बौद्ध धर्म में श्रावस्ती का काफी महत्व है। श्रावस्ती का जेतवन वह स्थान है जहां तथागत बुद्ध ने अपने जीवन के 18 वर्षावास बिताया था। यहीं उन्होंने अंगुलीमाल डाकू से लोगों की रक्षा की थी और उसे धम्म के रास्ते पर लेकर आए थे। तो सारनाथ वह स्थान है, जहां तथागत बुद्ध ने पंचवर्गीय भिक्खुओं को ज्ञान प्राप्ति के बाद पहला उपदेश दिया था। इन दोनों प्रमुख बौद्ध स्थलों को लेकर लोगों का उत्साह बढ़ता जा रहा है। वैसे तो आए दिन यहां पर्यटकों का तांता लगा रहता है, लेकिन बुद्ध पूर्णिमा के मौके पर यहां खास आयोजन होता है।
इस साल भी 23 मई को 2568वीं त्रिविध पावनी बैशाख पूर्णिमा यानी बुद्ध पूर्णिमा के मौके पर यहां पूरे दिन बौद्ध धर्म के अनुयायियों का तांता लगा रहा। जेतवन में पूरे दिन भंडारा चलता रहा तो शाम को जेतवन को 2568 दीपक प्रज्वलित किया गया। महाविहार गंधकुटी, जहां तथागत बुद्ध वर्षावास के दौरान रहा करते थे, उसे गुलाब की पंखुड़ियों से सजाया गया। इस मौके पर हजारों बौद्ध अनुयायियों ने प्रसाद ग्रहण किया। श्रावस्ती स्थित जेतवन पर यह शानदार आयोजन भंते देवेन्द्र के निर्देशन में उपासक विजय बौद्ध के सहयोग से हुआ।
दूसरी ओर तथागत बुद्ध की प्रथम उपदेश स्थली सारनाथ में तथागत बुद्ध के अवशेष को दर्शन के लिए रखा गया। तथागत बुद्ध की पवित्र अस्थि धातु को प्रथम उपदेश स्थल पर मुलगंधकुटी विहार में उपासकों के दर्शन के लिए रखा गया। इस मौके पर देश-विदेश से 50 हजार से अधिक बौद्ध भिक्षु और अनुयायियों ने तथागत बुद्ध के पवित्र अस्थि के दर्शन किये। वैसे तो सारनाथ में अलग-अलग देशों के तमाम बुद्ध विहार हैं, लेकिन भारतीय बौद्धों का एकमात्र बुद्ध विहार धम्मा लर्निंग सेंटर हैं।
सारनाथ में आयोजित प्रमुख कार्यक्रम धम्मा लर्निंग सेंटर के प्रमुख भंते चंन्दिमा के निर्देशन में और सेंटर से जुड़े तमाम उपासकों के सहयोग से कार्यक्रम हुआ। इस मौके पर सुबह 10 बजे से रात को 10 बजे तक भिक्खु संघ एवं उपासकों को सामूहिक भोजन दान दिया गया। बता दें कि दिनों-दिनों बौद्ध धर्म का कारवां बढ़ता जा रहा है। बैसाख पूर्णिमा के मौके पर यह साफ तौर पर देखा गया।
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