बुद्ध पूर्णिमा के मौके पर दुनिया भर के बौद्ध समाज में जश्न का माहौल रहा। लेकिन भारत के लिए इस बार की बुद्ध पूर्णिमा खास रही। दरअसल इस बार श्रीलंका से उस बोधि वृक्ष के प्रतिरूप को भारत लाया गया, जिसे महान सम्राट अशोक की पुत्री संघमित्रा 2300 साल पहले प्रतिरूप के रूप में बोधगया से श्रीलंका लेकर गई थीं।
भारत के लार्ड बुद्ध वेलफेयर फाउंडेशन के सचिव दीवाकर पटेल की कोशिश और भंते देवेन्द्र की पहल पर यह हो पाया। इसे अमलीजामा पहनाया लखनऊ के व्यवसायी और विजय एनर्जी इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड के मालिक बौद्ध उपासक विजय बौद्ध ने। इसके लिए 2500 अमेरिकी डालर यानी तकरीबन दो लाख रुपये की फीस भी जमा की गई।
यह पहली बार था जब इस बोधि वृक्ष के प्रतिरूप को आधिकारिक तौर पर भारत लाया गया है। यह काम मार्च महीने में हुआ। बोधि वृक्ष के इस प्रतिरूप को भारत लाने के लिए उपासक विजय बौद्ध श्रीलंका गए थे, जहां बोमालुआ टेंपल अनुराधापुरा के प्रमुख ने बीते 26 मार्च को विजय बौद्ध को बोधि वृक्ष का प्रतिरूप सौंपा।
इस बोधि बृक्ष की कहानी बौद्ध परंपरा का इतिहास बताती है, साथ ही यह भी बताती है कि भारत के बाहर बौद्ध धर्म कैसे पहुंचा। करीब 2300 साल पहले महान सम्राट असोक के पुत्र महेन्द्र धम्म का प्रसार करने श्रीलंका पहुंचे थे। वहां के राजा और उपासको ने उनसे कहा कि आपके जाने बाद क्या होगा? तब भंते महेंद्र ने अपने पिता सम्राट असोक से आग्रह कर बहन संघमित्रा से बोध गया से महाबोधि वृक्ष का सपलिंग यानी प्रतिरूप श्रीलंका लाने को कहा। अब उसी विशाल बोधिवृक्ष के प्रतिरूप को वापस भारत लाया गया।
इस बोधि वृक्ष को उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती में, जहां तथागत बुद्ध घूम-घूम कर धम्म का उपदेश देते थे, वहां के बलरामपुर के लालनगर गांव में 31 मार्च को रोपित किया गया। दरअसल 31 मार्च को यहां बौद्ध भिक्खुओं का द्वितीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन हुआ, जिसमें देश-विदेश के बौद्ध भिक्षुओं का जमावड़ा लगा था। इसी दौरान श्रीलंका से लाए बोधिवृक्ष को रोपित किया गया। इस मौके पर लाल नगर गांव में 84 फीट ऊंचे अशोक स्तंभ का निर्माण भी कराया जा रहा है।
निर्माण कार्य पूरा होने के बाद यह स्तंभ महान गौतम बुद्ध के 84 हजार उपदेशों का संदेश देगा। 31 मार्च को अंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन के दौरान धम्म स्थल पर पांच देशों के पौधे रोपित किये गए। इस दौरान सारनाथ की तरह चार मुख वाले शेरो की प्रतिमा के सामने पांच तीर्थ स्थलों का पौधा बोधि वृक्ष पीपल लगाया जाएगा। पहले मुख के सामने नेपाल, दूसरे मुख के सामने तथागत की जन्म स्थली लुम्बिनी, तीसरे मुख के सामने ज्ञान स्थली बोधगया और चौथे मुख के सामने महा परिनिर्वाण स्थली कुशीनगर से लाए गए पौधे रोपित होंगे। उपासक विजय बौद्ध द्वारा श्रीलंका से लाए गए पौधे को बीच में रोपित किया गया है।