बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण सम्मेलन करने की घोषणा कर दी है। इसकी शुरुआत बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र 23 जुलाई को अयोध्या से करेंगे। पहले चरण में 23 जुलाई से 29 जुलाई तक ब्राह्मण सम्मेलन होगा। सतीश चंद्र मिश्रा के नेतृत्व में यह सम्मेलन जिलेवार किया जाएगा। निश्चित तौर यह चुनाव के पहले की जाने वाली कवायद है और इसे चुनावी कार्यक्रम के रूप में देखा जाना चाहिए। लेकिन ऐसा हर दल करती है और बसपा भी अपवाद नहीं है।
यहां सवाल यह है कि बसपा को इस सम्मेलन से मिलेगा क्या, और क्या ब्राह्मण समाज बसपा से जुड़ेगा और 2022 के आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को हराने के लिए बसपा को वोट करेगा? उत्तर प्रदेश में करीब 12 प्रतिशत ब्राह्मण मतदाता हैं। मीडिया में ब्राह्मणों का वर्चस्व है, और उन्होंने ऐसा प्रचारित कर रखा है कि यूपी में ब्राह्मण समाज जिस पार्टी को समर्थन करता है उसकी सरकार बन जाती है। हालांकि यह कितना सच है, इसका कोई रिसर्च मौजूद नहीं है। लेकिन जब यूपी में समाजवादी पार्टी जीतती है, तो यही मीडियाकर्मी हल्ला मचाते हैं कि वह ब्राह्मणों के वोट से जीती है, और जब बसपा की सरकार आती है तो शोर मचाया जाता है कि सपा को रोकने के लिए ब्राह्मणों ने बसपा की सरकार बना दी है। और जब भाजपा की सरकार बनती है तो ब्राह्मणों को भाजपा के पाले में बताया जाता है। इस तरह जीत चाहे जिस पार्टी की हो, प्रदेश में चाहे जिसकी सरकार बने मीडिया की अपनी ताकत से ब्राह्मण समाज खुद को सत्ता के साथ हमेशा जोड़े रखता है।
इस बार मीडिया का एक खेमा कह रहा है कि ब्राह्मण उत्तर प्रदेश में भाजपा से और खासकर योगी सरकार से नाराज हैं और इसलिए गुस्साए ब्राह्मण योगी सरकार को गिराने के लिए किसी और राजनीतिक दल को वोट देंगे। ऐसे में सपा और बसपा दोनों प्रमुख प्रतिद्वंदी होने का दावा करते हुए ब्राह्मण वोटों के लिए ‘जय परशुराम’ का नारा लगा रहे हैं। बसपा का ब्राह्मण सम्मेलन इसी कड़ी में लिया गया फैसला है।
हालांकि विचारधारा के स्तर पर बसपा और सपा में एक बहुत बड़ा फर्क है। बहुजन समाज पार्टी जहां ब्राह्मण वोटों के लिए अपने पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा को केंद्र में रखते हुए सारी रणनीति बनाती है तो वहीं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव खुद मंदिरों, मठों और धर्मगुरुओं के चक्कर लगाते दिखते हैं। दूसरी ओर बसपा प्रमुख मायावती ब्राह्मणों के वोट के लिए मंदिरों और मठों के चक्कर नहीं लगातीं। न ही उनके धर्मगुरुओं को बहुत भाव देती हैं। जिस कारण बहनजी ब्राह्मण वोटों के लिए रणनीति बनाते हुए भी दलित वोटों को अपने साथ जोड़े रखने में सफल रहती हैं।
अब सवाल है कि यूपी में ब्राह्मण वोट कितना महत्वपूर्ण है। निश्चित तौर पर 12 प्रतिशत वोटर किसी भी पार्टी के लिए एक बड़ा नंबर होता है और वह सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का माद्दा रखता है। और इसको भी खारिज नहीं किया जा सकता कि जब भी कोई दल सत्ता में आता है तो उसे कमोबेश हर जाति का समर्थन मिलता ही होगा। 2007 में बसपा ने प्रदेश की 403 सीटों में से 206 सीटें जीतकर तलहका मचा दिया था। तब बसपा को तीस प्रतिशत वोट मिला था। 2017 विधानसभा चुनाव में 325 सीटों के साथ बीजेपी की सरकार बन गई थी।
ऐसे में अगर बसपा एक बार फिर से ब्राह्मण समाज को जोड़ने की कवायद में जुटी है तो इसे एक चुनावी रणनीति के रूप में स्वीकार करना चाहिए। दरअसल चुनावी रणनीति बनाते समय राजनीतिक दलों को कई स्तरों पर सोचना पड़ता है। 2017 विधानसभा चुनावों के दौरान जब बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवारों को जमकर टिकट दिया था, तो माना गया कि दलित और मुस्लिम वोटों के जरिए बसपा ने एक मजबूत समीकरण तैयार कर लिया है और तमाम सीटों पर जहां भाजपा और बसपा में सीधा मुकाबला होगा, वहां यादव सहित अन्य पिछड़े वर्ग का वोट भी बसपा को जाएगा। इसे एक बेहतरीन रणनीति माना गया था। लेकिन ऐसा हुआ नहीं और बसपा को झटका लगा था। इस बार बसपा ब्राह्मण वोटों को साधने की कवायद में जुटी है। इस रणनीति से बसपा ब्राह्मण समाज को कितना जोड़ पाएगी और उसके इस कदम की आलोचना होगी या फिर सराहा जाएगा; यह चुनाव बाद जीती गई सीटों के नंबर पर निर्भर करेगा।
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।