Thursday, March 13, 2025
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मैला ढोने से मुक्ति दिलायेंगे बायो टॉयलेट

रानीखेत। भारत में मैला ढोने की प्रथा अभी भी कई राज्यों में जारी है जिसकी खबरें आए दिन सुनने को मिलती रहती हैं पर अब विदेशी तकनीक का सहारा लेकर बायो टॉयलट भारत में शुरू होने जा रहे हैं जिससे शहरों के गहरे, प्रदूषित सीवरों से भी मुक्ति मिल सकती है. जिसके लिए जापानी तकनीक से निर्मित बायो टॉयलेट मददगार साबित होंगे. जापान में फूजी की पहाड़ी व वियतनाम में सफल प्रयोग के बाद जापानी बायो टॉयलेट के फार्मूले की शुरूआत उत्तराखंड के कुमाऊं की पर्यटक नगरी रानीखेत से की जाएगी. खास बात यह भी कि इस तकनीक से मानव अपशिष्ट से जैविक खाद भी तैयार की जाएगी.

पर्यावरण व पानी बचाने की मुहिम में जुटी जापानी कंपनी सिवादेंको ने अपने देश में नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने की दिशा में इसी तकनीक से प्रभावी पहल की है. इस टॉयलेट का प्रयोग करने वाले शहर सीवरेज मुक्त हो जाएंगे. घंटा भर में मानव अपशिष्ट को जैविक खाद में बदलने वाले इस टॉयलेट के 70 प्रतिशत पार्ट्स भारत में बनाने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को दिया गया है ताकि लागत मूल्य कम होने से सामान्य व्यक्ति भी खरीद सकेगा. फिलहाल, बायो टॉयलेट की कीमत 30 हजार से 14 लाख रुपये तक है.

जानकारी देते हुए, रानीखेत के नैनी निवासी जापानी कंपनी के प्रतिनिधि कमल सिंह अधिकारी ने बताया, मॉडल के रूप में तीन जैविक टॉयलेट यहां लगाए जायेंगे जिसके लिए जमीन भी तलाश ली गई है. बता दें की इस टॉयलेट के कई फायदे होंगे जिसमें मैला ढोने से मुक्ति से साथ सीवरेज की जरूरत भी नहीं होगी. पिट गड्ढे नहीं बनेंगे तो पानी व भूमि भी प्रदूषित नहीं होगी जिसके साथ पानी की बचत भी होगी. गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने सरीखी परियोजनाओं में भारी भरकम बजट से भी मुक्ति मिलेगी.

ऐसे बनेगी जैविक खाद- 

इस तरह के बायो टॉयलेट में लकड़ी का बुरादा व धान की भूसी पड़ी होती है जिसको हीटर 50 डिग्री तक तापमान में बुरादे को जलाएगा जो मानव मल को भी जलाकर राख करेगा और खास उपकरण रोटरी की मदद से उसे जैविक खाद में बदलेगा. हीटर की गर्मी मल-अपशिष्ट में मौजूद बैक्टीरिया व अन्य हानिकारक सूक्ष्म जीवों को खत्म कर देती है. ऐसे में जो उर्वरक तैयार होता है वह साफ सुथरा व कीटाणु मुक्त होता है. जिससे यह बायो टॉयलेट आय का जरिया भी है. खाद तैयार करने के लिए लकड़ी का बुरादा और चावल की भूसी (360 रुपया प्रति कुंतल) का इस्तेमाल होता है.

सौ किलो जैविक खाद बनाने में बमुश्किल सौ रुपये की ही लागत आती है, जबकि तैयार उर्वरक तीन से चार हजार रुपये में बिक सकता है. अबुधाबी, दुबई, फिलीपींस आदि में मानव अपशिष्ट से तैयार जैविक खाद जापान से खरीदी जा रही है. इसकी कीमत 175 से 1400 रुपये प्रति किलो तक है अगर भारत सरकार इस ओर गंभीरता से ध्यान दे तो बहुत बड़ा बदलाव किया जा सकता है.

 

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