मध्यप्रदेश का सागर जिला कई मायनों में प्रदेश का एक अहम जिला है। इस जिले को एक और व्यक्ति के नाम से भी जाना जाता है। वो हैं, डॉ. हरिसिंह गौर। मध्यप्रदेश के सागर को डॉ. हरिसिंह गौर की नगरी के रूप में जाना जाता है। जिले में कई सालों से डॉ. हरिसिंह गौर साहब को भारत रत्न दिये जाने की मांग की जा रही है। इसके लिए उनके चाहने वालों ने खून से हस्तक्षार अभियान भी चलाया। यह मांग अब इतनी तेज हो चुकी है कि यह अभियान संभागीय स्तर से निकलकर अब यह राज्य का एक अहम मुद्दा बन गया है।
कौन है डॉ. हरिसिंह गौर
डॉ. हरिसिंह गौर सागर विश्वविद्यालय के संस्थापक, शिक्षाशास्त्री, ख्यति प्राप्त विधिवेत्ता, न्यायविद्, समाज सुधारक, साहित्यकार (कवि, उपन्यासकार) तथा महान दानी एवं देशभक्त थे। वह बीसवीं शताब्दी के सर्वश्रेष्ठ शिक्षा मनीषियों में से थे। गौर दिल्ली विवि के उपकुलपति तथा नागपुर विवि के उपकुलपति व कुलपति रहे। वे भारतीय संविधान सभा के उपसभापति, साइमन कमीशन के सदस्य तथा रायल सोसायटी फॉर लिटरेचर के फेलो भी रहे थे। गौर साहब ने कानून, शिक्षा, साहित्य, समाज सुधार, संस्कृति, राष्ट्रीय आंदोलन, संविधान निर्माण आदि में भी अपना अहम अवदान दिया।
डॉ॰ गौर का जन्म 26 नवम्बर 1870 को सागर जिले के शनिचरीटोरी के पास एक निर्धन परिवार में हुआ था। उन्होंने सागर, जबलपुर, नागपुर से पढ़ाई करने के बाद, इंग्लैंड से 1892 में दर्शनशास्त्र व अर्थशास्त्र में ऑनर्स की उपाधि प्राप्त की। फिर 1902 में एल. एल. एम किया। आगे उन्होंने अंतर-विश्वविद्यालयीन शिक्षा समिति में कैंब्रिज विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया। फिर, चार वर्ष तक इंग्लैंड की प्रिवी काउंसिल में वकालत की।
गौर साहब ने 1929 में “स्पिरिट ऑफ बुद्धिज़्म” किताब लिखी। इस किताब की प्रस्तावना महान कवि रवींद्र नाथ टैगोर द्वारा लिखी गई। इस पुस्तक को पढ़कर बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर काफी प्रभावित हुए। जापान में इस बौद्ध दर्शन से गौर साहब को धर्मगुरु का सम्मान दिया गया।
डॉ. हरिसिंह गौर का जीवन में सबसे बड़ा योगदान यह रहा कि, उन्होंने अपने जीवन की सारी कमाई और जमा पूँजी शिक्षा के लिए दान कर दी। गौर साहब ने जीवन की संपूर्ण जमा पूंजी 20 लाख रुपये से प्रदेश के बहुत पिछड़े इलाके बुंदेलखंड (सागर) में 18 जुलाई 1946 को सागर विश्वविद्यालय की स्थापना की। महान दानी के रूप प्रसिद्ध हुए हरीसिंह गौर का 25 दिसम्बर 1949 को निधन हो गया। इसके बाद सागर विश्वविद्यालय का नाम डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय कर दिया गया। बाद में डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय की मान्यता प्राप्त हुयी।
हरिसिंह गौर को भारत रत्न क्यों देना चाहिए, इसको लेकर एक परिचर्चा के दौरान हरिसिंह गौर भारत रत्न समिति के संयोजक इंजी. संतोष प्रजापति कहते हैं कि, “डॉ गौर ने सागर जैसे पिछड़े इलाके में विवि की स्थापना की थी। इस विवि से आचार्य रजनीश (ओशो) जैसे महान दार्शनिक ने शिक्षा प्राप्त की। इस विवि से निकले छात्र प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति कर रहे हैं। हम किसी राजनीतिक पार्टी को दोष नहीं दे रहे कि उन्होंने डॉ. गौर को भारत रत्न नहीं दिया। कारण यह है कि हमने कभी अपनी आवाज को इतना बुलंद ही नहीं किया कि हमारी आवाज केंद्र सरकार तक पहुंच सके। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 अगस्त को सागर आ रहे हैं, हमारे मन में विचार आया कि क्यों न हम उनके सामने अपनी बात रखें की वे डॉ. गौर को भारत रत्न प्रदान करें ताकि हमारे सागर और विवि का देश—दुनिया में गौरव बढ़े।
हरिसिंह गौर भारत रत्न समिति के सदस्य विनोद प्रजापति का कहना है कि डॉ. हरिसिंह गौर को ‘भारत रत्न’ दिलाए जाने की मांग को लेकर सागर में इंजी. संतोष प्रजापति के संयोजन में डॉ. हरिसिंह गौर भारत रत्न समिति चरणबद्ध आंदोलन कर रही है। हाल ही में समिति ने पीएम के नाम कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर मांग को आगे बढ़ाया।
हरिसिंह गौर को भारत रत्न देने की मांग के प्रति जब हमने विश्वविद्यालय में एक संवाद किया। तब, राष्ट्रपति के पूर्व ओएसडी और विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर रहे और वर्तमान में केन्द्रीय विवि पंजाब में पदस्त डॉ. कन्हैया त्रिपाठी ने बताया कि, “हरिसिंह गौर का संविधान और भारत के निर्माण में अभूतपूर्व योगदान रहा है। गौर साहब को भारत रत्न देने की मांग केवल स्थानीय स्तर से नहीं उठनी चाहिए, बल्कि देश के कोने-कोने से यह मांग उठनी चाहिए। मुझे नहीं समझ आता कि भारत सरकार ने अब तक गौर साहब को भारत रत्न क्यों नहीं दिया। भारत सरकार को यह फैसला बहुत पहले लेना चाहिए था। हालांकि कन्हैया त्रिपाठी यह भी जोड़ते हैं कि भारत रत्न मांगने से नहीं मिलता। यह सरकारों की मंशा के ऊपर है। देश के संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर को भी भारत रत्न मरणोपरांत दशकों बाद दिया गया।
हरिसिंह गौर को भारत रत्न क्यों मिलना चाहिए, इसके जवाब में बैचलर ऑफ जर्नलिज्म के छात्र बलदेव तर्क देते हैं कि, “हरिसिंह गौर ने शिक्षा, महिलाओं और इस क्षेत्र के विकास के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया। इसका अंदाजा उनके द्वारा संपूर्ण संपत्ति दान किये जाने से लगाया जा सकता है। उन्होंने कई लोकहितकारी कानून भी पास कराये थे।”
विधि विभाग में एल. एल. बी के छात्र दीनदयाल बताते हैं कि, “डॉ. गौर को भारत रत्न देने की मांग आज से नहीं, बल्कि कई सालों से उठती आयी है। गौर साहब का देशहित में समाजिक योगदान बहुत बड़ा है। हरिसिंह गौर वर्तमान यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट कानून के प्रति भी सकारात्मक नजरिया रखते थे। डॉ. गौर चहुमुखी दृष्टिकोण वाले व्यक्तित्व थे।”
डॉ. गौर को भारत रत्न देने की मांग को लेकर लगातार विचार-विमर्श, चर्चाएं और सभाएं लगातार आयोजित की जाती है। यह मांग और चर्चाएं देश में तब तक होती रहेगी, जब तक कि, गौर साहब को भारत रत्न मिल नहीं जाता है। खास बात यह भी है कि डॉ. हरिसिंह गौर को भारत रत्न देने की मांग को लेकर तमाम शिक्षाविदों से लेकर स्थानीय राजनेताओं का भी समर्थन मिल रहा है।
सतीश भारतीय एक स्वतंत्र पत्रकार और ‘विकास संवाद परिषद’ में फैलो है। वर्तमान में सतीश भारत में जमीन विवाद जैसे विषय पर ग्राउंड रिपोर्टिंग कर रहे हैं।