बिहार से आ रही तस्वीरें यह बयान कर रही है कि इस बार बिहार में तेजस्वी तय है। चुनाव के नतीजे हालांकि 10 नवंबर को आने हैं, लेकिन सत्ता पक्ष की बेचैनी और महागठबंधन के पक्ष में बिहारवासियों की बढ़ती गोलबंदी यह बता रही है कि बिहार में इस बार बदलाव की संभावना काफी प्रबल है।
हालांकि एक विशेष विचारधारा और सत्ता के साथ खड़ा पूंजीवादी मीडिया का एक खेमा इस सच्चाई से मुंह चुरा रहा है लेकिन फायदे और नुकसान के मोह से मुक्त सोशल मीडिया के जरिए आ रही तस्वीरें साफ बता रही है कि नीतीश और भाजपा की सरकार खतरे में है। यहां तक की बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बेचैनी भरे बयानों से भी लग रहा है कि बिहार में एनडीए मुसीबत में है।
बिहार में दो चरणों का चुनाव हो चुका है और आखिरी चरण का चुनाव 7 नवंबर को होना है। इस बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चार बार बिहार आएं और इस दौरान उन्होंने 12 रैलियों को संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने 23 अक्टूबर को बिहार में अपनी पहली रैली, जबकि 3 नवंबर को अपनी आखिरी रैली को संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने बिहार में 23 अक्टूबर, 28 अक्टूबर, 01 नवंबर और 03 नवंबर को चुनावी जनसभाओं को संबोधित किया। इसे महज इत्तेफाक नहीं कहा जा सकता कि 28 अक्टूबर और 3 नवंबर को बिहार के दो चरणों के मतदान के दौरान भी मोदी बिहार में चुनावी रैलियों को संबोधित कर रहे थे। साफ है कि चुनाव के दिन प्रधानमंत्री मोदी का अन्य प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में चुनाव प्रचार करना एनडीए और भाजपा का एजेंडा था।
अपने बिहार चुनाव अभियान के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ट्विटर पर खासे सक्रिय रहें। 23 अक्टूबर से लेकर 4 नवंबर के बीच प्रधानमंत्री ने ताबड़तोड़ 63 ट्विट बिहार चुनाव को लेकर किया। इनके ट्विट में बिहार चुनाव में पिछड़ने की बेचैनी साफ दिखी। यही वजह रही कि प्रधानमंत्री मोदी चुनाव प्रचार की शुरुआत में विकास और सुशासन की बात करते रहें, लेकिन महागठबंधन की बढ़त और तेजस्वी यादव के पक्ष में बिहारवासियों का हुजूम देखकर धर्म और राष्ट्रवाद के अपने पसंदीदा पुराने एजेंडे पर लौट आएं।
23 अक्टूबर को अपनी रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार, बिहारवासियों, विकास और लोकपर्व छठ की बात की। प्रधानमंत्री के 23 अक्टूबर के एक ट्विट को देखिए। इसमें पीएम मोदी कह रहे हैं-
“2014 में केंद्र में सरकार बनने के बाद, जितने समय बिहार को डबल इंजन की ताकत मिली, राज्य के विकास के लिए और ज्यादा तेजी से काम हुआ है। कोरोना के समय में भी गरीबों को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए एनडीए सरकार ने काम किया है।”
हालांकि 2014 के बाद केंद्र के सहयोग से बिहार में कौन-कौन सी क्रांति हुई, प्रधानमंत्री ने इस पर कुछ नहीं कहा।
तो वहीं बिहार में चुनाव प्रचार खत्म करने के बाद पीएम मोदी ने जो ट्विट किया, उसमें वह विकास और सुशासन से हटते हुए जाति और धर्म के नाम पर वोट मांगते दिखे। 3 नवंबर को बिहार में चुनाव प्रचार के आखिरी दिन पीएम मोदी ने जो ट्विट किया, उसमें उन्होंने कहा,
“बिहार में जंगलराज लाने वालों के साथियों को भारत माता से दिक्कत है। कभी एक टोली कहती है कि भारत माता की जय के नारे मत लगाओ, कभी दूसरी टोली को इससे सिरदर्द होने लगता है।
ऐसे लोग अब एकजुट होकर वोट मांग रहे हैं। अगर इन्हें भारत माता से दिक्कत है, तो बिहार को भी इनसे दिक्कत है।”
तो वहीं इसके अगले ही दिन उन्होंने एक और ट्विट कर बिहार के मतदाताओं से अपनी जाति की दुहाई दे डाली। बकौल पीएम मोदी,
“बिहार का गरीब आज आश्वस्त है कि उनके ही जैसा गरीबी में पैदा हुआ पिछड़े समाज का उनका सेवक आज दिल्ली में काम कर रहा है और यह सुनिश्चित कर रहा है कि एक भी गरीब भूखा न सोए। कोरोना के इस कठिन समय में उन्हें मुफ्त राशन और सहायता सुनिश्चित की जा रही है।”
तो वहीं अंतिम चरण के चुनाव प्रचार के आखिरी दिन 5 नवंबर की शाम को प्रधानमंत्री मोदी ने बिहारवासियों के नाम चार पन्नों की एक चिट्ठी ट्विट की है, जिसमें उन्होंने बिहारवासियों से तमाम वादे किये हैं। यह साफ बता रहा है कि एनडीए डरा हुआ है। यह डर इसलिए भी है क्योंकि भले नीतीश कुमार के स्वार्थ के चलते बिहार में एनडीए की सरकार बन गई हो, पिछले विधानसभा चुनाव में बिहार की जनता ने महागठबंधन को ही चुना था। ऐसे में भाजपा बिहार को न जीत पाने के अपने दर्द को भुलाना चाहती है। नीतीश कुमार ने तो चुनाव प्रचार के आखिरी दिन इमोशनल कार्ड खेलते हुए कह दिया कि यह उनका आखिरी चुनाव होगा।
प्रधानमंत्री के ये दावे कितने सही है, यह तो बिहार की जनता तय करेगी, लेकिन प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बदलते बयानों से साफ है कि एनडीए के पास बिहारवासियों को बिहार के विकास के बारे में किये कामों को बताने के लिए कुछ खास नहीं है।
वहीं दूसरी ओर देखें तो जिस राष्ट्रीय जनता दल पर मुस्लिम और यादवों का दल होने का ठप्पा लगता रहा है, इस बार तेजस्वी यादव के
नेतृत्व में वह जाति धर्म से ऊपर उठकर मुद्दों पर चुनाव लड़ रही है। बिहार के युवाओं को नौकरी देने और बेरोजगारी दूर करने के जिन मुद्दों को सामने रखकर महागठबंधन चुनाव मैदान में है, उसके सामने एनडीए मुंह के बल गिरता नजर आ रहा है। चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी की घबराहट और नीतीश कुमार की छटपटाहट इस पर मुहर लगाता दिख रहा है।
अशोक दास दलित दस्तक के संपादक हैं। दलित दस्तक एक मासिक पत्रिका, यू-ट्यूब चैनल और वेबसाइट है। हमारे काम को सपोर्ट करिए। Google Pe और Phone Pe का नंबर 9711666056 है।
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अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।