लोकसभा चुनाव के पहले बहुजन समाज पार्टी ने अपने गठबंधन का ऐलान कर दिया है। यह गठबंधन तेलंगाना में हुआ है, जहां बसपा के. चंद्रशेखर राव की पार्टी भारत राष्ट्र समिबति के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी। केसीआर और बसपा के तेलंगाना प्रदेश अध्यक्ष आर.एस. प्रवीण के बीच मुलाकात हुई है जिसके बाद दोनों ने मीडिया के सामने गठबंधन की घोषणा कर दी है। हाल ही में तेलंगाना में विधानसभा चुनाव हुए हैं, जिसमें कांग्रेस पार्टी ने शानदार जीत दर्ज करते हुए अपनी सरकार बना ली थी।
तेलंगाना विधानसभा चुनाव में जहां बसपा नेता डॉ. आर.एस प्रवीण कुमार ने जहां केसीआर के खिलाफ जमकर मोर्चा खोला था और केसीआर पर तमाम आरोप लगाए थे, वहीं अब साफ है कि दोनों साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे। अब सवाल है कि इस गठबंधन के मायने क्या हैं और इससे किसे फायदा होगा? 119 विधानसभा वाली तेलंगाना में बीते नवंबर में चुनाव हुए और नतीजे 3 दिसंबर को आएं। इसमें कांग्रेस ने 54 फीसदी वोट हासिल करते हुए 64 सीटें जीती थी। तो वहीं केसीआर की भारत राष्ट्र समिति दूसरे नंबर पर रही और उसे 33 फीसदी वोट और 39 सीटें मिली। भाजपा महज 7 प्रतिशत ही वोट हासिल कर सकी और उसके खाते में 8 सीटें आई थी। अन्य के हिस्से में 8 सीटें और सात प्रतिशत वोट आए थे। आठ सीटों में से 7 पर असदुद्दीन ओवैसी ने 7 जबकि सीपीआई ने 1 सीट जीती थी। जहां तक बसपा की बात है तो इस चुनाव में पार्टी ने 107 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ा। और उसे सिर्फ 1.37 प्रतिशत वोट मिले थे।
अब बसपा और केसीआर के बीच गठबंधन दलितों को हजम नहीं हो रहा है। इसकी वजह के. चंद्रशेखर राव का फरवरी 2022 में दिया गया वह बयान है, जिसमें उन्होंने नया संविधान लिखने की मुहिम चलाने की बात कही थी। तब तेलंगाना बसपा प्रमुख आर.एस प्रवीण कुमार ने केसीआर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।
दलित समाज के लिए संविधान एक भावनात्मक मुद्दा है, जो भी इसके खिलाफ बयान देता है यह समाज उसके खिलाफ खड़ा हो जाता है। यहां तक की विधानसभा चुनाव के दौरान केसीआर और आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद के बीच काफी नजदीकियां देखी गई। भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद ने हैदराबाद जाकर के. चंद्रशेखर राव से खूब मुलाकात की थी और खूब तारीफ की थी। इसको लेकर चंद्रशेखर दलितों के निशाने पर भी रहे थे। यहां तक की बसपा ने भी इसको मुद्दा बनाते हुए चंद्रशेखर आजाद को निशाने पर लिया था। लेकिन अब उसी बसपा का संविधान विरोधी बयान देने वाले के. चंद्रशेखर राव के साथ गठबंधन करना कई सवाल उठाता है। प्रदेश में दलित समाज के वोट की बात करे तो यह 17 प्रतिशत है। देखना होगा कि जिस दलित समाज ने विधानसभा चुनाव में केसीआर और बसपा दोनों को नकार दिया था, लोकसभा चुनाव में इस गठबंधन को कितना समर्थन देती है।
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।
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