रामविलास पासवान की मृत्यु के बाद अचानक से हर कोई उनके बारे में ज्यादा जानने की चाह रखने लगा। उन पर किताबें ढूंढ़ी जाने लगी। इसी बीच पेंगुइन रैंडम हाउस ने हाल ही में देश के कद्दावर नेता और राष्ट्रीय दलित राजनीति के प्रमुख हस्ताक्षर रामविलास पासवान की पहली अधिकृत जीवनी प्रकाशित कर दी है। रामविलास पासवान; संकल्प, साहस और संघर्ष नाम से लिखी गई इस जीवनी के लेखक वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप श्रीवास्तव हैं और यह किताब नवंबर 2020 की शुरुआत में बाज़ार में आ गई है। यह किताब अभी ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर प्री-ऑर्डर के लिए उपलब्ध है।
रामविलास पासवान की इस जीवनी में बिहार के खगड़िया जिले के एक सुदूर गाँव शहरबन्नी से शुरू हुई उनकी जीवन और राजनीतिक यात्रा से लेकर, उनके व्यक्तिगत संघर्षों और उनके मूल्यों का विशद वर्णन है। यह जीवनी इस मायने में भी ख़ास है क्योंकि पासवान की जीवनी आज़ाद भारत के अहम कालखंड की राजनीतिक दास्तां भी साथ में बयाँ करती चलती है। इस किताब में पासवान के व्यक्तिगत और राजनीतिक जीवन के सफ़र के कई ऐसे अनछुए पहलुओं को समेटा गया है जो दुनिया की नज़रों से अभी तक ओझल रहे हैं।
पासवान को ऐसा नेता माना गया जो सभी वर्गों और समुदायों में समान रूप से लोकप्रिय थे। अपने पाँच दशकों से भी ज़्यादा के राजनीतिक जीवन में पासवान ने कई अहम पदों की ज़िम्मेवारियाँ संभाली जिसमें रेलवे, संचार और सूचना तकनीक और केमिकल और फर्टिलाइज़र जैसे मंत्रालयों की जिम्मेवारियाँ भी शामिल थीं। अपनी मृत्यु से ठीक पहले वह मौजूदा केंद्र सरकार में खाद्य, सार्वजनिक वितरण और उपभोक्ता मामलों के मंत्री थे।
पासवान को लंबे समय से जानने वाले इस पुस्तक के लेखक और पत्रकार प्रदीप श्रीवास्तव कहते हैं कि उन्हें इस बात का गहरा दुख है कि पासवान इस पुस्तक को प्रकाशित होते हुए नहीं देख पाए, हालाँकि उन्होंने निधन के तीन महीने पहले इस पुस्तक की की मुद्रित पांडुलिपि शुरू से अंत तक पढ़ी थी और उन्होंने संतोष जाहिर करने के साथ इसकी तारीफ भी की थी। प्रदीप श्रीवास्तव कहते हैं, ‘यह पुस्तक पासवान जी के जीवन के चार पहलुओं को समेटती है। पहला, बिहार के एक अति पिछड़े गांव शहरबन्नी से शुरू हुआ उनका बचपन, पढ़ाई-लिखाई, और फिर उनका पारिवारिक जीवन। दूसरा, राजनीति में उनके प्रवेश से लेकर अभी तक की राजनीतिक यात्रा; तीसरा, समाजिक न्याय के लिए उनके द्वारा किया गया अनवरत संघर्ष और चौथा, उनकी प्रशासनिक क्षमता, प्रशासनिक फैसले और केंद्रीय मंत्री के तौर पर किए गए उनके कार्य’। उन्होंने आगे कहा, ‘इस किताब को लिखने के क्रम में मेरी छह साल में कई बार पासवान जी से बातचीत हुई। मैंने पासवान जी से जुड़े अनगिनत लोगों से साक्षात्कार किया, इनमें उनके राजनीतिक सहयोगियों, मंत्रालय में उनके साथ काम किए अधिकारियों के साथ उनके परिवार के लोग भी शामिल हैं।’
पासवान की इस जीवनी पर बात करते हुए पेंगुइन रैंडम हाउस की पब्लिशर, इंडियन लैंग्वेजेज वैशाली माथुर कहती हैं, ‘मैं इस किताब के संपादन के समय इसके ब्यौरों और इसकी किस्सागोई में एक तरह से डूब गई थी, क्योंकि पासवानजी के बारे में अभी तक बहुत कम जानकारी उपलब्ध थी। वे दलित समुदाय के सबसे महत्वपूण नेताओं में से एक थे और केंद्र में बिहार का अहम चेहरा थे। रामविलास पासवान जी की यह प्रामाणिक जीवनी उनके जीवन के सभी पक्षों पर प्रकाश डालती है’। 309 पन्नों की इस पुस्तक का मूल्य 399 रुपये है।
इस पुस्तक के लेखक प्रदीप श्रीवास्तव वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार हैं और पत्रकारिता में तीन दशकों से ज़्यादा समय से सक्रिय हैं। उन्होंने जनसत्ता (इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप) के दिल्ली ब्यूरो में दो दशकों से ज़्यादा समय तक विशेष संवाददाता के रूप में काम किया और उसके बाद दैनिक सन्मार्ग में पाँच साल तक एसोशिएट एडिटर और उसके दिल्ली ब्यूरो के इंचार्ज रहे।
इस पुस्तक के प्रकाशक पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे प्रकाशन समूह है जो हर साल 250 से ज़्यादा पुस्तकों का प्रकाशन करता है और जिसके पास 3000 से ज़्यादा किताबों का एक बैकलिस्ट है। पेंगुइन के कई लेखकों को भारत रत्न और पद्म विभूषण भी मिल चुका है जो भारत के सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान हैं।
प्रेस रिलिज
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