क्या कभी ऐसा हुआ है कि किसी हिंदू को किसी मंदिर में जाने के लिए सरकार से लिखित अनुमति लेनी पड़ी हो? या फिर कभी आपने सुना है कि किसी इस्लाम धर्मावलंबी को किसी मस्जिद में नमाज अदा करने के लिए सरकार से लिखित लेने के लिए कहा गया हो?
यकीनन आपने न तो ऐसा सुना होगा और ना ही कहीं पढ़ा होगा। क्योंकि भारतीय संविधान में हर किसी को अपने-अपने धर्म के हिसाब से संबंधित पूजा स्थलों व तीर्थ स्थानों पर पूजा करने का अधिकार है। लेकिन यह पहली बार हुआ कि बौद्ध धर्मावलंबियों सारनाथ में पूजा करने से न केवल रोका गया, बल्कि 15 दिन पहले लिखित रूप से अनुमति लेने की बात कही गयी।
सनद रहे कि सारनाथ, बनारस से करीब 10 किलोमीटर पूर्वोत्तर में स्थित प्रमुख बौद्ध तीर्थस्थल है। बोधगया में ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश यहीं दिया था, जिसे “धर्म चक्र प्रवर्तन” भी कहा जाता है। इसे बौद्ध मत के प्रचार-प्रसार का आरंभ कहा जाता है। इसी स्थल पर योगी सरकार के राज में बौद्ध धर्मावलंबियों को पूजा करने से रोका गया।
आपको जानकर हैरानी नहीं होनी चाहिए कि ऐसा असंवैधानिक आदेश योगी सरकार के राज में सरकारी अधिकारियों ने दिया। लेकिन यह लड़ाई बौद्ध धर्मावलंबियों ने केवल दस दिनों के भीतर ही जीत ली और परिणाम यह कि बहुमत के नशे में चूर सरकार को झूकना पड़ा।
मामला 23 मार्च, 2022 की है। धम्म शिक्षण संस्थान के संस्थापक भिक्षु चंदिमा हैदराबाद के संदीप कामले, वर्षा कामले, इंदू भिक्षु धर्म रश्मि, आनंद मौर्य और भैयालाल पाल के साथ सारनाथ के धमेख स्तूप पहुंचे। लेकिन उन्हें स्तूप के दरवाजे पर ही रोक दिया गया। जब उन्होंने सवाल उठाया तो मौके पर मौजूद अधिकारियों ने कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारी के अनुसार स्तूप स्थल पर पूजा-अर्चना की अनुमति नहीं है। इस संबंध में भिक्षु चंदिमा ने प्रतिवाद किया और सवाल पूछा कि यह कहां लिखा है कि बौद्ध धर्मावलंबी धमेख स्तूप स्थल पर पूजा नहीं कर सकते।
उनके सवाल का जवाब देने के बजाय प्रशासनिक अधिकारियों ने उन्हें कहा कि यदि वे पूजा करना चाहते हैं तो उन्हें 15 दिन पहले आवेदन करना होगा और अनुमति भी तभी मिलेगी जब उनका आवेदन स्वीकार किया जाएगा।
इस घटना के विरोध में भिक्षु चंदिमा और उनके साथी वहीं स्तूप के मुख्य द्वार के बाहर धरने पर बैठ गए। बाद में उन्होंने इसके खिलाफ और धमेख स्तूप स्थल पर पूजा अर्चना का अधिकार हासिल करने के लिए अभियान चलाया। इस क्रम में उन्होंने बिहार के बोधगया के भिक्षु संघ से मुलाकात की तथा उन्हें यूपी सरकार के द्वारा किये गये दुर्व्यवहार व अवैधानिक आदेश के बारे में जानकारी दी। इसके अलावा भिक्षु चंदिमा ने सोशल मीडिया के जरिए लोगों को संदेश दिया कि इस तरह के असंवैधानिक आदेशों की वापसी के लिए सहयोग करें।
फिर क्या था, उनका अभियान रंग लाने लगा और बीते 3 अप्रैल, 2022 को भिक्षु चंदिमा के नेतृत्व में हजारों की संख्या में बौद्ध धर्मावलंबियों ने धमेख स्तूप स्थल पर जाकर पूजा अर्चना की। इसके पहले एक रैली भी निकाली गयी।

दलित दस्तक (Dalit Dastak) साल 2012 से लगातार दलित-आदिवासी (Marginalized) समाज की आवाज उठा रहा है। मासिक पत्रिका के तौर पर शुरू हुआ दलित दस्तक आज वेबसाइट, यू-ट्यूब और प्रकाशन संस्थान (दास पब्लिकेशन) के तौर पर काम कर रहा है। इसके संपादक अशोक कुमार (अशोक दास) 2006 से पत्रकारिता में हैं और तमाम मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं। Bahujanbooks.com नाम से हमारी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुक किया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को सोशल मीडिया पर लाइक और फॉलो करिए। हम तक खबर पहुंचाने के लिए हमें dalitdastak@gmail.com पर ई-मेल करें या 9013942612 पर व्हाट्सएप करें।