उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर बहुजन समाज पार्टी ने अपने पत्ते खोलने शुरू कर दिए हैं. पार्टी की अध्यक्ष मायावती जिस तरीके से उत्तर प्रदेश के मुद्दों को लेकर लगातार मुखर हैं, उसने विपक्षी दलों की बेचैनी बढ़ा दी है. बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर की जयंती 14 अप्रैल के दिन लखनऊ में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधन के बाद से मायावती लगातार प्रेस के माध्यम से सक्रिय हैं. उन्होंने हर मुद्दे पर अपनी राय रखनी शुरू कर दी है. चाहे अब स्मारक की बजाय सिर्फ विकास कार्यों पर जोर देने की बात हो या फिर विश्वविद्यालयों में ओबीसी वर्ग का आरक्षण रद्द करने का विरोध हो या फिर तीस्ता सीतलवाड़ के पक्ष में आने की बात. उन्होंने साफ कर दिया है कि वह हर वर्ग को लेकर विकास की राह पर चलना चाहती हैं.
चुनाव पूर्व होने वाले सर्वे में मीडिया द्वारा बसपा को पहले ही सबसे बड़ी पार्टी बताया जा चुका है. इसकी जायज वजह भी है. जहां विपक्षी दल समाजवादी पार्टी और भाजपा अब तक अपनी रणनीति को लेकर पसोपेश में हैं तो वहीं बसपा ने जमीन पर काम करना शुरू कर दिया है. पार्टी के कार्यकर्ता गांव-गांव में सक्रिय हैं. जबकि भाजपा और समाजवादी पार्टी अंदरुनी आपसी गठजोड़ के जरिए कैराना जैसे मुद्दों के भरोसे अपनी चुनावी नैया पार करने की सोच रही है. लेकिन उत्तर प्रदेश में यह संभव होता नहीं दिख रहा है, क्योंकि प्रदेश की जनता भाजपा-सपा गठजोड़ को समझ चुकी है और उसने कहीं न कहीं बसपा को सत्ता में लाने का मन बना लिया है. विकास और भ्रष्टाचार के साथ वर्तमान में प्रदेश में सबसे बड़ा मुद्दा सुरक्षा और कानून व्यवस्था का बन चुका है. प्रदेश में यह चर्चा आम है कि समाजवादी पार्टी की सरकार कानून व्यवस्था और सुरक्षा से जुड़े मामले पर पूरी तरह से विफल रही है. और जब सरकार से जुड़े लोग ही गुंडागर्दी पर उतर आएं तो फिर स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है.
सर्वसमाज के विकास के मायावती और बसपा के संकल्प ने भी उत्तर प्रदेश में माहौल बसपा के पक्ष में किया है. पार्टी के एक दलित कार्यकर्ता द्वारा फेसबुक पर ब्राह्मण समाज के खिलाफ उग्र टिप्पणी करने पर मायावती ने उसे पार्टी से बाहर कर दिया. उनके इस कदम की आलोचना भी हुई लेकिन इससे बेफिक्र मायावती ने साफ कर दिया कि उनकी सोच किसी दूसरे वर्ग के खिलाफ नहीं बल्कि समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चलना है. हालांकि धर्म और पाखंड पर मायावती ने 14 अप्रैल को लखनऊ में दिए अपने भाषण में करारा प्रहार किया था. उन्होंने साफ कहा था कि दलितों का असली तीर्थ स्थल काशी और मथुरा नहीं बल्कि लखनऊ का यह सामाजिक परिवर्तन स्थल है, जो बहुजन महापुरुषों की स्थली है.
इन सारे तथ्यों के बावजूद उत्तर प्रदेश में बसपा की कामयाबी इस बात पर निर्भर करेगी कि दलित और पिछड़ा समाज बसपा के पक्ष में कितना खड़ा होता है. क्योंकि लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज बहुजन समाज पार्टी को झटका दे चुका है. तमाम दावों और तैयारियों के बावजूद जमीन पर बसपा की चुनौती दलित-पिछड़े वोटरों को एकजुट करना होगा. यहां उसे भाजपा से चुनौती मिल सकती है, क्योंकि यादव वोट सपा को जाने के बाद पिछड़े वर्ग के अन्य समूहों के वोटों पर भाजपा की भी नजर है. उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण और राजपूत ऐसे दो वर्ग हैं, जिन पर बसपा और भाजपा दोनों का दावा है. बसपा का ज्यादातर दारोमदार असल में दलित-पिछड़े वोटरों पर निर्भर है. बसपा की जीत के लिए इन दोनों समाज के वोटरों का बसपा के पक्ष में मजबूती से खड़ा होना जरूरी है. लेकिन जाति-धर्म और चुनावी गणित से इतर बसपा के पक्ष में सबसे मजबूत बात पार्टी की मुखिया मायावती का कड़ा प्रशासन है. उत्तर प्रदेश में सपा सरकार में जिस तरह कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही है, सबकी जबान पर सिर्फ एक नाम मायावती ही है. चुनावी सर्वे में यही बात बहुजन समाज पार्टी के पक्ष में जा रही है और उसे बढ़त दिलवा रही है.
वैसे तो उत्तर प्रदेश के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के अलावा समाजवादी पार्टी, भाजपा और कांग्रेस पार्टी चुनाव लड़ रही है लेकिन यहां राजनीति के केंद्र में सिर्फ बसपा है. हर राजनीतिक दल बसपा को केंद्र में रखकर ही अपनी रणनीति बना रही हैं. भाजपा सहित तमाम दल चुनाव के पहले आक्रामक प्रचार में जुटेंगे. बसपा को इस चुनौती का सामना करना होगा और अपने वोटरों पर मजबूत पकड़ बनाए रखना होगा. चुनावी बिसात में बसपा बढ़त बनाए हुए है. उसके लिए चुनाव होने तक इस बढ़त को जारी रखने की चुनौती होगी.
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।