगा। जो किसी की हत्या करता है, उसे कोई दूसरा हत्या करने वाला मिल जाता है। जो किसी को जीत लेता है उसे कोई दूसरा जीतने वाला मिल जाता है, जो किसी को लूटता है उसे कोई दूसरा लूटेरा लूट लेता है।”

सिद्धार्थ ने युद्ध को टालने और समस्याओं के समाधान के लिए अपना एक प्रस्ताव दिया कि- दोनों पक्षों से दो-दो पंच चुने जाएं और वे चारों पंच मिल कर पांचवें पंच का चुनाव कर लें और तब वे झगड़े के निपटारे के लिए जो भी सुझाव दें दोनों राज्य उसे मान लें। किन्तु संघ के बहुसंख्यक सदस्यों ने इस प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया और युद्ध करने के सेनापति के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।

दूसरे दिन सेनापति ने फिर से संघ की बैठक बुलाई जिसमें उसने अनिवार्य सैनिक भर्ती का प्रस्ताव रखा। उसने प्रस्ताव दिया कि 20 वर्ष से 25 वर्ष की आयु के सभी शाक्य कोलियों के विरुद्ध युद्ध में शामिल होने के लिए सेना में अनिवार्य रूप से भर्ती हों। अब युद्ध का विरोध करने वाले सिद्धार्थ सहित सभी अल्पसंख्यक शाक्य सदस्यों के सामने मुश्किल खड़ी हो गई। जब सिद्धार्थ ने देखा कि उसके समर्थक बहुमत के सामने मौन हैं तो उन्होंने खड़े होकर कहा कि “मित्रों,आप जो चाहें कर सकते हैं, क्योंकि आपके साथ बहुमत है। मुझे खेद के साथ कहना पड़ता है कि मैं सेना में भर्ती नहीं होऊंगा और न युद्ध में भाग लूंगा।”

सेनापति ने उन्हें दीक्षा के समय लिए गए शपथ की याद दिलाई, किन्तु सिद्धार्थ पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। सेनापति ने कहा कि संघ के फैसले का विरोध करने के कारण कोशल के राजा की अनुमति के बिना तुम्हें फांसी या देश से निष्कासन की सजा तो हम नहीं दे सकते, किन्तु संंघ तुम्हारे परिवार का सामाजिक बहिष्कार करने एवं परिवार के खेतों को जब्त कर लेने की सजा दे सकता है। इसके लिए हमें कोशल के राजा की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।

ऐसी विषम परिस्थिति में सिद्धार्थ गौतम ने एक दृढ़ फैसला लिया कि वे युद्ध में भाग नहीं लेंगे और न ही परिवार का बहिष्कार होने तथा उनकी खेतों को जब्त कर लेने की सजा देने देंगे। उन्होंने संघ से कहा कि संघ की नजर में वे स्वयं दोषी हैं इसलिए उन्हें ही या तो फांसी की सजा दी जाए या देश से निष्कासित कर दिया जाए। वे या उनके परिवार के लोग कोशल नरेश से इस सम्बन्ध में कोई शिकायत नहीं करेंगे। इस पर सेनापति ने कहा कि चाहे तुम या तुम्हारे परिवार के सदस्य कोशल नरेश से कोई शिकायत न भी करें तब भी फांसी या देश से निकल जाने की सूचना उन्हें मिल ही जायेंगी और तब कोशल के राजा शाक्य गणराज्य के विरुद्ध दण्डात्मक कार्रवाई अवश्य करेंगे। उसके बाद सिद्धार्थ गौतम ने परिव्राजक बन कर देश से बाहर चले जाने की बातें संघ के सामने रखा और कहा कि इसके लिए वे अपने माता-पिता और पत्नी की अनुमति प्राप्त करने की कोशिश करेंगे। उन्होंने संघ को यह भी विश्वास दिलाया कि चाहे परिवार के लोगों की अनुमति उन्हें मिले या न मिले, फिर भी वे परिव्राजक बन कर शाक्य गणराज्य से बाहर चले जाएंगे। संघ ने उनकी बातों को स्वीकार कर लिया।

जब सिद्धार्थ महल में गए तो माता-पिता, पत्नी सहित सभी काफी दुख में डुबे हुए थे। किन्तु अनेक वाद-विवाद के बाद सभी अंततः राजी हो गए कि सिद्धार्थ प्रव्रज्या ग्रहण करेंगे। पत्नी यशोधरा ने सिद्धार्थ से कहा कि “हमें वीरतापूर्वक इस परिस्थिति का मुकाबला करना चाहिए और वह केवल इतना चाहती है कि आप किसी ऐसे नये मार्ग का आविष्कार करें जो शान्ति और मानवता के लिए कल्याणकारी हों।” उसके बाद दूसरे दिन सिद्धार्थ गौतम ने निकट के भारद्वाज आश्रम में जाकर उनसे प्रव्रज्या ग्रहण की जहां हजारों की संख्या में स्त्री- पुरुष पहले से जमा हो गए थे । अनुनय के साथ सभी लोगों को घर वापस भेज कर परिव्राजक सिद्धार्थ गौतम अपने सारथी छन्न के साथ कन्थक घोड़े पर सवार होकर अनोमा नदी के किनारे पहुंचे और फिर उन्हें वापस भेज कर स्वयं राजगृह की ओर प्रस्थान कर गए।

हिंसा, युद्ध और अशांति के विरुद्ध अहिंसा,मानवता एवं शांति की खोज के लिए सिद्धार्थ गौतम ने अपने सारे स्वार्थों को त्यागकर गृह त्याग किए थे, इसलिए इस गृह- त्याग की घटना को महाभिनिष्क्रमण (महान उद्देश्य के लिए किया गया गृह त्याग) कहा गया है।

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