भारत के लोगों ने कभी यह नहीं सोचा होगा कि राम को लेकर एक वक्त देश की राजनीति इतनी गरमा जाएगी कि कोई राजनीतिक दल राम का इस्तेमाल राजनीति और सत्ता के लिए करेगा. राम और रथयात्रा के जरिए पहले ही तमाम प्रदेशों और देश की केंद्रीय राजनीति पर कब्जा कर चुकी भाजपा एक बार फिर रथयात्रा मोड में आ गई है. इसका नाम रामराज्य रथयात्रा दिया गया है, हालांकि इस बार सीधे तौर पर इस यात्रा से न जुड़कर इसको परोक्ष रूप से शुरू किया गया है.
इस बार किसी नेता की जगह महाराष्ट्र स्थित एक कथित धार्मिक संगठन श्री रामदास मिशन यूनिवर्सल सोसायटी और विश्व हिन्दू परिषद जैसे संगठनों के नेता इसके मुख्य रथयात्री हैं. 12 फरवरी को अयोध्या से विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री ने झंडी दिखाकर इसे रवाना किया. एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि पहले इस यात्रा को मुख्यमंत्री योगी को रवाना करना था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. तो वहीं इस यात्रा को लेकर जितने समर्थन की संभावना जताई जा रही थी, वह भी नहीं मिला.
यहां देखने वाली बात यह है कि यह यात्रा तब शुरू कि गई है जब कुछ समय बाद ही केरल, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में चुनाव होने हैं. तो वहीं 2019 में लोकसभा चुनाव भी तय है. यह महज संयोग नहीं है कि इस रथयात्रा का रास्ता इस तरह तय किया गया है कि यह उन सभी रास्तों से गुजरेगी जहां विधानसभा चुनाव होने हैं. जहां तक भाजपा की बात है तो यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के बयान से उसका दोहरा चरित्र उजागर होता है. मौर्या ने एक बयान में कहा है कि रथयात्रा सरकार की नहीं है लेकिन वह शहर आए तो उसका स्वागत करिए.
यह यात्रा तब शुरू की गई है जब हाल ही में एक अन्य यात्रा के नाम पर यूपी के कासगंज में सांप्रदायिक दंगा हो चुका है. ऐसे में क्या गारंटी है कि राम मंदिर के नाम पर आयोजित इस नई रथ यात्रा में सब ठीक रहेगा. इसी दौरान दिल्ली से एक और रथयात्रा निकाली गई, जिसे इंडिया गेट से हरी झंडी के बजाय भगवा झंडा दिखाकर देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने रवाना किया. इस दूसरी रथ यात्रा का नाम ‘जल-मिट्टी रथ यात्रा’ रखा गया है. देश के कोने-कोने से यह रथ-यात्रा जल और मिट्टी लेकर दिल्ली पहुंचेगी, जहां 18 से 25 मार्च के बीच लालकिले पर महायज्ञ होगा. इस महायज्ञ का नाम ‘राष्ट्र रक्षा महायज्ञ’ रखा गया है.
20वीं सदी में इस तरह के महायज्ञ के जरिए देश की रक्षा की बात करना मजाक के सिवा कुछ नहीं है. यह भारत के लोगों को यह उसी सदी में ले जाने की कोशिश है, जिसके बारे में यह प्रचारित किया जाता है कि किसी तपस्वी द्वारा किसी महिला को देख लेने भर से वह गर्भवती हो जाती थी. हालात तब और बुरे हो जाते हैं जब इस तरह के आयोजनों से सीधे सरकार या फिर उसके संगठन जुड़े होते हैं. हालांकि यह तय है कि यह भाजपा द्वारा फिर से सत्ता हासिल करने की एक कोशिश भर है. अपने तमाम वादों औऱ दावों को पूरा करने में फेल हो जाने वाली भाजपा की कोशिश एक बार फिर देश के लोगों को रथयात्रा और महायज्ञ के जरिए बेवकूफ बनाने और उनकी आस्था से खिलवाड़ करने की है.
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।