बिहार के जिला मुंगेर, प्रखंड असरगंज के गाँव लगमा से सोमनाथ आर्य की यह रिपोर्टिंग इसी साल 2018 की है. द इंडियन सन के रिपोर्टर लगमा गाँव में दाखिल हुए तो एक मंडप में काले ग्रेनाइट की भूमि स्पर्श मुद्रा में बुद्ध की मूर्ति थी. मगर गाँव के लोग मुरकटवा बाबा कहते हैं और शराब चढ़ाते हैं. मुरकटवा का मतलब, वह जिसका सिर कटा हुआ हो.
लगमा गाँव के बाहर तीन प्रतिमाएँ गड़ी हुई हैं. स्थानीय लोग इन्हें ” लतखोरवा ” गोसाईं कहते हैं. लतखोरवा गोसाईं का मतलब हुआ, वह देवता जो लात (पैर) मारने से खुश रहे. अजूबा बात थी. भला कोई देवता पैर से ठोकर मारने और चप्पल से पीटे जाने पर क्यों खुश होंगे. आखिर कौन है लतखोरवा गोसाईं?
तस्वीरें यूनिवर्सिटी आॅफ मुंबई भेजी गई. पालि विभाग के राहुल राव ने बताया कि तीनों मूर्तियाँ बुद्ध की हैं. ऐसा जान पड़ता है कि लगमा का क्षेत्र कभी बौद्ध – स्थल था. निकट की ढोल पहाड़ी पर बुद्ध के चित्र उकेरे गए हैं. कालांतर में कभी यह स्थल बौद्ध विरोधियों के कब्जे में आया तो वे इसे नष्ट-भ्रष्ट कर दिए. कारण कि तीन में से एक मूर्ति को बारूद से उड़ाया गया है.
कभी बौद्ध विरोधियों ने बुद्ध की मूर्तियों को लात – जूता से पीटने की परंपरा चालू की होगी और यह परंपरा बाद में भी जाने – अनजाने में लोगों ने जारी रखी.
खैर, खबर बौद्ध संस्था हयूनेंग फाउंडेशन को मिल चुकी है. यह राहत की बात है.
राजेन्द्र प्रसाद सिंह के फेसबुक वॉल से
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