मैंने जब से होश संभाला है, हमेशा यही सुना कि हरेक सरकार ने गरीबों के हक में जीजान से काम किया है…. करती रही हैं. गरीबी और जातियों को मिटाने के नाम पर न जाने हर सरकार ने कितनी ही योजनाएं बनाईं किंतु समझ नहीं आया कि आजादी के सत्तर साल बाद भी गरीबी का प्रतिशत टस से मस नहीं हो पाया है. जातियां तो और भी पुख्ता होती जा रहीं हैं. माना कि समाज के गरीब और निरीह समाज में वक्त बदलने के साथ-साथ जरूर कुछ परिवर्तन हुए हैं किंतु उतने नहीं, जितने की जरूरत है/थी. इस प्रकार के परिवर्तन केवल भारत में ही नहीं अपितु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हुए हैं. अत: इसका श्रेय किसी भी राजनीतिक दल को देना तर्कसंगत नहीं होगा. यहाँ यह कहना गलत नहीं होगा कि प्रेत्येक राजनीतिक दल ने दलितों के हक में केवल और केवल वोट बैंक को साधने के लिए हमेशा खोखले वादे किए हैं.
आज की भाजपा यानि कि मोदी सरकार भी यही कर रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने आपको दलितों का सबसे बड़ा हितैषी होने की बात तो जरूर करते हैं पर हकीकत कुछ और ही है. भारतीय जनता पार्टी दलितों के वोट हासिल करने के लिए जोरदार कोशिश करती हुई दिखती है, लेकिन अपनी पार्टी के पुराने दलित नेता और उनके परिजनों की बेकदरी करने से बाज नहीं आती. फिर ये कैसे आशा की जा सकती है कि मोदी सरकार आम जनमानस के हित की बात पर यकीन रखती है. और तो और देश के और भाजपा द्वारा बनाए गए दलित राष्ट्रपति का दर्जा आज भी दलित होने का ही बना हुआ है. उनके साथ भी जगन्नाथ के मन्दिर में अपमान जनक सुलूक किया गया. अब राम कोविन्द जी को राष्ट्रपति तो बना दिया गया किंतु ‘जाति’ है कि जाती ही नहीं. फिर भी दलित मन्दिर जाने से भला परहेज क्यों नहीं करते?
भाजपा आज पूरे देश में शासन कर रही है. उसी भारतीय जनता पार्टी के जनक रहे अटल बिहारी बाजपेयी के समय जनसंघ से लखना विधानसभा सुरक्षित सीट से दो बार विधायक रहे रामलखन धोबी का परिवार आज गुजारे के लिए परेशान है. रामलखन धोबी 1974 में पहली बार ‘दीपक’ चुनाव निशान वाली जनसंघ पार्टी से व 1977 में जनसंघ के बाद बनी जनता पार्टी से विधायक लखना विधानसभा से जीते थे. आज भी उनके परिवार की निष्ठा भाजपा के साथ है. घर के दरवाजे पर आज भी कमल के निशान वाला भाजपा का स्टिकर चिपका है. किंतु लखना का परिवार दलितीय जिन्दगी जीने को ही मजबूर है. अब इसे लखना के साथ भेदभाव वाला रवैया कहें या इतना होने पर भी लखना के परिवार की अदूर्शिता? खैर! ये तो एक परिवार की बात रही. समूचे समाज के प्रति भाजपा का इस प्रकार का ही उपेक्षापूर्ण रवैया आज भी बना हुआ है.
भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह अपनी किसी भी सभा में यह कहने से नहीं चूकते कि भाजपा दलितों के साथ है. किंतु वर्तमान भाजपा सरकार द्वारा बजरिए सुप्रीम कोर्ट अनुसूचित जाति (एससी)/अनुसूचित जनजाति (एसटी) अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 को कमजोर करा दिया गया. और जब 2 अप्रैल 2018 को भाजपा के इस पराक्रम के खिलाफ दलितों/ओबीसी/अल्पसंख्यकों द्वारा सामूहिक आन्दोलन किया गया तो इसी भाजपा सरकार ने दलितों/ओबीसी/अल्पसंख्यकों के अनेक नौजवानों को झूटे मामले बनाकर जेलों में ठूंस दिया गया. बहुत से तो आज तक जेल की सलाखों के पीछे हैं. माब लिंचिग के जितने भी मामले हैं, सबके शिकार दलित अथवा अल्पसंख्यक ही हुए है; गोरक्षा के नाम पर सबसे ज्यादा दलितों और अल्पसंख्यकों को ही निशाना बनाया गया है; महिला बलात्कार के मामले भी ज्यादातर इसी वर्ग की महिलाओं के साथ हुए हैं. किंतु अमित शाह बारबार यह आश्वासन देने से नहीं चूकते कि केंद्र सरकार दलित समुदाय के प्रत्येक अधिकार की रक्षा करेगी. भाजपा प्रमुख ने एक साथ कई ट्वीट करते हुए कहा, ‘सरकार दलितों के प्रत्येक अधिकार की रक्षा करेगी और उनकी आकांक्षाओं को पूरा करना जारी रखेगी…..’ किंतु धरातल पर उनकी घोषणा के विपरित ही काम हो रहे हैं.
काफी शोरशराबे के बाद माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एससी/एसटी एक्ट पर आदेश देने के दिन से ही केंद्र सरकार तत्काल और सजगता के साथ सक्रिय तो हो गई किंतु सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मसले को ठंडे बस्ते में ही डाल दिया गया. हुआ यूँ कि समाज में दलितों/ओबीसी/अल्पसंख्यकों के खिलाफ और भी भयावह घटनाएं घटने लगीं हैं. न्यायलाय से बेल मिलने के बावजूद भीम सेना के रावण को रासुका के तहत जेल में डाल दिया गया. रोहित विमोला के कातिलों को आजतक नहीं पकड़ा गया. पुलिस को तो केवल बहाना चाहिए था… वो सुप्रीम कोर्ट के सुझाव पर असल में अमल करने में लग गई. यदि भाजपा सरकार दलितों के हक में है तो फिर इस बाबत पुराने एक्ट को ही लागू कराने के लिए सरकारी विधेयक क्यों नहीं लाई? भाजपा सरकार में मंत्री पद पर विराजमान दलित नेता पासवान यह कह कर कि सरकार अनुसूचित जाति (एससी)/अनुसूचित जनजाति (एसटी) अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 को पुन: अपने प्राथमिक रूप में बनाए रखने के लिए ‘अध्यादेश’ लाएगी. किंतु अभी तक तो ऐसा कुछ हुआ नहीं है.
अमित शाह का ये कहना कि सरकार द्वारा एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम, 2015 में संशोधन कर वास्तव में उसे और शक्ति प्रदान की है, किसी अत्यंत ही भद्दे मजाक से कम नहीं है. कमाल की बात तो ये भी है कि सुप्रीम कोर्ट के जिस जज आदर्श गोयल ने ‘उदय ललित’ के साथ मिलकर SC,ST एक्ट को बर्बाद कर दिया, उसे सेवा निवृत्त होते ही नरेंद्र मोदी सरकार ने ‘नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल’ के चेयरमैन जैसे मालदार पद पर अगले पांच साल के लिए बैठा दिया. फिर ये कैसे मान लिया जाय कि एस सी/एस टी एक्ट को कमजोर करने में मोदी सरकार का हाथ नहीं है? क्या इसके बाद भी SC-ST को आगामी चुनावों अपनी भूमिका तय नहीं करनी चाहिए? कहने को तो भाजपा डॉ. भीमराव अंबेडकर के सपने को पूरा करने को भाजपा की प्रतिबद्धता बताती है पर करती कुछ नहीं.
अल्पसंख्यक विश्वविद्यालयों में एस सी/ एस टी/ओ बी सी को आरक्षण दिए जाने का सवाल उठाकर भाजपा अपने किए पर पर्दा डालने का काम ही नहीं रही अपितु उसे वंचितों की फिक्र कम राजनीति की ज्यादा चिंता है. सरकारी नौकरियों में आरक्षण को कायम रखने के नाम पर भी भाजपा दोहरी भूमिका में नजर आ रही है. प्रशासनिक नौकरियों में सीधे भर्ती करना, निजी संस्थानों में आरक्षण की व्यवस्था न करना, ठेकेदारी प्रथा को बढावा देना और न जाने कितने ही अघोषित दलित विरोधी कार्यक्रम मोदी सरकार द्वारा चलाए गए हैं, उनकी गणना करना ही दुर्लभ है. यदि विपक्षी राजनीतिक दल उनके इस घृणित कार्य की ओर उंगली उठाते हैं तो भाजपा के प्रवक्ता इतिहास पर ही सवाल करके विपक्षियों के सवाल को खारिज करने का काम करते हैं. अब कोई इनसे पूछे कि यदि आज के विपक्षी दलों ने गलतियां न की होती तो भाजपा की सरकार किस बिना पर बनती. इस प्रकार भाजपा पुरानी सरकारों की कमियों को सामने लाकर अपनी कमियों को छुपाती रहेगी?
अब मोदी जी तो कुछ बोलते नहीं है. पहले वो कहते थे कि मनमोहन सिंह मौनी बाबा है. उनके अनुसार, क्या अब ये कहा जाए कि मनमोहन सिंह जी तो कम बोलते थे, किंतु मोदी जी तो किसी की सुनते ही नहीं. शाह कहते हैं कि भाजपा का मत स्पष्ट है कि हम बाबा साहेब द्वारा प्रदत्त संविधान और इसमें एससी तथा एसटी समुदाय को दिए गए अधिकारों में पूर्ण विश्वास रखते हैं…..किंतु शाह केवल और केवल बयान देते हैं, होता-जाता कुछ नहीं.
सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के संबंध में दलित सांसदों ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की. उन्हें आश्वासन दिया गया कि सरकार उनके अधिकारों की रक्षा और उनके भले के लिए सब कुछ कर रही है….और दलित सांसद इतना सुनकर शांत हो गए. प्रत्युत्तर में एक का भी मुंह नहीं खुला कि जो सरकार इस बाबत विधेयक कब तक लाएगी. … अब बेचारों को अपनी कुर्सी भी तो बचानी है कि नहीं.
चलते-चलते इस बात और कि दिनांक 16.07.2018 के दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में खबर है कि भाजपा एस सी /एस टी वर्ग के पढे-लिखे लोगों को जमीनी संगठन का सरताज बनाएगी. मिशन 2019 को लेकर भाजपा ने अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लोगों को बूथ कमेटियों का कर्णधार बनाने का लक्ष्य तय किया है. पार्टी नेतृत्व ने तय किया है कि संगठन के पदाधिकारी से लेकर नेता और बड़े कार्यकर्ता भी इस मुहिम को सफल बनाने के लिए गांवों में कैंप करेंगे. स्मरण रहे कि भाजपा का यह निर्णय मिशन 2019 के तहत लिया गया है. भाजपा 2019 के लोक सभा चुनाव में ‘साम, दाम दण्ड, भेद’ जैसे सारे हथकंडे अपनाएगी, इस बात को कतई नहीं नकारा जा सकता. यह आज की राजनीति का सबसे भयानक चेहरा है.
बिहार दौरे पर गए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने प्रति बूथ एससीएसटी वर्ग से 10 कार्यकर्ताओं का चयन कर संगठन में शामिल करने का जो निर्णय लिया है इसके पीछे भाजपा की हताशा साफ झलकती है. भाजपा का मानना है कि इस पहल से विपक्षी दलों के आधार वोट बैंक में सेंध लगाने के साथ संगठन के लिए यह मुहिम वरदान साबित होगी. इतना ही नहीं इस प्रकार भाजपा एस सी /एस टी वर्ग के युवाओं को पद का लालच/झांसा देकर भाजपा से विमुख दलितों को अपने पाले में खींचने का नापाक काम करना चाहती है. अब दलितों पर निर्भर है कि वो भाजपा के इस झांसे से बच पाते है कि नहीं. और इसमें एस सी /एस टी वर्गे के युवाओं को भाजपा इस झांसे में न आने की भूमिका निभानी होगी कि वो भाजपा द्वारा बांटी जाने वाली बूर को तिलांजली देकर समूचे दलित समाज के हक में काम करें.
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