वाराणसी। अनुसूचित जाति, जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग संघर्ष समिति ने काशी हिन्दू विश्वद्यालय में प्रेस कांफ्रेस की. इस प्रेस कांफ्रेस में विश्वविद्यालय में शिक्षकों की नियुक्ति-प्रक्रिया में हुई गड़बड़ी का खुलासा किया. इससे पहले छात्रो ने यहां विरोध प्रदर्शन भी किया. छात्र पिछले एक महीने से विश्वविद्यालय प्रशासन के विरोध कर रहे थे. विश्वविद्यालय में शिक्षकों की नियुक्ति-प्रक्रिया में गड़बड़ी के खिलाफ किया गय.
अनुसूचित जाति, जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग संघर्ष समिति ने कहा कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में आरक्षण नियमों की घोर अवहेलना, रोस्टर में गड़बड़ी, संभावित रोस्टर के द्वारा पदों की हेराफेरी कर अनुसूचित जाति, जनजाति एवं पिछड़े वर्गों के प्रतिनिधित्व को समाप्त करके वंचित वर्गों के संवैधानिक आरक्षण को निष्प्रभावी किया जा रहा है. अभ्यर्थियों के दस्तवेजों की जांच व साक्षात्कार के लिए किए जाने वाले चयन(shortlisting) में इस बार भयंकर गड़बड़ियां की जा रही हैं.
प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर जैसे पदों में नियुक्तियां बिना किसी नियम और कायदे के कानून की धज्जियाँ उड़ा कर की जा रही हैं. ये सभी नियुक्तियां पूरी तरह असंवैधानिक और गैर-क़ानूनी हैं जैसे पिछली बार लोग निकाले गए थे, ये गैर कानूनी नियुक्तियां भी उसी श्रेणी मे आती है।
एक तरफ जहां अनारक्षित वर्ग के कुल सीटों की संख्या 103 है, वहीं एससी के लिए सिर्फ 03 तो ओबीसी और एसटी के लिए शून्य हैं. छात्रों ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय हुई अनियमतताओं को लेकर प्रशासन से लिखित में सवाल भी पूछें हैं. छात्रों का कहना है कि बिना यूजीसी के अनुमति के रोस्टर प्रणाली में परिवर्तन लाया गया है जो की साफ तौर पर अनुचित है. यही नहीं बल्कि कुल आरक्षित पदों की संख्या 241 से घटाकर 41 कर दी गई है.
उनका कहना है कि डीओपीटी 2006 में नहीं लागू होने पर इलाहाबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय मे नियुक्तियों पर रोक है, लेकिन काशी हिन्दू विश्वविद्यालाय मे नहीं है. नई 13 पॉइंट रोस्टर प्रक्रिया को डीओपीटी 2006 के अनुसार 02/07/1997 से लागू नहीं किया जा रहा है. विश्वविद्यालय प्रशासन बैक लॉग वैकेंसी भी नहीं निकाल रहा है.
संघर्ष समिति ने कहा कि काशी हिन्दू विवि में विभिन्न पदों की नियुक्तियां निर्धारित योग्यता को ताक पर रखकर की जा रही हैं. चिकित्सा विज्ञान संस्थान के हृदय रोग विभाग में ऐसे दो लोगों को पहले असिस्टेंट प्रोफेसर और फिर असोसिएट प्रोफेसर बना दिया गया जो दोनों पदों के लिए मेडिकल कौंसिल आफ इण्डिया और यूजीसी द्वारा निर्धारित योग्यता के मापदंडों को पूरा नहीं करते हैं.
कार्डियोलाजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर का एक और एसोसिएट प्रोफेसर के तीन पद एक साथ विज्ञापित किये गये थे. जिसमें एसोसिएट प्रोफेसर के एक पद को स्क्रूटनी के समय और एक पद को इंटरव्यू के बाद मनमाने तरीके से डाउन ग्रेड करके असिस्टेंट प्रोफेसर में तब्दील कर दिया गया तथा डा. धर्मेन्द्र जैन और डा. विकास अग्रवाल की गैर-क़ानूनी ढंग से नियुक्तियां कर दी गयीं. ये दोनों ऐसे आवेदक हैं जो अपने पद के लिए आवश्यक अर्हताएं भी नहीं रखते थे. इनमें से एक डा. धर्मेन्द्र जैन के पास DM cardiology की फर्जी डिग्री है जो मेडिकल काउन्सिल आफ इण्डिया से मान्यता प्राप्त नहीं है और दूसरे डा. विकास अग्रवाल के पास अर्हता की डिग्री के स्थान पर केवल DNB (Diplomat in National Board) का डिप्लोमा है.
बाद में अब इन्हीं अयोग्य लोगों को कार्डियोलाजी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर बनाया गया है. इनमें भी डा. विकास अग्रवाल के एसोसिएट बनाये जाने की भी अद्भुत कहानी है. इन्हें बीएचयू के नान टीचिंग कर्मचारियों की भांति पीपीसी से ही एसोसिएट प्रोफेसर बना दिया गया. इसके अतिरिक्त इनके पास एसोसिएट प्रोफेसर के लिए किसी मान्यता प्राप्त मेडिकल कालेज में तीन वर्षों का जरूरी शिक्षण अनुभव का भी अभाव है. इस तरह बीएचयू अपने अजब-गजब के कारनामों के लिए कुख्यात हो चुका है. जिनके पास न तो आवश्यक डिग्रियां हैं और न ही चिकित्सा शिक्षण का अनुभव है. ऐसे लोग चिकित्सा शिक्षा, अनुसंधान और मरीजों का क्या हाल करेंगे इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है.

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