टाटा समाजिक विज्ञान संस्थान, मुंबई में छात्रसंघ चुनाव में राजस्थान के बाड़मेर जिले के टापरा गांव के दलित युवा भट्टा राम ने जीत हासिल कर इतिहास रच दिया है. सुदूर रेगिस्तान के दलित-किसान-मजदूर परिवार में पैदा हुये भट्टाराम एक ऐसे इलाके से आते है, जहां पर जातिगत भेदभाव व छुआछूत भयंकर रूप में विद्यमान है. यह इलाका आज भी सामंतवाद की चपेट में है. आज भी यहां दलितों को छूने तक से परहेज किया जाता है. बच्चों के साथ स्कूलों में भेदभाव आम बात है.
ऐसी विपरीत सामाजिक आर्थिक व भौगोलिक पृष्ठभूमि से आने वाले भट्टाराम ने इस विश्व विख्यात संस्थान के छात्रसंघ के चुनाव में उतरने की ठानी, यह उनकी बड़ी हिम्मत और आत्मविश्वास था. बाड़मेर जिले के पचपदरा ब्लॉक के टापरा गांव के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय से 2014 में हिंदी माध्यम से 12वीं तक शिक्षा ग्रहण की. फिर 2017 में एमबीआर राजकीय कॉलेज बालोतरा से बीए कम्पलीट किया. उच्च शिक्षा के लिए पैसा जमा करने के लिए अप्रैल 2015 से अगस्त 2017 तक आईडिया डिस्ट्रीब्यूटर के यहां सेल्स एक्सिक्यूटिव की नौकरी की और भवन निर्माण में अकुशल श्रमिक के तौर पर मजदूरी भी की.
इसके बाद 8 महीने तक नालंदा एकेडमी वर्धा में रहकर उच्च शिक्षा के लिए तैयारी की और 2018 में जल नीति और शासन के परास्नातक पाठ्यक्रम हेतू टाटा इंस्टीट्यूट मुम्बई पहुंचे. भट्टाराम में अपने इलाके के कालूडी गांव में 70 दलित परिवारों को गांव छोड़ने के लिए मजबूर करने वाले आतंकी जातिवादी तत्वों के खिलाफ जबरदस्त संघर्ष किया और कालूडी के मुद्दे को यूएनओ तक पहुंचाने में सफलता प्राप्त की. जाहिर है कि वर्तमान में वह भट्टाराम टाटा इंस्टीट्यूट के छात्र हैं. टाटा इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष पद का चुनाव जीतना टापरा के इस युवा की बहुत ऊंची उड़ान है. वंचित तबके के छात्रों के लिए भट्टाराम की सफलता एक एक मिशाल है.