सहारनपुर हिंसा के बाद जब भीम आर्मी को देश भर में जाना-पहचाना जाने लगा तो इस संगठन और इसके संस्थापक चंद्रशेखर आजाद को अचानक दलित युवाओं की आवाज कहा जाने लगा. चंद्रशेखऱ की रिहाई को लेकर कई आंदोलन हुए और कई सामाजिक कार्यकर्ता इस आंदोलन से जुड़ने लगे. बावजूद इसके बहुजन बुद्धिजीवियों का एक तबका ऐसा भी था जो इस पूरे घटनाक्रम को दूर से देख रहा था. वह यह आशंका जाहिर कर रहा था कि आखिर विचारधारा के स्तर पर आंदोलन के नए खिलाड़ी अनुभवहीन नेतृत्व के बिना कितने दिन तक चल सकेंगे. आखिरकार वही हुआ. खबर आई है कि भीम आर्मी आपसी झगड़ों में उलझकर दो धड़ों में बंट गई है. चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में अविश्वास जताते हुए संगठन के एक धड़े ने अलग होकर भीम आर्मी-2 बना लिया है.
नई बनी भीम आर्मी-2’ के संस्थापक बने हैं शिवजी गौतम, जिन्होंने लोकेश कटारिया को इसका अध्यक्ष बनाया है. इस गुट ने चंद्रशेखर पर बीजेपी से साठ-गांठ करने का आरोप लगाया है. नए गुट ने यह भी आरोप लगाया है कि चंद्रशेखर आजाद साठ-गांठ के कारण भारत बंद के दौरान जेल में बंद निर्दोष दलित नेताओं और कार्यकर्ताओं की रिहाई के प्रयास नहीं कर रहे हैं.’ नए गुट ने जेल में बंद अपने निर्दोष साथियों की रिहाई के लिए अभी हाल ही में जिलाधिकारी को ज्ञापन दिया गया है और कहा है कि जल्द ही बड़ा आंदोलन किया जाएगा.’
नए गुट के आरोप पर चंद्रशेखर के करीबी योगेश गौतम ने हालांकि अपना पक्ष रखते हुए साफ किया है कि ‘चंद्रशेखर की भीम आर्मी मनुवादी सोच वालों से कभी समझौता नहीं करेगी, वह अपना संघर्ष पहले की तरह जारी रखेगी.’ उन्होंने शिवजी गौतम और लोकेश कटारिया पर पलटवार करते हुए कहा, ‘दो अप्रैल को भारत बंद के दौरान हुई कथित हिंसा में जेल भेजे गए निर्दोष साथियों की रिहाई के लिए भीम आर्मी काफी पहले छह दिसंबर से देशव्यापी आंदोलन करने का ऐलान कर चुकी है. उन्होंने भीम आर्मी-2 पर सत्तारूढ़ दल के बहकावे में आकर समानांतर संगठन खड़ा करने का आरोप लगाया.
सच चाहे जो हो, इस टकराव और टूट ने एक तेजी से उभरते संगठन की साख पर सवालिया निशान तो लगा ही दिया है.
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