लखनऊ। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार एनकाउंटर के जरिए क्राइम कंट्रोल करने का दावा कर रही है. लेकिन इसी सरकार की एक दूसरी सच्चाई यह है कि रसूखदारों के द्वारा किए गए क्राइम पर उसका रवैया बिल्कुल उल्टा है. आलम यह है कि सरकार एक-एक कर पार्टी के नेता या फिर पार्टी से नजदीकी रखने वालों पर दर्ज मुकदमें वापस लेने में जुटी है.
वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे स्वामी चिन्मयानंद और रमाशंकर कठेरिया सहित इस लिस्ट में तमाम लोगों के नाम शामिल हैं. यूपी सरकार स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ सालों से चल रहा रेप का केस वापस लेने की तैयारी है. तो ऐसे ही अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष और आगरा से बीजेपी सांसद रामशंकर कठेरिया पर लगे 13 केस भी वापस लिए जा रहे हैं. ताजा बवाल भाजपा के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर का है, जिन पर एक लड़की ने भाई के साथ मिलकर गैंगरेप का आरोप लगाया है. पीड़िता के पिता की जेल में मौत के बाद यह मामला तूल पकड़ गया है. बावजूद इसके इस मामले पर सीएम योगी की चुप्पी हैरान करने वाली है. सवाल उठ रहा है कि क्या सीएम योगी वैसा दम दिखा पाएंगे, जैसा बसपा प्रमुख मायावती ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में उठाया था?
बता दें कि 2007 में बसपा की सरकार बने कुछ ही दिन गुजरे थे. बसपा के तत्कालीन सांसद उमाकांत यादव पर जमीन कब्जे का आरोप था. मायावती ने सांसद को अपने आवास पर बुलाकर उसे वहीं से पुलिस के हवाले कर दिया. सिर्फ उमाकांत यादव ही नहीं, मायावती ने अपने शासनकाल में बांदा जिले से बसपा के तत्कालीन विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी को बलात्कार के मामले में गिरफ्तार करवाकर जेल भेजा था.
द्विवेदी पर भी बीजेपी विधायक सेंगर की ही तरह बांदा की एक लड़की ने बलात्कार का आरोप लगाया था. इस मामले को बाद में सीबीआई को सौंप दिया गया था. ऐसे ही एक लड़की के अपहरण और हत्या के मामले में मायावती ने अपनी सरकार में मंत्री फैजाबाद से विधायक आनंद सेन यादव को कैबिनेट से बर्खास्त कर जेल भेज दिया. मायावती के ऐसे कदम से हर कोई हैरान रह गया था और उससे पुलिस और प्रशासन को भी सख्त संदेश गया था कि रसूखदारों के साथ कोई नरमी नहीं बरती जाएगी भले ही वो सत्तारूढ़ पार्टी से ही क्यों न जुड़े हों. सवाल है कि क्या सीएम योगी ऐसी दिलेरी दिखा पाएंगे?
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