हाल ही में जोशीमठ में जमीन धंसने के मामले की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की तुरंत सुनवाई करने से इंकार कर दिया। अदालत ने कहा कि हर जरूरी चीज की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में ही हो, ऐसा जरूरी नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि लोकतांत्रिक सरकार पहले से ही इस मसले के समाधान में जुटी हुई है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सभी मुद्दों के लिए सुप्रीम कोर्ट ही एकमात्र जगह नहीं है। सर्वोच्च अदालत ने बाद में 16 जनवरी को इस मामले में विचार करने की बात कही।
सुप्रीम कोर्ट का एक दूसरा रुप भी देखिए। बिहार की सरकार ने जाति जनगणना जिसे वह जाति आधारित सर्वे कह रही है, उस का काम शुरू कर दिया है। पहले से ही तय तारीख के मुताबिक 7 जनवरी से यह काम शुरू हो गया है। लेकिन जाति जनगणना का काम शुरू होते ही 10 जनवरी को मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया। इसके खिलाफ याचिका में इसको लेकर कई सवाल उठाए गए और सुप्रीम कोर्ट से मामले की जल्द सुनवाई की अपील की गई। मजेदार बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट भी तुरंत मान गया और 13 जनवरी को इस मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई तय हुई है।
अब यहां पहला सवाल यह है कि जोशीमठ के मामले की जल्दी सुनवाई वाली याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तमाम दलील दी। कहा गया कि लोकतांत्रिक सरकार पहले से ही इसके समाधान में जुटी है। लेकिन जाति जनगणना का सवाल आते ही सुप्रीम कोर्ट को ऐसा क्या खतरा दिखाई देने लगा कि याचिका आने के महज दो दिन बाद ही उच्चतम न्यायलय सुनवाई को राजी हो गया।
जबकि जातिगत जनगणना कराने के लिए 6 जून 2022 को ही राज्य सरकार द्वारा नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया था। अब इसी नोटिफिकेशन को ही रद्द करने की मांग सुप्रीम कोर्ट में की जा रही है।
यहां दूसरा सवाल यह है कि जिस जोशीमठ में सैकड़ों घर टूटने को हैं… जहां के हजारों लोग मुश्किल में हैं। सरकार ने लोगों के लिए पुर्नवास नीति तक नहीं बनाई है, और न ही अभी तक उन्हें जायज मुआवजे को लेकर आश्वस्त किया है, सुप्रीम कोर्ट के लिए क्या वह मामला जरूरी नहीं था।
खैर क्या जरूरी है, और किस मामले पर कब सुनवाई करनी है, इसका अधिकार तो सुप्रीम कोर्ट में बैठे मी-लार्ड को है, लेकिन जोशीमठ में परेशान हजारों लोग और बिहार में जाति जनगणना को रोकने में से कौन सा मुद्दा अहम है, इस बारे में देश की आम जनता तो फैसला कर ही सकती है।
या कहीं ऐसा तो नहीं कि जाति जनगणना होने की स्थिति में बिहार से उठी चिंगारी देश भर में एक बड़ा मुद्दा बन जाएगी। और तब ऐसे में कुछ खास लोगों की सियासत पर खतरा मंडराने लगेगा, जो सालों से देश के तमाम संसाधनों पर कब्जा जमाए बैठे हैं। और जिसे रोकना या रोकने की कोशिश करना ज्यादा अहम हो गया है।
याद रहे देश के शीर्ष अदालतों को लेकर हाल ही में एक रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें कहा गया है कि देश के उच्च न्यायालयों में 79 प्रतिशत जज ऊंची जाति के हैं। और तमाम कानून विशेषज्ञ न्यायपालिका के पक्षपात पूर्ण फैसलों पर सवाल तो उठाने ही लगे हैं। बाकी आप दर्शक यानी देश की जनता खुद ही समझदार है। समझ जाइये।

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।